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निर्मलाकी निर्मल मति  [प्रेरक कहानी]
शिक्षदायक कहानी - Moral Story (Wisdom Story)

पण्डित विश्वनाथजी भगवान् रामके परम भक्त थे। उनकी एकमात्र संतान निर्मला बड़ी गुणवती थी। विश्वनाथजीने परम सुशील सुन्दर और सदाचारी युवक गुलाबराय से उसका विवाह किया। पर विधाताका विधान कौन टाल सकता है। साल भरके बाद ही हैजेसे उसका देहान्त हो गया। विश्वनाथपर मानो वज्रपात हुआ, उनका हृदय आकुल हो उठा; परंतु प्रभु रामजीकी भक्तिने उनको सँभाला। आकुलतामें ही उनका मन रामजीके चरणोंमें चला गया। विश्वनाथजी रो रोकर मानसिक भावोंसे रामजीकी पूजा करने लगे। प्रभु रामजीने भक्तपर कृपा की। वे स्वप्रमें अपने संत सुखदायी सर्वदुःखहारी मङ्गलमय युगल स्वरूपमें दिव्य सिंहासनसहित प्रकट हो गये और भक्त विश्वनाथजीको ढाढ़स बंधाते हुए बोले- भैया विश्वनाथ! इतने आतुर क्यों हो रहे हो! जानते नहीं मेरा प्रत्येक विधान मङ्गलमय होता है? निर्मलाको यह वैधव्य तुम्हारे और उसके कल्याणके लिये ही प्राप्त हुआ है। सुनो। पूर्व जन्ममें भी तुम सदाचारी ब्राह्मण थे वहाँ भी निर्मला | तुम्हारी कन्या थी। तुम्हारा नाम था जगदीश और निर्मलाका नाम था सरस्वती। तुममें और सरस्वती में सभी सद्गुण थे परंतु तुम्हारे पड़ोसमें एक क्षत्रियका घर था, वह बड़ा ही दुष्टहृदय था। वह मनसे बड़ा कपटी, हिंसक और दुराचारी था परंतु ऊपरसे बहुत मीठा बोलता था। वह बातें बनाने में बहुत चतुर था। सद्गुणी होनेपर भी उसके कुसङ्गसे तुम्हारे हृदयपर कुछ कालिमा आ गयी थी, वह सरस्वतीको कुदृष्टिसे देखता था। उसके बहकावे में आकर सरस्वतीने अपने पतिका घोर अपमान किया था और तुमने उसका समर्थन किया था। सरस्वतीके पतिने आकुल होकर मन-ही-मन सरस्वतीको और तुमको शाप दे दिया था। यद्यपि उसके लिये यह उचित नहीं था, तथापि दुःखमें मनुष्यको चेत नहीं रहता। उसी शापके कारण निर्मलाइस जन्ममें विधवा हो गयी है और तुम्हें यह संताप प्राप्त हुआ है। पतिके तिरस्कारके सिवा सरस्वतीका जीवन बड़ा पवित्र रहा। उसने दुराचारी पड़ोसीके बुरे प्रस्तावको | ठुकरा दिया। जीवन भर तुलसीजीका सेवन, एकादशीका | व्रत और रामनामका जाप करती रही। तुम इसम उसके सहायक रहे। इसीसे तुमको और उसको दूसरी बार फिर वही ब्राह्मणका शरीर प्राप्त हुआ है और मेरी कृपासे तुम दोनोंके हृदयमें भक्ति आ गयी है। मेरी भक्ति एक बार जिसके हृदयमें आ जाती है, वह कृतार्थ हुए बिना नहीं रहता। भक्तिका यह स्वभाव है कि एक बार जिसने उसको अपने हृदयमें धारण कर लिया, उसको वह मेरी प्राप्ति कराये बिना नहीं मानती। बड़ी-बड़ी रुकावटोंको हटाकर, बड़े-बड़े प्रलोभनोंसे छुड़ाकर वह उसे मेरी ओर लगा देती है और मुझे ले जाकर उसके हृदयमें बसा देती है। मैं भक्तिके वश रहता हूँ-यह तो प्रसिद्ध ही है। तुमलोगोंपर यह जो दुःख आया है, यह भक्तिदेवीकी कृपासे तुम्हारे कल्याणके लिये ही आया है। यह दुःख तुम्हारे सारे दुःखोंका सदाके 'लिये नाश कर देगा।' इतना कहकर भगवान् अन्तर्धान हो गये।

विश्वनाथ विचित्र स्वप्न देखकर जगे हुए पुरुषकी भाँति चकित-से रह गये। इतनेमें ही निर्मला सामने आ गयी। निर्मलाको देखकर विश्वनाथका हृदय फिर भर आया। उनके नेत्रोंसे आँसू बहने लगे। वे दुःसह मर्मपीड़ासे व्यथित हो गये। परंतु निर्मलाकी साधना बहुत ऊँची थी। वह अपने वैधव्यकी हालतको खूब समझती थी, परंतु वह साधनाकी जिस भूमिकापर स्थित थी, उसपर वैधव्यकी भीषणताका कुछ भी प्रभाव नहीं था। उसने कहा, 'पिताजी! आप विद्वान्, ज्ञानी और भगवद्भक्त होकर रोते क्यों हैं? शरीर तो मरणधर्मा है ही। जड पञ्चभूतोंसे बने हुए तो मुर्दापन ही है। फिर उसके लिये शोक क्यों करनाचाहिये ? यदि शरीरकी दृष्टिसे देखा जाय तो स्त्री अपने स्वामीकी अर्द्धाङ्गिनी है। उसके आधे अङ्गमें वह है और आधे अङ्गमें उसके स्वामी हैं। इस रूपमें स्वामीका विछोह कभी होता ही नहीं। सती स्त्रीका स्वामी तो सदैव अर्धाङ्गरूपमें उसके साथ मिला हुआ ही रहता है। अतएव सती स्त्री वस्तुतः कभी विधवा होती ही नहीं। वह विलासके लिये विवाह नहीं करती, वह तो धर्मतः पतिको अपना स्वरूप बना लेती है। ऐसी अवस्थामें - पृथक् शरीरके लिये रोनेकी क्या आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त सबसे महत्त्वकी बात तो यह है कि सारा जगत् ही प्रकृति है, पुरुष - स्वामी तो एकमात्र भगवान् श्रीरघुनाथजी ही हैं। श्रीरघुनाथजी अजर, अमर, नित्य, शाश्वत, सनातन, अखण्ड, अनन्त, अनामय, पूर्ण पुरुषोत्तम हैं। प्रकृति कभी उनके अंदर सोती है, कभी बाहर उनके साथ खेलती है। प्रकृति उनकी अपनी ही स्वरूपा शक्ति । इस प्रकृतिसे पुरुषका वियोग कभी होता ही नहीं। पुरुषके बिना प्रकृतिका अस्तित्व ही नहीं रहता। अतएव हमारे रघुनाथजी नित्य ही हमारे साथ हैं। आप इस बातको जानते हैं, फिर भी आप रोते क्योंहैं। कर्मकी दृष्टिसे देखें तो जीव अपने-अपने कर्मवश जगत्में जन्म लेते हैं, कर्मवश ही सबका परस्पर यथायोग्य संयोग होता है, फिर कर्मवश ही समयपर वियोग हो जाता है। कर्मजनित यह सारा सम्बन्ध अनित्य, क्षणिक और मायिक है। यह नश्वर जगत् संयोग-वियोगमय ही तो है । यहाँपर नित्य क्या। इस संयोग-वियोगमें हर्ष-विषाद क्यों होना चाहिये ।'

'फिर भगवान्का भक्त तो प्रत्येक बातमें भगवान्के मङ्गलमय विधानको देखकर विधानके रूपमें स्वयं विधाताका स्पर्श पाकर प्रफुल्लित होता रहता है, चाहे वह विधान देखनेमें कितना ही भीषण क्यों न हो । अतएव पिताजी! आप निश्चय मानिये - भगवान्ने हमारे परम मङ्गलके लिये ही यह विधान किया है, जो जगत्की दृष्टिमें बड़ा ही अमङ्गलरूप और भयानक है। आप निश्चिन्त रहिये, हमारा परम कल्याण ही होगा।'

निर्मलाके दिव्य वचन सुनकर विश्वनाथजीकी सारी पीड़ा जाती रही। उन्होंने कहा- 'बेटी! तू मानवी नहीं है, तू तो दिव्यलोककी देवी है। तभी तेरे ऐसे भाव हैं। तूने मुझको शोकसागरसे निकाल लिया। मैं धन्य हूँ, जो तेरा पिता कहलाने योग्य हुआ हूँ।'



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nirmalaakee nirmal mati

pandit vishvanaathajee bhagavaan raamake param bhakt the. unakee ekamaatr santaan nirmala baड़ee gunavatee thee. vishvanaathajeene param susheel sundar aur sadaachaaree yuvak gulaabaraay se usaka vivaah kiyaa. par vidhaataaka vidhaan kaun taal sakata hai. saal bharake baad hee haijese usaka dehaant ho gayaa. vishvanaathapar maano vajrapaat hua, unaka hriday aakul ho uthaa; parantu prabhu raamajeekee bhaktine unako sanbhaalaa. aakulataamen hee unaka man raamajeeke charanonmen chala gayaa. vishvanaathajee ro rokar maanasik bhaavonse raamajeekee pooja karane lage. prabhu raamajeene bhaktapar kripa kee. ve svapramen apane sant sukhadaayee sarvaduhkhahaaree mangalamay yugal svaroopamen divy sinhaasanasahit prakat ho gaye aur bhakt vishvanaathajeeko dhaadha़s bandhaate hue bole- bhaiya vishvanaatha! itane aatur kyon ho rahe ho! jaanate naheen mera pratyek vidhaan mangalamay hota hai? nirmalaako yah vaidhavy tumhaare aur usake kalyaanake liye hee praapt hua hai. suno. poorv janmamen bhee tum sadaachaaree braahman the vahaan bhee nirmala | tumhaaree kanya thee. tumhaara naam tha jagadeesh aur nirmalaaka naam tha sarasvatee. tumamen aur sarasvatee men sabhee sadgun the parantu tumhaare pada़osamen ek kshatriyaka ghar tha, vah bada़a hee dushtahriday thaa. vah manase bada़a kapatee, hinsak aur duraachaaree tha parantu ooparase bahut meetha bolata thaa. vah baaten banaane men bahut chatur thaa. sadgunee honepar bhee usake kusangase tumhaare hridayapar kuchh kaalima a gayee thee, vah sarasvateeko kudrishtise dekhata thaa. usake bahakaave men aakar sarasvateene apane patika ghor apamaan kiya tha aur tumane usaka samarthan kiya thaa. sarasvateeke patine aakul hokar mana-hee-man sarasvateeko aur tumako shaap de diya thaa. yadyapi usake liye yah uchit naheen tha, tathaapi duhkhamen manushyako chet naheen rahataa. usee shaapake kaaran nirmalaais janmamen vidhava ho gayee hai aur tumhen yah santaap praapt hua hai. patike tiraskaarake siva sarasvateeka jeevan bada़a pavitr rahaa. usane duraachaaree pada़oseeke bure prastaavako | thukara diyaa. jeevan bhar tulaseejeeka sevan, ekaadasheeka | vrat aur raamanaamaka jaap karatee rahee. tum isam usake sahaayak rahe. iseese tumako aur usako doosaree baar phir vahee braahmanaka shareer praapt hua hai aur meree kripaase tum dononke hridayamen bhakti a gayee hai. meree bhakti ek baar jisake hridayamen a jaatee hai, vah kritaarth hue bina naheen rahataa. bhaktika yah svabhaav hai ki ek baar jisane usako apane hridayamen dhaaran kar liya, usako vah meree praapti karaaye bina naheen maanatee. bada़ee-bada़ee rukaavatonko hataakar, bada़e-bada़e pralobhanonse chhuda़aakar vah use meree or laga detee hai aur mujhe le jaakar usake hridayamen basa detee hai. main bhaktike vash rahata hoon-yah to prasiddh hee hai. tumalogonpar yah jo duhkh aaya hai, yah bhaktideveekee kripaase tumhaare kalyaanake liye hee aaya hai. yah duhkh tumhaare saare duhkhonka sadaake 'liye naash kar degaa.' itana kahakar bhagavaan antardhaan ho gaye.

vishvanaath vichitr svapn dekhakar jage hue purushakee bhaanti chakita-se rah gaye. itanemen hee nirmala saamane a gayee. nirmalaako dekhakar vishvanaathaka hriday phir bhar aayaa. unake netronse aansoo bahane lage. ve duhsah marmapeeda़aase vyathit ho gaye. parantu nirmalaakee saadhana bahut oonchee thee. vah apane vaidhavyakee haalatako khoob samajhatee thee, parantu vah saadhanaakee jis bhoomikaapar sthit thee, usapar vaidhavyakee bheeshanataaka kuchh bhee prabhaav naheen thaa. usane kaha, 'pitaajee! aap vidvaan, jnaanee aur bhagavadbhakt hokar rote kyon hain? shareer to maranadharma hai hee. jad panchabhootonse bane hue to murdaapan hee hai. phir usake liye shok kyon karanaachaahiye ? yadi shareerakee drishtise dekha jaay to stree apane svaameekee arddhaanginee hai. usake aadhe angamen vah hai aur aadhe angamen usake svaamee hain. is roopamen svaameeka vichhoh kabhee hota hee naheen. satee streeka svaamee to sadaiv ardhaangaroopamen usake saath mila hua hee rahata hai. ataev satee stree vastutah kabhee vidhava hotee hee naheen. vah vilaasake liye vivaah naheen karatee, vah to dharmatah patiko apana svaroop bana letee hai. aisee avasthaamen - prithak shareerake liye ronekee kya aavashyakata hai. isake atirikt sabase mahattvakee baat to yah hai ki saara jagat hee prakriti hai, purush - svaamee to ekamaatr bhagavaan shreeraghunaathajee hee hain. shreeraghunaathajee ajar, amar, nity, shaashvat, sanaatan, akhand, anant, anaamay, poorn purushottam hain. prakriti kabhee unake andar sotee hai, kabhee baahar unake saath khelatee hai. prakriti unakee apanee hee svaroopa shakti . is prakritise purushaka viyog kabhee hota hee naheen. purushake bina prakritika astitv hee naheen rahataa. ataev hamaare raghunaathajee nity hee hamaare saath hain. aap is baatako jaanate hain, phir bhee aap rote kyonhain. karmakee drishtise dekhen to jeev apane-apane karmavash jagatmen janm lete hain, karmavash hee sabaka paraspar yathaayogy sanyog hota hai, phir karmavash hee samayapar viyog ho jaata hai. karmajanit yah saara sambandh anity, kshanik aur maayik hai. yah nashvar jagat sanyoga-viyogamay hee to hai . yahaanpar nity kyaa. is sanyoga-viyogamen harsha-vishaad kyon hona chaahiye .'

'phir bhagavaanka bhakt to pratyek baatamen bhagavaanke mangalamay vidhaanako dekhakar vidhaanake roopamen svayan vidhaataaka sparsh paakar praphullit hota rahata hai, chaahe vah vidhaan dekhanemen kitana hee bheeshan kyon n ho . ataev pitaajee! aap nishchay maaniye - bhagavaanne hamaare param mangalake liye hee yah vidhaan kiya hai, jo jagatkee drishtimen bada़a hee amangalaroop aur bhayaanak hai. aap nishchint rahiye, hamaara param kalyaan hee hogaa.'

nirmalaake divy vachan sunakar vishvanaathajeekee saaree peeda़a jaatee rahee. unhonne kahaa- 'betee! too maanavee naheen hai, too to divyalokakee devee hai. tabhee tere aise bhaav hain. toone mujhako shokasaagarase nikaal liyaa. main dhany hoon, jo tera pita kahalaane yogy hua hoon.'

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