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सतीत्वकी रक्षा  [छोटी सी कहानी]
Spiritual Story - Short Story (Wisdom Story)

(लेखक श्रीब्रह्मानन्दजी 'बन्धु')

गत महासमरमें वर्मापर जापानका अधिकार हो । चुका था और ब्रिटिश सेना फिरसे उसपर आधिपत्य जमा रही थी। सेनाके सिपाही बहुधा मदान्ध होते हैं, ऐसा ही एक गढ़वाली सैनिक (जिसने स्वयं मुझे यह घटना नितान्त ब्रद्धापूर्वक अपने मुँह से सुनायी थी एवं जिसका नाम मैं यहाँ प्रकट करना अनुचित समझता हूँ) एक अन्धकारमयी रजनीमें एक अन्य बूढ़े सिपाहीको साथ लेकर विजित प्रान्तान्तर्गत समीपके एक ग्राममें अपनी कामलिप्सा शान्त करने घुसा।

दोनों सैनिक राइफलोंसे लैस थे। गाँवमें घुसकर उन्होंने देखा कि एक छोटा-सा मकान है, जिसके आगे एक वृद्ध बैठा हुआ है, मकानको देहलीपर एक नवयुवती सुन्दर महिला बैठी है, जो कि सिगार पी रही थी, मदान्ध सैनिकने इसी बहिनके साथ अपना मुँह काला करनेका निश्चय किया।

दोनों सैनिक मकानके द्वारपर जा पहुँचे और ही नवयुवक सिपाही कमरेमें प्रविष्ट होना ही चाहता था कि वह बहिन वीरतापूर्वक उती और लोहेका एक हथियार, जिसे 'दाव' बोलते हैं तथा जिससे ऊँटवाले वृक्ष काटा करते हैं, उठाकर कामान्ध सैनिकपर आक्रमण करनेके लिये उद्यत हो गयी। सिपाहीको ऐसा प्रतीत हुआ कि ज्यों ही वह मकानके द्वारकी देहलीपर पैर रखेगा, त्यों ही उसका सिर धड़से अलग होकर भूमिपर नाचनेके लिये अवश्य बाधित होगा! अतएव वह ठिठक गया और एक कदम पीछे हट गया।

उसने दस रुपयेका एक नोट अपनी जेबसेनिकाला और उस बहिनको दिखलाया; किंतु उत्तरमें वही शस्त्र फिर उसकी ओर दोनों हाथोंसे दृढ़तापूर्वक पकड़ा हुआ घूरता हुआ दृष्टिगत हुआ ! सैनिकका बल नष्ट हो गया।

पीछे खड़ा हुआ दूसरा बूढ़ा सिपाही उसका नाम लेता हुआ कड़ककर बोला, ' देखता क्या है ? राइफल तो तेरे पास है।' कामान्ध सैनिकने फिर साहस किया और सती महिलाके मुँहके सामने बंदूक तानकर उसे भयभीत करना चाहा ! किंतु प्रत्युत्तरमें वही शस्त्र फिर ज्यों-का-त्यों तना हुआ मिला। सैनिक चाहता है, गोली मारूँ। महिला उद्यत है कि उसका सिर धड़से पृथक् कर दूँ। पर्याप्त समयतक यही दृश्य रहा और आखिर सतीत्वके शुद्ध संकल्पके सम्मुख निर्लज्ज कामको पराजित होना पड़ा। दोनों सिपाही अपना-सा मुँह लेकर अपने स्थानपर लौट गये।

यह एक अक्षरशः सच्ची घटना है, आज सात आठ वर्ष हुए, जब मैंने इसे सुना था। मुझे इस कथासे सदैव प्रेरणा मिलती रहती है और मैं इसे कभी भी भूल जाना नहीं चाहता, बहिनें इससे अवश्य ही शिक्षा ग्रहण करें।

जिस हृदयमें सतीत्व- रक्षाका दृढ़ संकल्प विद्यमान है उसे बंदूकका भय और पैसेका लालच कदापि विचलित नहीं कर सकते। रावण सीता-संवादकी पुनरावृत्ति होती ही रहेगी।

मैं मन ही मन बहुधा बर्माकी उस सती वीर भगिनीके चरणोंमें नमस्कार किया करता हूँ। 'सतीत्वकी जय'



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sateetvakee rakshaa

(lekhak shreebrahmaanandajee 'bandhu')

gat mahaasamaramen varmaapar jaapaanaka adhikaar ho . chuka tha aur british sena phirase usapar aadhipaty jama rahee thee. senaake sipaahee bahudha madaandh hote hain, aisa hee ek gadha़vaalee sainik (jisane svayan mujhe yah ghatana nitaant braddhaapoorvak apane munh se sunaayee thee evan jisaka naam main yahaan prakat karana anuchit samajhata hoon) ek andhakaaramayee rajaneemen ek any boodha़e sipaaheeko saath lekar vijit praantaantargat sameepake ek graamamen apanee kaamalipsa shaant karane ghusaa.

donon sainik raaiphalonse lais the. gaanvamen ghusakar unhonne dekha ki ek chhotaa-sa makaan hai, jisake aage ek vriddh baitha hua hai, makaanako dehaleepar ek navayuvatee sundar mahila baithee hai, jo ki sigaar pee rahee thee, madaandh sainikane isee bahinake saath apana munh kaala karaneka nishchay kiyaa.

donon sainik makaanake dvaarapar ja pahunche aur hee navayuvak sipaahee kamaremen pravisht hona hee chaahata tha ki vah bahin veerataapoorvak utee aur loheka ek hathiyaar, jise 'daava' bolate hain tatha jisase oontavaale vriksh kaata karate hain, uthaakar kaamaandh sainikapar aakraman karaneke liye udyat ho gayee. sipaaheeko aisa prateet hua ki jyon hee vah makaanake dvaarakee dehaleepar pair rakhega, tyon hee usaka sir dhada़se alag hokar bhoomipar naachaneke liye avashy baadhit hogaa! ataev vah thithak gaya aur ek kadam peechhe hat gayaa.

usane das rupayeka ek not apanee jebasenikaala aur us bahinako dikhalaayaa; kintu uttaramen vahee shastr phir usakee or donon haathonse dridha़taapoorvak pakada़a hua ghoorata hua drishtigat hua ! sainikaka bal nasht ho gayaa.

peechhe khada़a hua doosara boodha़a sipaahee usaka naam leta hua kada़kakar bola, ' dekhata kya hai ? raaiphal to tere paas hai.' kaamaandh sainikane phir saahas kiya aur satee mahilaake munhake saamane bandook taanakar use bhayabheet karana chaaha ! kintu pratyuttaramen vahee shastr phir jyon-kaa-tyon tana hua milaa. sainik chaahata hai, golee maaroon. mahila udyat hai ki usaka sir dhada़se prithak kar doon. paryaapt samayatak yahee drishy raha aur aakhir sateetvake shuddh sankalpake sammukh nirlajj kaamako paraajit hona pada़aa. donon sipaahee apanaa-sa munh lekar apane sthaanapar laut gaye.

yah ek aksharashah sachchee ghatana hai, aaj saat aath varsh hue, jab mainne ise suna thaa. mujhe is kathaase sadaiv prerana milatee rahatee hai aur main ise kabhee bhee bhool jaana naheen chaahata, bahinen isase avashy hee shiksha grahan karen.

jis hridayamen sateetva- rakshaaka dridha़ sankalp vidyamaan hai use bandookaka bhay aur paiseka laalach kadaapi vichalit naheen kar sakate. raavan seetaa-sanvaadakee punaraavritti hotee hee rahegee.

main man hee man bahudha barmaakee us satee veer bhagineeke charanonmen namaskaar kiya karata hoon. 'sateetvakee jaya'

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