बात न पुरानी है, न सुनी हुई कहानी है। कानसे ज्यादा आँखें जानती हैं। कहानीके सभी पात्र जीवित हैं: अतएव नाम बदलकर ही कहना होगा।
एक रिटायर्ड जज हैं। कहा जाता है कि उन्होंने कभी रिश्वत नहीं ली थी। धार्मिक विचारोंके सद् गृहस्थ हैं। दावतोंमें, पार्टियोंमें, मित्रोंके यहाँ खान-पानमें वे चाहे जितने स्वतन्त्र रहे हों, पर घरके अंदर रसोई घरके रूहियों के पालनमें न असावधानी करते थे, न होने देते थे।गृहिणी शिक्षिता हैं; सभा-सोसाइटियोंमें, दावतोंमें पतिके साथ खुलकर भाग लेती रही हैं; पर घरके अंदर चूल्हेकी मर्यादाका वे पतिसे भी अधिक ध्यान रखती हैं। तुलसीको प्रत्येक दिन सबेरे स्नान कराके जल चढ़ाना और संध्या समय उसे धूप-दीप देना और उसके चबूतरेके पास बैठकर कुछ देर रामचरितमानसका पाठ करना-यह उनका नियमित काम है, जो माता-पितासे विरासतकी तरह मिला है। और कभी छूट नहीं सकता।जज साहबके कोई पुत्र नहीं; एक कन्या है। जिसका नाम लक्ष्मी है। माता-पिताकी एक ही संतान | होनेके कारण उसे उनका पूर्ण स्नेह प्राप्त था। लक्ष्मीको भगवान्ने सुन्दर रूप दिया है।
लक्ष्मीको खर्च वर्थको कमी नहीं थी। यूनिवर्सिटीमें पढ़नेवाली साथिनोंमें वह सबसे अधिक कीमती और आकर्षक वेष-भूषामें रहा करती थी। वह स्वभावकी कोमल थी, सुशील थी, घमंडी नहीं थी। घरमें आती तो माँके साथ मेमनेकी तरह पीछे-पीछे फिरा करती थी। माँकी इच्छासे वह तुलसीके चबूतरेके पास बैठकर तुलसीको पूजामें भी भाग लेती और माँसे अधिक देरतक बैठकर मानसका पाठ भी किया करती थी। भारतीय संस्कृति और युनिवर्सिटीकी रहन सहनका यह अद्भुत मिश्रण था।
जज साहबकी इच्छा थी कि लक्ष्मी बी0 ए0 पास कर ले, तब उसका विवाह करें। वे कई वर्षोंसे सुयोग्य करकी खोजमें दौड़-धूप कर रहे थे। बी0 ए0 कन्याके लिये एम0 ए0 वर तो होना ही चाहिये; पर कहीं एम्0 ए0 वर मिलता तो कुरूप मिलता: कहीं भयंकर खर्चीली जिंदगीवाला पूरा साहब मिलता; कहीं दहेज इतना माँगा जाता कि रिश्वत न लेनेवाला जज दे नहीं सकता कन्या पिताको जज, डिप्टी कमिश्नर, डिप्टी कलक्टर आदि शब्द कितने महँगे पड़ते हैं; यह वे ही जान सकते हैं।
लक्ष्मीने बी0 ए0 पास कर लिया और अच्छी श्रेणीमें पास किया। अब वह पिताके पास परायी थातीकी तरह हो गयी। अब उसे किसी नये घरमें बसा देना अनिवार्य हो गया। जज साहब वर खोजते खोजते थक चुके थे और निराश होकर पूजा-पाठ में अधिक समय लगाने लगे थे।
मनुष्य के जीवन में कभी-कभी विचित्र घटनाएँ घट जाती हैं। क्या से क्या हो जाता है; कुछ पता नहीं चलता। एक दिन शहरकी एक बड़ी सड़कपर जज साहब अपनी कारमें बैठे थे जिनमें कुछ खराबी आ गयी थी, इससे वह चलता नहीं था। ड्राइवर बार बार नीचे उतरता, एंजिनके पुरजे खोलता कसता; तार मिलाता पर कामयाब न होता। उसने कई साधारण | श्रेणीके राह चलतोंको कहा कि वे कारको ढकेल | दें, पर किसीने नहीं सुना सूट-बूटवालोंको कहनेका उसे साहस ही नहीं हुआ। एक नवयुवक, जो बगलसे ही जा रहा था और जिसे बुलानेकी ड्राइवरको हिम्मत भी न होती, अपने-आप कारकी तरफ मुड़ पड़ा और उसने ड्राइवरको कहा-'मैं ढकेलता हूँ तुम स्टेयरिंग पकड़ो।'
ड्राइवरने कहा- 'गाड़ी भारी है, एकके मानकी नहीं।' युवकने मुसकराकर कहा-देखो तो सही।
ड्राइवर अपनी सीटपर बैठ गया। युवकने अकेले ही गाड़ीको दस्तक ढकेल दिया। एंजिन चलने लगा।
जज साहबने युवकको बुलाया, धन्यवाद दिया। युवकका चेहरा तप्त काञ्चनकी तरह चमक रहा था। चेहरेकी बनावट भी सुन्दर थी। जवानी अङ्ग अङ्गसे छलकी पड़ती थी। फिर भी पोशाक बहुत सादी थी धोती, कुरता और चप्पल चप्पल बहुत घिसी-घिसाई थी और धोती तथा कुरतेके कपड़े भी सस्ते किस्म के थे। फिर भी आँखोंकी ज्योति और चेहरेपर गम्भीर भावोंकी झलक देखकर जज साहब उससे कुछ बात किये बिना रह नहीं सके।
एंजिन चल रहा था, ड्राइवर आज्ञाकी प्रतीक्षामें था। जज साहबने युवकसे कहा- शायद आप भी इसी तरफ चल रहे हैं, आइये, बैठ लीजिये रास्ते में जहाँ चाहियेगा, उतर जाइयेगा।
युवक जज साहबकी बगलमें आकर बैठ गया। जज साहबने पूछ-ताछ की तो युवकने बताया कि वह युनिवर्सिटीका छात्र है। अमुक जिलेका एक गरीब कुटुम्बका लड़का है। मैट्रिकसे लेकर एम0 ए0 तक बराबर प्रथम आते रहने से उसे छात्रवृत्ति मिलती रही; उसने और कुछ अँगरेजी कहानियोंके अनुवादसे पारिश्रमिक पाकर एम0 ए0 प्रथम श्रेणी में पास कर लिया और अब उसे विदेशमें जाकर शिक्षा ग्रहण करनेके लिये सरकारी छात्रवृत्ति मिलेगी। वह दो महीने के अंदर विदेश चला जायगा।
जज साहबका हाल तो 'पैरत थके थाह जनु पाई' जैसा हो गया। बात करते-करते वे अपनी कोठीपर आ गये स्वयं उतरे, युवकको भी उतारा और कहा आपने रास्तेमें मेरी बड़ी सहायता की। अब कुछ जल पान करके तब जाने पाइयेगा।
युवकको बैठकमें बैठाकर जज साहब अंदर गयेऔर लक्ष्मी तथा उसकी माताको भी साथ लेकर आये और उनसे युवकका परिचय कराया। इसके बाद नौकर जल - धानका सामान लेकर आया और युवकको जज साहबने बड़े प्रेमपूर्वक जल पान कराया। इसके बाद युवकको जज साहब अक्सर बुलाया करते थे और वह आता-जाता रहा।
गरीब युवकके जीवनमें यह पहला ही अवसर था, जब किसी रईसने इतने आदरसे उसे बैठाया और खिलाया पिलाया हो
अन्तमें यह हुआ कि जज साहबने लक्ष्मीका विवाह युवकसे कर दिया।
युवकके विदेश जानेके दिन निकट चले आ रहे थे। जज साहबने सोचा कि लक्ष्मी कुछ दिन अपने पतिके साथ उसके गाँव हो आये तो अच्छा; ताकि दोनोंमें प्रेमका बन्धन और दृढ़ हो जाय और युवक विदेशमें किसी अन्य स्त्रीपर आसक्त न हो।
जज साहबका प्रस्ताव सुनकर युवकने कहा- मैं गाँव जाकर घरको ठीक-ठाक करा आऊँ, तब बहूको ले जाऊँ।
युवक गाँव आया। गाँव दूसरे जिलेमें शहरसे बहुत दूर था और पूरा देहात था। उसका घर भी एक टूटा फूटा खंडहर ही था उसपर एक सड़ा-गला छप्पर रखा था। उसके नीचे उसका बुड्डा बाप दिनभर बैठे-बैठे हुक्का पिया करता था।
युवकके चचा धनी थे और उनकी बखरी बहुत बड़ी और बेटों-पोतों और बहुओंसे भरी हुई थी। युवकने चचासे प्रार्थना की कि उसे वह अपने ही घरका बतायें और पंद्रह दिनोंके लिये उसको बहूको अपने घरमें रहने दें। चचाने स्वीकार कर लिया।
घरके बाहरी बरामदे में एक कोठरी थी युवकने उसीको साफ कराके उसमें जरूरी सामान रखवा दिये एक कुरसी और मेज भी रखवा दिये। बहू चचाके घरमें खाना खा लिया करेगी और उसी कोठरीमें रहेगी। एक लड़केको नौकर रख लिया गया।
युवक वापस जाकर बहूको ले आया। पाँच-सात दिन बहूके साथ गाँवमें रहकर युवक अपनी विदेश यात्राकी तैयारी करनेके लिये शहरको वापस गया और बहू चचा घरमें अकेली रहने लगी। दोनों वक्त घरके अंदर जाकर खाना खा आती और नौकरकी सहायतासे दोनों वक्त कोठरीके अंदर चाय बनाकर पी लियाकरती। चायका सामान वह साथ लायी थी।
दो ही चार दिनोंमें बहूका परिचय गाँवकी प्राय: सब छोटी-बड़ी स्त्रियों और बच्चोंसे हो गया। बहुका स्वभाव मिलनसार था। माता-पिताकी धार्मिक शिक्षाओंसे और रामचरितमानसके नियमित पाठसे उसके हृदयमें कोमलता और सहिष्णुता आ गयी थी। सबसे वह हँसकर प्रेमपूर्वक मिलती, बच्चोंको प्यार करती, बिस्कुट देती और सबको आदरसे बैठाती। रेशमी | साड़ीके अंदर लुभावने गुण देखकर मैली-कुचैली और फटी धोतियोंवाली ग्रामीण स्त्रियोंकी झिझक जाती रही और वे खुलकर बातें करने लगीं।
बहूको सीना-पिरोना अच्छा आता था। हारमोनियम बजाना और गाना भी आता था। कण्ठ सुरीला था, नम्रता और विनयका प्रदर्शन करना वह जानती थी, उसका तो दरबार लगने लगा। कोठरीमें दिनभर चहल-पहल रहती। गाँवके नरकमें मानो स्वर्ग उतर आया था।
गाँवकी स्त्रियोंका मुख्य विषय प्रायः परनिन्दा हुआ करता है। कुछ स्त्रियाँ तो ऐसी होती हैं कि ताने मारना, व्यङ्ग बोलना, झगड़े लगाना उनका पेशा-सा हो जाता है और वे घरोंमें चक्कर लगाया ही करती हैं। एक दिन ऐसी ही एक स्त्री लक्ष्मीके पास आयी और उसने बिना संकोचके कहा- तुम्हारा बाप अंधा था क्या, जो उसने बिना घर देखे विवाह कर दिया ?
लक्ष्मीने चकित होकर पूछा- क्या यह मेरा घर नहीं है?
स्त्री उसका हाथ पकड़कर बरामदे में ले गयी और उँगलीके इशारेसे युवकके खंडहरकी ओर दिखाकर कहा यह देखो, तुम्हारा घर है और वह तुम्हारे ससुरजी हैं, जो छप्परके नीचे बैठकर हुक्का पी रहे हैं। यह घर तो तुम्हारे पतिके चचाका है, जो अलग रहते हैं।'
लक्ष्मीने उस स्त्रीको विदा किया और कोठरी में आकर उसने गृहस्थीके जरूरी सामान बरतन, आटा, दाल, चावल, मिर्च-मसालेकी एक सूची बनायी और नौकरको बुलाकर अपना सामान बँधवाकर वह उसे उसी खंडहरमें भेजवाने लगी।
चचा सुन पाये। वे दौड़े आये। आँसू भरकर कहने होगी। बहू। यह क्या कर रही हो? मेरी बड़ी बदनामीघरकी स्त्रियाँ भी बाहर निकल आयीं। वे भी समझाने लगीं। लक्ष्मीने सबको एक उत्तर दिया- दोनों घर अपने ही हैं। मैं इसमें भी रहेंगी और उसमें भी रहूंगी। फिर उसने चचाके हाथमें कुछ रुपये और सामानको सूची देकर कहा- यह सामान बाजारसे अभी मँगा दीजिये।
चचा लाचार होकर बहुत उदास मनसे बाजारकी ओर गये, जो एक मील दूर था। बहू खंडहरमें आयी। आते ही उसने आँचलका छोर पकड़कर तीन बार ससुरका पैर छुआ। फिर खंडहरमें गयी। एक कोठरी । और उसके सामने छोटा-सा ओसारा, घरकी सीमा इतनी ही थी। नौकरने सामान लाकर बाहर रख दिया। बहूने उससे गोबर मँगायाः एक बाल्टी पानी मँगाया। कोठरी और ओसारेको झाडू लगाकर साफ किया। फिर रेशमी साड़ीकी कछाँड़ मारकर वह घर लीपने बैठ गयी।
यह खबर बात की बातमें गाँवभरमें और उसके आस-पासके गाँवोंमें भी पहुँच गयी। झुंड के झुंड स्त्री-पुरुष देखने आये भीड़ लग गयी। कई स्त्रियाँ लीपनेके लिये आगे बढ़ीं; पर बहुने किसीको हाथ लगाने नहीं दिया। वृद्धा स्त्रियाँ आँसू पोंछने लगीं। ऐसी बहू तो उन्होंने कभी देखी ही नहीं थी। पुरुष लोग उसे देवीका अवतार मानकर श्रद्धासे देखने लगे।
इतनेमें बाजारसे बरतन आ गये बहुने पानी मँगवाकर कोठरीमें स्नान किया। फिर वह रसोई बनाने बैठ गयी। शीघ्र ही भोजन तैयार करके उसने ससुरजीसे कहा कि वे स्नान कर लें।
ससुरजी आँखोंमें आँसू भरे मोह-मुग्ध बैठे थे। किसीसे कुछ बोलते न थे बहूकी प्रार्थना सुनकर उठे, कुएँपर जाकर नहाया और आकर भोजन किया। वरतन सब नये थे। खंडहरमें एक ही झिलंगा खाट थी। बहूने उसपर दरी बिछा दी। ससुरको उसपर बैठाकर, चिलम चढ़ाकर हुक्का उनके हाथमें थमा दिया। फिर उसने स्वयं भोजन किया।
बहुने चचासे कहा- दो नयी खाटें और एक चौकी आज ही चाहिये। बाधके लिये उसने चचाको पैसे भी दे दिये। चचा तो बाध खरीदने बाजार चले गये। लोहार और बढ़ई वहाँ मौजूद थे। सभी तो आनन्द-विभोर हो रहे थे। हर एकके मनमें यहीलालसा जाग उठी थी कि वह बहूकी कोई सेवा करे। लोहारने कहा-मैं पाटीके लिये अभी बाँस काटकर लाता हूँ और पाये गढ़कर खाटें बना देता हूँ।
बढ़ईने कहा- मैं चौकी बना दूंगा। बाध भी आ गया। खाट बिननेवाला अपनी सेवा प्रस्तुत करनेके लिये मुँह देख रहा था। उसने दो खाटें बिन दीं। ससुरकी झिलूँगा खाट भी बहूने आये गयेके लिये बिनवाकर अलग रख ली। बढ़ईने चौकी बना दी। शामतक यह सब कुछ हो गया।
रात में बहूने अपने माता-पिताको एक पत्र लिखा, जिसमें दिनभर में जो कुछ हुआ, सब एक-एक करके लिखा, पर पिताको यह नहीं लिखा कि तुमने भूल की और मुझे कहाँ से कहाँ लाकर डाल दिया। बल्कि बड़े उल्लासके साथ यह लिखा कि मुझे आपकी और माताजीको सम्पूर्ण शिक्षाके उपयोग करनेका मौका मिल गया है।
बहूके झोंपड़ेपर तो मेला लगने लगा। सब उसको देवी मानने लगे थे। बराबर उम्रको बहुएँ दूसरे गाँवोंसे आतीं तो आँचलके छोरको हाथोंमें लेकर उसका पैर छूनेको झुकतीं। वह लज्जाके मारे अपने पैर साड़ी में छिपा लेती। उनको पास बैठाती, सबसे परिचय करती और अपने काढ़े हुए बेल-बूटे दिखाती ।
गाँवोंके विवाहित और अविवाहित युवक भी बहूको देखने आते। बहू तो परदा करती नहीं थी, पर युवकोंकी दृष्टिमें कामुकता नहीं थी बल्कि जलकी रेखाएँ होती थी ऐसा कठोर तप तो उन्होंने कभी देखा ही नहीं था। रानमें बहू झोंपड़ेके सामने गाँव वृद्धा स्वि जमा हो जाती। देवकन्या जैसी बहू बीचमें आकर बैठ जाती। आरी आरी कुस कॉसि, बीचमें सोनेकी रासि ।' बहू वृद्धाओंको आँचलसे चरण छूकर प्रणाम करती मीठी मीठी हँसी-ठठोली भी करती। वृद्धाएँ बहूके स्वभावपर मुग्ध होकर सोहर गाने लगतीं। लोग हँसते तो वे कहती-बहू बेटा होगा, भगवान् औतार लेंगे, हम अभीसे सोहर गाती हैं। यह बेचारी सुनकर लज्जाके मारे जमीनमें गड़-सी जाती थी।
चौथे रोज जज साहबकी भेजी हुई एक लारी आयी, जिसमें सीमेंट के बोरे, दरवाजों और खिड़कियों थोक और पल्ले, पलंग, मेज-कुर्सियों और जरूरीलोहा-लकड़ भरे थे और एक गुमाश्ता और दो राजगीर साथ थे।
गुमाश्ता जज साहबका एक लिफाफा भी लाया था; जिसमें एक कागज था और उसपर एक ही पंक्ति लिखी थी पुत्रि पवित्र किए कुल दोऊ ।
नीचे पिता और माता दोनोंके हस्ताक्षर थे। लक्ष्मी उस कागजको छातीसे चिपकाकर देरतक रोती रही। जज साहबने गुमाश्तेको सब काम समझा दिया था। मकानका एक नक्शा भी उसे दिया था। गुमाश्तेने गाँवके पास ही एक खुली जगह पसंद की। जमींदार उस जगहको बहूके नामपर मुफ्त ही देना चाहता था, पर गुमाश्तेने कहा कि जज साहबकी आज्ञा है कि कोई चीज मुफ्त न ली जाय। अतएव जमींदारने मामूली-सा दाम लेकर जज साहबके वचनकी रक्षा की।
पड़ोसके एक दूसरे गाँवके एक जमींदारने पक्का मकान बनवानेके लिये ईंटोंका पजावा लगवा रखा था। ईंटोंकी जरूरत सुनकर वह स्वयं आया और बहूके नामपर ईंटें मुफ्त ले लिये जानेका आग्रह करने लगा, पर गुमास्तेने स्वीकार नहीं किया। अन्तमें में जो लागत लगी थी, उतना रुपया देकर ईंटें ले ली गयीं।
मजदूर बिना मजदूरी लिये काम करना चाहते थे, पर बहूने रोक दिया और कहा कि सबको मजदूरी लेनी होगी।
दो राजगीर और भी रख लिये गये पास-पड़ोसके गाड़ीवाले अपनी गाड़ियाँ लेकर दौड़ पड़े। पजावेकी कुल ईंटें ढोकर आ गयीं। मजदूरोंकी कमी थी ही नहीं। एक लंबे-चौड़े अहातेके बीचमें एक छोटा-सा सीमेंटके पलस्तरका पक्का मकान, जिसमें दो कमरे नीचे और दो ऊपर तथा रसोई घर, स्नानागार और पाखाना थे, दो तीन हफ्तोंके बीचमें बनकर तैयार हो गया। अहाते में फूलों और फलोंके पेड़-पौधे भी लगा दिये गये। एक पक्की कुइयाँ भी तैयार करा दी गयी।
युवकको अभीतक किसी बातका पता नहीं था। लक्ष्मीने भी कुछ लिखना उचित नहीं समझा क्योंकि भेद खुल जानेसे पतिको लज्जा आती। और जज साहबने भी लक्ष्मीको दूसरे पत्रमें लिख भेजा था कि वहाँका कोई समाचार वह अपने पतिको न लिखे। गुमाश्तेका पत्र पाकर जज साहबने गृह प्रवेशकीसाइत पूछी और गुमाश्ते को लिखा कि साइतके दिन हमें लक्ष्मीकी माँ और उसके पति भी आ जायेंगे एक हजार व्यक्तियोंको भोजन करानेकी पूरी तैयारी कर रखो।
लक्ष्मीने ससुरके लिये नेवारका एक सुन्दर-सा पलंग, उसपर बिछानेकी दरी, गद्दा और चादर, तकिये और मसहरी गाँवहीमें मँगा लिया था चाँदीका एक फर्शी हुक्का, चाँदीको चिलम, चाँदीका पीकदान साथ लेते आनेके लिये उसने पिताको पत्र लिखा था। सब चीजें आ गयी थीं।
ठीक समयपर बड़ी धूम-धामसे गृह प्रवेश हुआ। सबसे पहले युवकके पिता सुन्दर वस्त्र पहने हुए मकानके अंदर गये। बढ़िया चादर बिछी हुई नेवारकी पलंगपर बैठाये गये, पास ही लक्ष्मीने स्वयं चिलम चढ़ाकर फर्शी हुक्का रख दिया। लक्ष्मीने ससुरके लिये एक सुन्दर-सा देहाती जूता भी बनवाया था; वही पहनकर ससुरने गृहमें प्रवेश किया था, वह पलंग के नीचे बड़ी शोभा दे रहा था। पलंगके नीचे चाँदीका पीकदान भी रखा था। ससुरको पलँगपर बैठाकर और हुक्केकी सुनहली निगाली उसके मुँहमें देकर बहूने आँचलका छोर पकड़कर तीन बार उसके चरण हुए। ससुरके मुँहसे तो बात ही नहीं निकलती थी। उसका तो गला फूल-फूलकर रह जाता था। हाँ, उसकी आँखें दिनभर अश्रुधारा गिराती रही।
प्रेम छिपाये ना छिपै, जा घट परगट होय।
जो पै मुख बोलै नहीं, नयन देत हैं रोय ॥
गृहप्रवेश कराके लक्ष्मीके माता-पिता एक कमरे में जा बैठे थे। समुरको पर्लंगपर बैठाकर और पतिको उसके पास छोड़कर बहू अपने माता-पिताके कमरे में गयी। पहले वह पिताकी गोदमें जा पड़ी। पिता उसे देरतक चिपटाये रहे और आँसू गिराते रहे। फिर वह माताके गलेसे लिपट गयी। दोनों बाँहें गले में लपेटकर वह मूर्च्छित सी हो गयी माँ-बेटी देतक रोती रहीं।
माता-पिता से मिलकर बहू निमन्त्रितोंके लिये भोजनको व्यवस्थामें लगी। उसने छोटी से छोटी कमीको भी खोज निकाला और उसे पूरा कराया। गृह प्रवेशके दिन बड़ी भीड़ थी। आस-पासके गाँवोंकी स्त्रियाँ, जिनमें वृद्धा, युवती, बालिका सब उम्रोंकी थीं, बहूकादर्शन करने आयी थीं। गरीब और नीची जातिकी स्त्रियोंका एक झुंड अलग खड़ा था। उनके कपड़े गंदे और फटे-पुराने थे। भले घरोंकी स्त्रियोंके बीचमें आने और बैठनेका उनको साहस नहीं होता था। बहू स्वयं उनके पास गयी और एक-एकका हाथ पकड़कर ले आयी और बिछी हुई दरीपर एक तरफ उन्हें बैठा दिया और उनके गंदे कपड़ोंका विचार किये बिना उनके बीचमें बैठ गयी। सबका परिचय पूछा और स्वागत-सत्कारमें जो पान - इलायची अन्य स्त्रियोंको दिया गया, वहीं उनको भी दिया। चारों ओरसे बहूपर आशीर्वादकी वृष्टि होने लगी।
संध्याको निमन्त्रितोंको भोजन कराया गया। लोग प्रत्येक कौरके साथ बहूको आशीर्वाद देते थे। जबतक वे भोजन करते रहे, बहूके ही गुणोंका बखान करते रहे, ऐसी शोभा बनी कि कुछ कहते नहीं बनता।
युवक तो यह सब दृश्य देखकर अवाक् हो गया था। पत्नीके गुणोंपर वह ऐसा मुग्ध हो गया था कि दोनों आमने-सामने होते तो उसके मुँहसे बात भी नहीं निकलती थी। दिनभर उसकी आँखें भरी रहीं। दो दिन उसी मकानमें रहकर लक्ष्मीके ससुरकेलिये वर्षभर खानेका सामान घरमें रखवाकर लक्ष्मीके नौकरको उन्होंके पास छोड़कर और युवककी एक. चाचीको, जो बहुत गरीब और अकेली थी, लक्ष्मीके ससुरके लिये खाना बनानेके लिये नियुक्त करके जज साहब अपनी पुत्री, उसकी माता और युवकको साथ लेकर अपने घर लौट गये। जानेके दिन आसपासके दस-पाँच मीलोंके हजारों पुरुष-स्त्री बहूको विदा करने आये थे। वह दृश्य तो अद्भुत था। आज भी लोग आँखोंमें हर्षके आँसू भरकर बहूको याद करते हैं। वह पक्का मकान, जो सड़कसे थोड़ी दूरपर है,
आज भी बहूके कीर्तिस्तम्भकी तरह खड़ा है। युवक विदेशसे सम्मानपूर्ण डिग्री लेकर वापस आया है और कहीं किसी बड़े पदपर है। बहू उसीके साथ है
एक बी0 ए0 बहूकी इस प्रकारकी कथा शायद यह सबसे पहली है और समस्त बी0 ए0 बहुओंके लिये गर्वकी वस्तु है। हम ऐसी कथाएँ और सुनना चाहते हैं।
यह रामचरितमानसका चमत्कार है जिसने चुपचाप लक्ष्मीके जीवनमें ऐसा प्रकाश-पुञ्ज भर दिया।
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draaivarane kahaa- 'gaada़ee bhaaree hai, ekake maanakee naheen.' yuvakane musakaraakar kahaa-dekho to sahee.
draaivar apanee seetapar baith gayaa. yuvakane akele hee gaada़eeko dastak dhakel diyaa. enjin chalane lagaa.
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yuvak jaj saahabakee bagalamen aakar baith gayaa. jaj saahabane poochha-taachh kee to yuvakane bataaya ki vah yunivarsiteeka chhaatr hai. amuk jileka ek gareeb kutumbaka lada़ka hai. maitrikase lekar ema0 e0 tak baraabar pratham aate rahane se use chhaatravritti milatee rahee; usane aur kuchh angarejee kahaaniyonke anuvaadase paarishramik paakar ema0 e0 pratham shrenee men paas kar liya aur ab use videshamen jaakar shiksha grahan karaneke liye sarakaaree chhaatravritti milegee. vah do maheene ke andar videsh chala jaayagaa.
jaj saahabaka haal to 'pairat thake thaah janu paaee' jaisa ho gayaa. baat karate-karate ve apanee kotheepar a gaye svayan utare, yuvakako bhee utaara aur kaha aapane raastemen meree bada़ee sahaayata kee. ab kuchh jal paan karake tab jaane paaiyegaa.
yuvakako baithakamen baithaakar jaj saahab andar gayeaur lakshmee tatha usakee maataako bhee saath lekar aaye aur unase yuvakaka parichay karaayaa. isake baad naukar jal - dhaanaka saamaan lekar aaya aur yuvakako jaj saahabane bada़e premapoorvak jal paan karaayaa. isake baad yuvakako jaj saahab aksar bulaaya karate the aur vah aataa-jaata rahaa.
gareeb yuvakake jeevanamen yah pahala hee avasar tha, jab kisee raeesane itane aadarase use baithaaya aur khilaaya pilaaya ho
antamen yah hua ki jaj saahabane lakshmeeka vivaah yuvakase kar diyaa.
yuvakake videsh jaaneke din nikat chale a rahe the. jaj saahabane socha ki lakshmee kuchh din apane patike saath usake gaanv ho aaye to achchhaa; taaki dononmen premaka bandhan aur dridha़ ho jaay aur yuvak videshamen kisee any streepar aasakt n ho.
jaj saahabaka prastaav sunakar yuvakane kahaa- main gaanv jaakar gharako theeka-thaak kara aaoon, tab bahooko le jaaoon.
yuvak gaanv aayaa. gaanv doosare jilemen shaharase bahut door tha aur poora dehaat thaa. usaka ghar bhee ek toota phoota khandahar hee tha usapar ek sada़aa-gala chhappar rakha thaa. usake neeche usaka budda baap dinabhar baithe-baithe hukka piya karata thaa.
yuvakake chacha dhanee the aur unakee bakharee bahut bada़ee aur beton-poton aur bahuonse bharee huee thee. yuvakane chachaase praarthana kee ki use vah apane hee gharaka bataayen aur pandrah dinonke liye usako bahooko apane gharamen rahane den. chachaane sveekaar kar liyaa.
gharake baaharee baraamade men ek kotharee thee yuvakane useeko saaph karaake usamen jarooree saamaan rakhava diye ek kurasee aur mej bhee rakhava diye. bahoo chachaake gharamen khaana kha liya karegee aur usee kothareemen rahegee. ek lada़keko naukar rakh liya gayaa.
yuvak vaapas jaakar bahooko le aayaa. paancha-saat din bahooke saath gaanvamen rahakar yuvak apanee videsh yaatraakee taiyaaree karaneke liye shaharako vaapas gaya aur bahoo chacha gharamen akelee rahane lagee. donon vakt gharake andar jaakar khaana kha aatee aur naukarakee sahaayataase donon vakt kothareeke andar chaay banaakar pee liyaakaratee. chaayaka saamaan vah saath laayee thee.
do hee chaar dinonmen bahooka parichay gaanvakee praaya: sab chhotee-bada़ee striyon aur bachchonse ho gayaa. bahuka svabhaav milanasaar thaa. maataa-pitaakee dhaarmik shikshaaonse aur raamacharitamaanasake niyamit paathase usake hridayamen komalata aur sahishnuta a gayee thee. sabase vah hansakar premapoorvak milatee, bachchonko pyaar karatee, biskut detee aur sabako aadarase baithaatee. reshamee | saada़eeke andar lubhaavane gun dekhakar mailee-kuchailee aur phatee dhotiyonvaalee graameen striyonkee jhijhak jaatee rahee aur ve khulakar baaten karane lageen.
bahooko seenaa-pirona achchha aata thaa. haaramoniyam bajaana aur gaana bhee aata thaa. kanth sureela tha, namrata aur vinayaka pradarshan karana vah jaanatee thee, usaka to darabaar lagane lagaa. kothareemen dinabhar chahala-pahal rahatee. gaanvake narakamen maano svarg utar aaya thaa.
gaanvakee striyonka mukhy vishay praayah paraninda hua karata hai. kuchh striyaan to aisee hotee hain ki taane maarana, vyang bolana, jhagada़e lagaana unaka peshaa-sa ho jaata hai aur ve gharonmen chakkar lagaaya hee karatee hain. ek din aisee hee ek stree lakshmeeke paas aayee aur usane bina sankochake kahaa- tumhaara baap andha tha kya, jo usane bina ghar dekhe vivaah kar diya ?
lakshmeene chakit hokar poochhaa- kya yah mera ghar naheen hai?
stree usaka haath pakada़kar baraamade men le gayee aur ungaleeke ishaarese yuvakake khandaharakee or dikhaakar kaha yah dekho, tumhaara ghar hai aur vah tumhaare sasurajee hain, jo chhapparake neeche baithakar hukka pee rahe hain. yah ghar to tumhaare patike chachaaka hai, jo alag rahate hain.'
lakshmeene us streeko vida kiya aur kotharee men aakar usane grihastheeke jarooree saamaan baratan, aata, daal, chaaval, mircha-masaalekee ek soochee banaayee aur naukarako bulaakar apana saamaan bandhavaakar vah use usee khandaharamen bhejavaane lagee.
chacha sun paaye. ve dauda़e aaye. aansoo bharakar kahane hogee. bahoo. yah kya kar rahee ho? meree bada़ee badanaameegharakee striyaan bhee baahar nikal aayeen. ve bhee samajhaane lageen. lakshmeene sabako ek uttar diyaa- donon ghar apane hee hain. main isamen bhee rahengee aur usamen bhee rahoongee. phir usane chachaake haathamen kuchh rupaye aur saamaanako soochee dekar kahaa- yah saamaan baajaarase abhee manga deejiye.
chacha laachaar hokar bahut udaas manase baajaarakee or gaye, jo ek meel door thaa. bahoo khandaharamen aayee. aate hee usane aanchalaka chhor pakada़kar teen baar sasuraka pair chhuaa. phir khandaharamen gayee. ek kotharee . aur usake saamane chhotaa-sa osaara, gharakee seema itanee hee thee. naukarane saamaan laakar baahar rakh diyaa. bahoone usase gobar mangaayaah ek baaltee paanee mangaayaa. kotharee aur osaareko jhaadoo lagaakar saaph kiyaa. phir reshamee saada़eekee kachhaanda़ maarakar vah ghar leepane baith gayee.
yah khabar baat kee baatamen gaanvabharamen aur usake aasa-paasake gaanvonmen bhee pahunch gayee. jhund ke jhund stree-purush dekhane aaye bheeda़ lag gayee. kaee striyaan leepaneke liye aage badha़een; par bahune kiseeko haath lagaane naheen diyaa. vriddha striyaan aansoo ponchhane lageen. aisee bahoo to unhonne kabhee dekhee hee naheen thee. purush log use deveeka avataar maanakar shraddhaase dekhane lage.
itanemen baajaarase baratan a gaye bahune paanee mangavaakar kothareemen snaan kiyaa. phir vah rasoee banaane baith gayee. sheeghr hee bhojan taiyaar karake usane sasurajeese kaha ki ve snaan kar len.
sasurajee aankhonmen aansoo bhare moha-mugdh baithe the. kiseese kuchh bolate n the bahookee praarthana sunakar uthe, kuenpar jaakar nahaaya aur aakar bhojan kiyaa. varatan sab naye the. khandaharamen ek hee jhilanga khaat thee. bahoone usapar daree bichha dee. sasurako usapar baithaakar, chilam chadha़aakar hukka unake haathamen thama diyaa. phir usane svayan bhojan kiyaa.
bahune chachaase kahaa- do nayee khaaten aur ek chaukee aaj hee chaahiye. baadhake liye usane chachaako paise bhee de diye. chacha to baadh khareedane baajaar chale gaye. lohaar aur badha़ee vahaan maujood the. sabhee to aananda-vibhor ho rahe the. har ekake manamen yaheelaalasa jaag uthee thee ki vah bahookee koee seva kare. lohaarane kahaa-main paateeke liye abhee baans kaatakar laata hoon aur paaye gadha़kar khaaten bana deta hoon.
badha़eene kahaa- main chaukee bana doongaa. baadh bhee a gayaa. khaat binanevaala apanee seva prastut karaneke liye munh dekh raha thaa. usane do khaaten bin deen. sasurakee jhiloonga khaat bhee bahoone aaye gayeke liye binavaakar alag rakh lee. badha़eene chaukee bana dee. shaamatak yah sab kuchh ho gayaa.
raat men bahoone apane maataa-pitaako ek patr likha, jisamen dinabhar men jo kuchh hua, sab eka-ek karake likha, par pitaako yah naheen likha ki tumane bhool kee aur mujhe kahaan se kahaan laakar daal diyaa. balki bada़e ullaasake saath yah likha ki mujhe aapakee aur maataajeeko sampoorn shikshaake upayog karaneka mauka mil gaya hai.
bahooke jhonpada़epar to mela lagane lagaa. sab usako devee maanane lage the. baraabar umrako bahuen doosare gaanvonse aateen to aanchalake chhorako haathonmen lekar usaka pair chhooneko jhukateen. vah lajjaake maare apane pair saada़ee men chhipa letee. unako paas baithaatee, sabase parichay karatee aur apane kaadha़e hue bela-boote dikhaatee .
gaanvonke vivaahit aur avivaahit yuvak bhee bahooko dekhane aate. bahoo to parada karatee naheen thee, par yuvakonkee drishtimen kaamukata naheen thee balki jalakee rekhaaen hotee thee aisa kathor tap to unhonne kabhee dekha hee naheen thaa. raanamen bahoo jhonpaड़eke saamane gaanv vriddha svi jama ho jaatee. devakanya jaisee bahoo beechamen aakar baith jaatee. aaree aaree kus kaॉsi, beechamen sonekee raasi .' bahoo vriddhaaonko aanchalase charan chhookar pranaam karatee meethee meethee hansee-thatholee bhee karatee. vriddhaaen bahooke svabhaavapar mugdh hokar sohar gaane lagateen. log hansate to ve kahatee-bahoo beta hoga, bhagavaan autaar lenge, ham abheese sohar gaatee hain. yah bechaaree sunakar lajjaake maare jameenamen gada़-see jaatee thee.
chauthe roj jaj saahabakee bhejee huee ek laaree aayee, jisamen seement ke bore, daravaajon aur khida़kiyon thok aur palle, palang, meja-kursiyon aur jarooreelohaa-lakada़ bhare the aur ek gumaashta aur do raajageer saath the.
gumaashta jaj saahabaka ek liphaapha bhee laaya thaa; jisamen ek kaagaj tha aur usapar ek hee pankti likhee thee putri pavitr kie kul dooo .
neeche pita aur maata dononke hastaakshar the. lakshmee us kaagajako chhaateese chipakaakar deratak rotee rahee. jaj saahabane gumaashteko sab kaam samajha diya thaa. makaanaka ek naksha bhee use diya thaa. gumaashtene gaanvake paas hee ek khulee jagah pasand kee. jameendaar us jagahako bahooke naamapar mupht hee dena chaahata tha, par gumaashtene kaha ki jaj saahabakee aajna hai ki koee cheej mupht n lee jaaya. ataev jameendaarane maamoolee-sa daam lekar jaj saahabake vachanakee raksha kee.
pada़osake ek doosare gaanvake ek jameendaarane pakka makaan banavaaneke liye eentonka pajaava lagava rakha thaa. eentonkee jaroorat sunakar vah svayan aaya aur bahooke naamapar eenten mupht le liye jaaneka aagrah karane laga, par gumaastene sveekaar naheen kiyaa. antamen men jo laagat lagee thee, utana rupaya dekar eenten le lee gayeen.
majadoor bina majadooree liye kaam karana chaahate the, par bahoone rok diya aur kaha ki sabako majadooree lenee hogee.
do raajageer aur bhee rakh liye gaye paasa-pada़osake gaada़eevaale apanee gaada़iyaan lekar dauda़ pada़e. pajaavekee kul eenten dhokar a gayeen. majadooronkee kamee thee hee naheen. ek lanbe-chauda़e ahaateke beechamen ek chhotaa-sa seementake palastaraka pakka makaan, jisamen do kamare neeche aur do oopar tatha rasoee ghar, snaanaagaar aur paakhaana the, do teen haphtonke beechamen banakar taiyaar ho gayaa. ahaate men phoolon aur phalonke peda़-paudhe bhee laga diye gaye. ek pakkee kuiyaan bhee taiyaar kara dee gayee.
yuvakako abheetak kisee baataka pata naheen thaa. lakshmeene bhee kuchh likhana uchit naheen samajha kyonki bhed khul jaanese patiko lajja aatee. aur jaj saahabane bhee lakshmeeko doosare patramen likh bheja tha ki vahaanka koee samaachaar vah apane patiko n likhe. gumaashteka patr paakar jaj saahabane grih praveshakeesaait poochhee aur gumaashte ko likha ki saaitake din hamen lakshmeekee maan aur usake pati bhee a jaayenge ek hajaar vyaktiyonko bhojan karaanekee pooree taiyaaree kar rakho.
lakshmeene sasurake liye nevaaraka ek sundara-sa palang, usapar bichhaanekee daree, gadda aur chaadar, takiye aur masaharee gaanvaheemen manga liya tha chaandeeka ek pharshee hukka, chaandeeko chilam, chaandeeka peekadaan saath lete aaneke liye usane pitaako patr likha thaa. sab cheejen a gayee theen.
theek samayapar bada़ee dhooma-dhaamase grih pravesh huaa. sabase pahale yuvakake pita sundar vastr pahane hue makaanake andar gaye. badha़iya chaadar bichhee huee nevaarakee palangapar baithaaye gaye, paas hee lakshmeene svayan chilam chadha़aakar pharshee hukka rakh diyaa. lakshmeene sasurake liye ek sundara-sa dehaatee joota bhee banavaaya thaa; vahee pahanakar sasurane grihamen pravesh kiya tha, vah palang ke neeche bada़ee shobha de raha thaa. palangake neeche chaandeeka peekadaan bhee rakha thaa. sasurako palangapar baithaakar aur hukkekee sunahalee nigaalee usake munhamen dekar bahoone aanchalaka chhor pakada़kar teen baar usake charan hue. sasurake munhase to baat hee naheen nikalatee thee. usaka to gala phoola-phoolakar rah jaata thaa. haan, usakee aankhen dinabhar ashrudhaara giraatee rahee.
prem chhipaaye na chhipai, ja ghat paragat hoya.
jo pai mukh bolai naheen, nayan det hain roy ..
grihapravesh karaake lakshmeeke maataa-pita ek kamare men ja baithe the. samurako parlangapar baithaakar aur patiko usake paas chhoda़kar bahoo apane maataa-pitaake kamare men gayee. pahale vah pitaakee godamen ja pada़ee. pita use deratak chipataaye rahe aur aansoo giraate rahe. phir vah maataake galese lipat gayee. donon baanhen gale men lapetakar vah moorchchhit see ho gayee maan-betee detak rotee raheen.
maataa-pita se milakar bahoo nimantritonke liye bhojanako vyavasthaamen lagee. usane chhotee se chhotee kameeko bhee khoj nikaala aur use poora karaayaa. grih praveshake din bada़ee bheeda़ thee. aasa-paasake gaanvonkee striyaan, jinamen vriddha, yuvatee, baalika sab umronkee theen, bahookaadarshan karane aayee theen. gareeb aur neechee jaatikee striyonka ek jhund alag khada़a thaa. unake kapada़e gande aur phate-puraane the. bhale gharonkee striyonke beechamen aane aur baithaneka unako saahas naheen hota thaa. bahoo svayan unake paas gayee aur eka-ekaka haath pakada़kar le aayee aur bichhee huee dareepar ek taraph unhen baitha diya aur unake gande kapada़onka vichaar kiye bina unake beechamen baith gayee. sabaka parichay poochha aur svaagata-satkaaramen jo paan - ilaayachee any striyonko diya gaya, vaheen unako bhee diyaa. chaaron orase bahoopar aasheervaadakee vrishti hone lagee.
sandhyaako nimantritonko bhojan karaaya gayaa. log pratyek kaurake saath bahooko aasheervaad dete the. jabatak ve bhojan karate rahe, bahooke hee gunonka bakhaan karate rahe, aisee shobha banee ki kuchh kahate naheen banataa.
yuvak to yah sab drishy dekhakar avaak ho gaya thaa. patneeke gunonpar vah aisa mugdh ho gaya tha ki donon aamane-saamane hote to usake munhase baat bhee naheen nikalatee thee. dinabhar usakee aankhen bharee raheen. do din usee makaanamen rahakar lakshmeeke sasurakeliye varshabhar khaaneka saamaan gharamen rakhavaakar lakshmeeke naukarako unhonke paas chhoda़kar aur yuvakakee eka. chaacheeko, jo bahut gareeb aur akelee thee, lakshmeeke sasurake liye khaana banaaneke liye niyukt karake jaj saahab apanee putree, usakee maata aur yuvakako saath lekar apane ghar laut gaye. jaaneke din aasapaasake dasa-paanch meelonke hajaaron purusha-stree bahooko vida karane aaye the. vah drishy to adbhut thaa. aaj bhee log aankhonmen harshake aansoo bharakar bahooko yaad karate hain. vah pakka makaan, jo sada़kase thoda़ee doorapar hai,
aaj bhee bahooke keertistambhakee tarah khada़a hai. yuvak videshase sammaanapoorn digree lekar vaapas aaya hai aur kaheen kisee bada़e padapar hai. bahoo useeke saath hai
ek bee0 e0 bahookee is prakaarakee katha shaayad yah sabase pahalee hai aur samast bee0 e0 bahuonke liye garvakee vastu hai. ham aisee kathaaen aur sunana chaahate hain.
yah raamacharitamaanasaka chamatkaar hai jisane chupachaap lakshmeeke jeevanamen aisa prakaasha-punj bhar diyaa.