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दूसरोंकी तृप्तिमें तृप्ति  [Short Story]
प्रेरक कहानी - Story To Read (Wisdom Story)

कलकत्तेके सुप्रसिद्ध विद्वान् श्रीविश्वनाथ तर्कभूषण बीमार पड़े थे। चिकित्सकने उनकी परिचर्या करनेवालोंको आदेश दिया- 'रोगीको एक बूँद भी जल नहीं देना चाहिये। पानी देते ही उसकी दशा चिन्ताजनक हो 'जायगी।'

श्रीतर्कभूषणजीको बहुत तीव्र प्यास लगी थी। उन्होंने घरके लोगोंसे कहा- 'अबतक मैंने ग्रन्थोंमें पढ़ा है तथा स्वयं दूसरोंको उपदेश किया है कि समस्त प्राणियोंमें एक ही आत्मा है, आज मुझे इसका अपरोक्षानुभव करना है। ब्राह्मणोंको निमन्त्रण देकर यहाँ बुलाओ और उन्हें मेरे सामने शरबत, तरबूजका रस तथा हरे नारियलका पानी पिलाओ।'

घरके लोगोंने यह व्यवस्था कर दी। ब्राह्मण शरबत या नारियलका पानी पी रहे थे और तर्कभूषणजी अनुभव कर रहे थे—‘मेँ पी रहा हूँ।' सचमुच उनकी रोगजन्य तृषा इस अनुभवसे शान्त हो गयी ।



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doosaronkee triptimen tripti

kalakatteke suprasiddh vidvaan shreevishvanaath tarkabhooshan beemaar pada़e the. chikitsakane unakee paricharya karanevaalonko aadesh diyaa- 'rogeeko ek boond bhee jal naheen dena chaahiye. paanee dete hee usakee dasha chintaajanak ho 'jaayagee.'

shreetarkabhooshanajeeko bahut teevr pyaas lagee thee. unhonne gharake logonse kahaa- 'abatak mainne granthonmen padha़a hai tatha svayan doosaronko upadesh kiya hai ki samast praaniyonmen ek hee aatma hai, aaj mujhe isaka aparokshaanubhav karana hai. braahmanonko nimantran dekar yahaan bulaao aur unhen mere saamane sharabat, taraboojaka ras tatha hare naariyalaka paanee pilaao.'

gharake logonne yah vyavastha kar dee. braahman sharabat ya naariyalaka paanee pee rahe the aur tarkabhooshanajee anubhav kar rahe the—‘men pee raha hoon.' sachamuch unakee rogajany trisha is anubhavase shaant ho gayee .

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