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बुद्धिका चातुर्य  [प्रेरक कथा]
प्रेरक कहानी - हिन्दी कथा (Moral Story)

[12]

बुद्धिका चातुर्य

एक वृद्ध महिलाकी आँखें बड़ी कमजोर हो गयी थीं, इस कारण वे कुछ देख नहीं पाती थीं। पासहीमें एक प्रसिद्ध चिकित्सक निवास करते थे। वृद्धाने उनके पास जाकर कहा, 'वैद्यजी, मेरे नेत्रोंमें दोष उत्पन्न हो गया है, मैं कुछ देख नहीं पाती। आप मेरी आँखोंको ठीक कर दीजिये तो मैं आपको विशेष पुरस्कार दूँगी, परंतु यदि आप उन्हें ठीक नहीं कर सके तो आपको कुछ नहीं मिलेगा।'
चिकित्सक वृद्धाके प्रस्तावसे सहमत हुए और अगले दिन सुबह वे उनके घर जा पहुँचे। वृद्धाके घरमें तरह-तरह की चीजें भरी हुई देखकर चिकित्सकके मनमें लोभ पैदा हुआ। उन्होंने सोचा कि मैं प्रतिदिन इन्हें देखने आऊँगा और एक-एक चीज उठाकर लेता जाऊँगा । इस कारण उन्होंने शीघ्र ही पीड़ा दूर करनेकी औषधि न देकर, कुछ दिन इधर-उधरमें बिता दिये। बादमें एक-एककर सारी चीजें ले जानेके बाद उन्होंने विधिवत् औषधि देना आरम्भ किया। थोड़े ही दिनोंमें वृद्धाके नेत्र पहलेके समान ठीक हो गये। उन्होंने देखा कि घरमें जो तरह-तरहकी चीजें थीं, उनमें से कुछ भी नहीं बचा है। खोज करनेपर पता चला कि चिकित्सक ही एक-एककर सब कुछ ले गये हैं।
एक दिन चिकित्सकने वृद्धासे कहा, 'मेरी दवाईसे आपकी बीमारी ठीक हो गयी है। आपने कहा था कि ठीक हो जानेपर आप मुझे कोई विशेष पुरस्कार देंगी। अब अपने वचनके अनुसार पुरस्कारद्वारा सन्तुष्ट करके मुझे विदा कीजिये।' वृद्धा चिकित्सकके आचरणसे बड़ी नाराज थीं, इसलिये उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया। बारम्बार माँगनेपर भी पुरस्कार पानेकी कोई आशा न देख चिकित्सकने न्यायालयमें वृद्धाके नाम मुकदमा दायर कर दिया।
वृद्धा न्यायाधीशोंके सम्मुख उपस्थित हुई और चिकित्सकको स्पष्ट शब्दोंमें चोर न कहकर युक्तिपूर्वक बोलीं, 'वैद्यराज जो कुछ कह रहे हैं, उसमें सत्य तो है, मैंने स्वीकार किया था कि यदि वे मेरे नेत्रोंको पहलेके समान ठीक कर दें, तो मैं उन्हें पुरस्कार दूँगी। उनका कहना है कि मेरी आँखें ठीक हो चुकी हैं, परंतु मैं जैसा देख रही हूँ, उससे तो नहीं लगता कि मेरी आँखें ठीक हो गयी हैं; क्योंकि पहले जब मेरी आँखें ठीक थीं, उस समय मेरे घरमें बहुत-सी चीजें भरी हुई थीं और मैं उन सबको देख पाती थी; बादमें आँखोंमें बीमारी हुई और मैं उन सब चीजोंको देख नहीं पाती थी; अब भी मैं उन सब चीजोंको देख नहीं पा रही हूँ। इसी कारण मुझे बोध हो रहा है कि इनकी चिकित्सासे मेरी आँखें ठीक नहीं हुई हैं। अब आप लोगोंके विचारसे जो उचित लगे, वैसा कीजिये।'
न्यायाधीशोंने वृद्धाकी बातोंका मर्म समझकर हँसते हुए उन्हें दोषमुक्त कर दिया और चिकित्सककी उसके अपराधोंके लिये भर्त्सना करते हुए उसके लिये उचित सजाकी व्यवस्था की।



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buddhika chaaturya

[12]

buddhika chaaturya

ek vriddh mahilaakee aankhen bada़ee kamajor ho gayee theen, is kaaran ve kuchh dekh naheen paatee theen. paasaheemen ek prasiddh chikitsak nivaas karate the. vriddhaane unake paas jaakar kaha, 'vaidyajee, mere netronmen dosh utpann ho gaya hai, main kuchh dekh naheen paatee. aap meree aankhonko theek kar deejiye to main aapako vishesh puraskaar doongee, parantu yadi aap unhen theek naheen kar sake to aapako kuchh naheen milegaa.'
chikitsak vriddhaake prastaavase sahamat hue aur agale din subah ve unake ghar ja pahunche. vriddhaake gharamen taraha-tarah kee cheejen bharee huee dekhakar chikitsakake manamen lobh paida huaa. unhonne socha ki main pratidin inhen dekhane aaoonga aur eka-ek cheej uthaakar leta jaaoonga . is kaaran unhonne sheeghr hee peeda़a door karanekee aushadhi n dekar, kuchh din idhara-udharamen bita diye. baadamen eka-ekakar saaree cheejen le jaaneke baad unhonne vidhivat aushadhi dena aarambh kiyaa. thoड़e hee dinonmen vriddhaake netr pahaleke samaan theek ho gaye. unhonne dekha ki gharamen jo taraha-tarahakee cheejen theen, unamen se kuchh bhee naheen bacha hai. khoj karanepar pata chala ki chikitsak hee eka-ekakar sab kuchh le gaye hain.
ek din chikitsakane vriddhaase kaha, 'meree davaaeese aapakee beemaaree theek ho gayee hai. aapane kaha tha ki theek ho jaanepar aap mujhe koee vishesh puraskaar dengee. ab apane vachanake anusaar puraskaaradvaara santusht karake mujhe vida keejiye.' vriddha chikitsakake aacharanase bada़ee naaraaj theen, isaliye unhonne koee uttar naheen diyaa. baarambaar maanganepar bhee puraskaar paanekee koee aasha n dekh chikitsakane nyaayaalayamen vriddhaake naam mukadama daayar kar diyaa.
vriddha nyaayaadheeshonke sammukh upasthit huee aur chikitsakako spasht shabdonmen chor n kahakar yuktipoorvak boleen, 'vaidyaraaj jo kuchh kah rahe hain, usamen saty to hai, mainne sveekaar kiya tha ki yadi ve mere netronko pahaleke samaan theek kar den, to main unhen puraskaar doongee. unaka kahana hai ki meree aankhen theek ho chukee hain, parantu main jaisa dekh rahee hoon, usase to naheen lagata ki meree aankhen theek ho gayee hain; kyonki pahale jab meree aankhen theek theen, us samay mere gharamen bahuta-see cheejen bharee huee theen aur main un sabako dekh paatee thee; baadamen aankhonmen beemaaree huee aur main un sab cheejonko dekh naheen paatee thee; ab bhee main un sab cheejonko dekh naheen pa rahee hoon. isee kaaran mujhe bodh ho raha hai ki inakee chikitsaase meree aankhen theek naheen huee hain. ab aap logonke vichaarase jo uchit lage, vaisa keejiye.'
nyaayaadheeshonne vriddhaakee baatonka marm samajhakar hansate hue unhen doshamukt kar diya aur chikitsakakee usake aparaadhonke liye bhartsana karate hue usake liye uchit sajaakee vyavastha kee.

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