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भाई-बहनका आदर्श प्रेम  [Moral Story]
प्रेरक कथा - प्रेरक कहानी (आध्यात्मिक कहानी)

भाई-बहनका आदर्श प्रेम

इन्द्रप्रस्थमें राजसूय यज्ञ पूर्ण होनेपर चक्रवर्ती सम्राट् युधिष्ठिर अपने पूज्य गुरुजनों, कुटुम्बियों तथा अभ्यागत नरेशोंके साथ राजसभामें विराजमान थे। सर्व सम्मतिसे भगवान् श्रीकृष्णकी अग्रपूजा चल रही थी । तभी शिशुपालने श्रीकृष्णकी अग्रपूजाका प्रतिवाद करते हुए उनपर अपशब्दोंकी बौछार कर दी।
भगवान् श्रीकृष्ण सुनते रहे। पूर्वकालमें शिशुपालकी माँको दिये गये अपने वचनका स्मरणकर वे उसके अपशब्दोंको सहते रहे तथा उनकी गिनती करते रहे। शिशुपालने जैसे ही सौवाँ अपशब्द कहा, वैसे ही श्रीकृष्णने अपने चक्रसे शिशुपालका सिर काट डाला।
शिशुपालपर चक्र छोड़ते समय भगवान्‌की तर्जनी अँगुली भी घायल हो गयी और उससे टप टप खून टपकने लगा। राजसिंहासनपर युधिष्ठिरके साथ विराजमान द्रौपदी घबराकर उठी और उसने तत्काल अपने आँचलका एक कोना फाड़कर श्रीकृष्णकी अँगुलीमें बाँध दिया। खूनका टपकना बन्द हो गया, किंतु प्रेमकी रसधार फूट पड़ी। बहन द्रौपदीके इस उत्कट स्नेहको देखकर भ्राता श्रीकृष्ण भावविह्वल हो उठे तथा उन्होंने द्रौपदीके इस सौहार्दको अपने ऊपर ऋण माना।
कुछ ही दिन बीते थे कि हस्तिनापुरकी राजसभामें युधिष्ठिर द्रौपदीको जूएमें हार गये। विजयी दुर्योधनकी आज्ञासे दुःशासन द्रौपदीको बलपूर्वक राजसभामें ले आया और उसकी साड़ी खींचकर उसे नग्न करने लगा। द्रौपदीने राजसभामें उपस्थित भीष्म आदि सभी महानुभावोंसे एक-एककर विनती की, किंतु किसीने एक न सुनी, तब उसको भ्राता श्रीकृष्ण याद आये और उसने मन-ही-मन द्वारकाधीशको पुकारा। श्रीकृष्ण द्रौपदीकी पुकार सुनते ही दौड़े और उसकी साड़ीको इतना अधिक बढ़ा दिया कि दुःशासन साड़ी खींचते खींचते थककर हार गया; किंतु द्रौपदीकी साड़ी समाप्त नहीं हुई।
द्रौपदीका यह भ्रातृ-प्रेम और श्रीकृष्णद्वारा बहनकी इस प्रकार लज्जा बचाना—ये दोनों ही घटनाएँ भारतीय संस्कृतिके उत्कृष्ट रूपको प्रकट करती हैं।



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bhaaee-bahanaka aadarsh prema

bhaaee-bahanaka aadarsh prema

indraprasthamen raajasooy yajn poorn honepar chakravartee samraat yudhishthir apane poojy gurujanon, kutumbiyon tatha abhyaagat nareshonke saath raajasabhaamen viraajamaan the. sarv sammatise bhagavaan shreekrishnakee agrapooja chal rahee thee . tabhee shishupaalane shreekrishnakee agrapoojaaka prativaad karate hue unapar apashabdonkee bauchhaar kar dee.
bhagavaan shreekrishn sunate rahe. poorvakaalamen shishupaalakee maanko diye gaye apane vachanaka smaranakar ve usake apashabdonko sahate rahe tatha unakee ginatee karate rahe. shishupaalane jaise hee sauvaan apashabd kaha, vaise hee shreekrishnane apane chakrase shishupaalaka sir kaat daalaa.
shishupaalapar chakr chhoda़te samay bhagavaan‌kee tarjanee angulee bhee ghaayal ho gayee aur usase tap tap khoon tapakane lagaa. raajasinhaasanapar yudhishthirake saath viraajamaan draupadee ghabaraakar uthee aur usane tatkaal apane aanchalaka ek kona phaada़kar shreekrishnakee anguleemen baandh diyaa. khoonaka tapakana band ho gaya, kintu premakee rasadhaar phoot pada़ee. bahan draupadeeke is utkat snehako dekhakar bhraata shreekrishn bhaavavihval ho uthe tatha unhonne draupadeeke is sauhaardako apane oopar rin maanaa.
kuchh hee din beete the ki hastinaapurakee raajasabhaamen yudhishthir draupadeeko jooemen haar gaye. vijayee duryodhanakee aajnaase duhshaasan draupadeeko balapoorvak raajasabhaamen le aaya aur usakee saada़ee kheenchakar use nagn karane lagaa. draupadeene raajasabhaamen upasthit bheeshm aadi sabhee mahaanubhaavonse eka-ekakar vinatee kee, kintu kiseene ek n sunee, tab usako bhraata shreekrishn yaad aaye aur usane mana-hee-man dvaarakaadheeshako pukaaraa. shreekrishn draupadeekee pukaar sunate hee dauda़e aur usakee saada़eeko itana adhik badha़a diya ki duhshaasan saada़ee kheenchate kheenchate thakakar haar gayaa; kintu draupadeekee saada़ee samaapt naheen huee.
draupadeeka yah bhraatri-prem aur shreekrishnadvaara bahanakee is prakaar lajja bachaanaa—ye donon hee ghatanaaen bhaarateey sanskritike utkrisht roopako prakat karatee hain.

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