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प्रेमपात्र कौन  [Moral Story]
छोटी सी कहानी - हिन्दी कथा (हिन्दी कथा)

बिल्वमङ्गलके पिताका श्राद्ध था। विवश होकर बिल्वमङ्गलको घर रहना पड़ा। जैसे-तैसे दिन बीता; क्या हुआ, कैसे हुआ - यह सब किसे पता था । बिल्वमङ्गल बेमनसे सब काम कर रहे थे। एक-एक क्षण उन्हें भारी हो रहा था। कब इस उलझनसे छूटें और कब अपनी प्रेयसी वेश्या चिन्तामणिके पास जायँ-यही चिन्ता थी उन्हें ।

संध्याको बिल्वमङ्गलको छुटकारा मिला । दौड़े दौड़े नदी किनारे गये; किंतु उसी समय आकाशमें घटाएँ छा गयीं, वेगकी आँधी आयी, चारों ओर अन्धकार छा गया। कोई केवट नदी-किनारे मिला नहीं। नौका ढूँढ़ने में देर हुई। रात्रि हो गयी। जब कोई साधन पार जानेको नहीं मिला तब बिल्वमङ्गल नदीमें कूद पड़े। संयोगवश एक बहता मुर्दा मिल गया। उसे लकड़ी समझकर बिल्वमङ्गलने पकड़ लिया और उसीके सहारे नदी-पार हुए।

आँधी-पानीके मारे वेश्याने अपने घरका द्वार तथा खिड़कियाँ बंद कर दी थीं। बिल्वमङ्गलके घर श्राद्ध होनेसे उसके आनेकी बात थी ही नहीं, अतः वेश्या निश्चिन्त सो गयी थी। बिल्वमङ्गलने उसे द्वारपर पहुँचकर बहुत पुकारा, द्वार खटखटाया; किंतु वर्षा तथा आँधीके कारण उनका शब्द वेश्या सुन नहीं सकी। बिजली चमकी, बिल्वमङ्गलको एक खिड़कीसे रस्सी-जैसा कुछ लटकता दीखा। वे उसे पकड़कर ऊपर चढ़ गये। वह खिड़की संयोगवश खुली थी, अतः भीतर पहुँच गये। जगायी जानेपर चिन्तामणि पानीसे भीगे बिल्वमङ्गलको देखकर चौंक गयी। उसने पूछा- 'तुम इतनी रात गये कैसे आये ? तुम्हारे शरीरसे इतनी दुर्गन्ध क्यों आ रही है?' बिल्वमङ्गलने बताया कि वे लकड़ीके तख्तेपर बैठकर नदी पार हुए थे और रेशमकी रस्सीके सहारे घरमें पहुँचे। वर्षा रुक गयी थी। चिन्तामणिने दीपक लेकर देखा तो खिड़कीसे बाहर भयंकर सर्प लटक रहा था। अब तो वह बिल्वमङ्गलके साथ नदी-तटतक गयी। वहाँ वह जलजीवोंसे स्थान-स्थानपर नुचा, सड़ी दुर्गन्ध देता मुर्दा पड़ा था जिसे काष्ठ समझकर, जिसपर बैठकर बिल्वमङ्गल नदी पार हुए थे ।

वेश्याका मन घृणासे भर गया। उसने कहा- 'ब्राह्मण कुमार! आज तुम्हारे पिताका श्राद्ध था और फिर भी तुम मेरे यहाँ दौड़े आये। जिसके प्रेममें तुम्हें सड़े मुर्देकी दुर्गन्ध नहीं आयी, काला नाग तुम्हें रेशमकी डोरी जान पड़ा, वह तुम्हारा प्रेमपात्र कौन है—यह आँख खोलकर देख लो। यह मेरा देह भी इसी मुर्दे जैसा है। इसमें भी ऐसा ही मांस, हड्डियाँ, घृणित मल-मूत्र, नसें, मज्जा मेद ही है। यह मुर्दा है तुम्हारा प्रेमपात्र ? अरे! जितना प्रेम तुम्हारा इस मुर्देसे है, उसका एक अंश भी श्रीकृष्ण होता तो तुम निश्चय कृतार्थ हो जाते।'

बात ठिकाने लग गयी। बिल्वमङ्गलने वेश्या चिन्तामणिको प्रणाम किया- 'तुम्हीं मेरी गुरु हो !' वे वहींसे चल पड़े व्रजकी ओर। सचमुच प्रेमपात्र कौन है, यह आज उन्होंने जान लिया था। सु0 सिं0



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premapaatr kauna

bilvamangalake pitaaka shraaddh thaa. vivash hokar bilvamangalako ghar rahana pada़aa. jaise-taise din beetaa; kya hua, kaise hua - yah sab kise pata tha . bilvamangal bemanase sab kaam kar rahe the. eka-ek kshan unhen bhaaree ho raha thaa. kab is ulajhanase chhooten aur kab apanee preyasee veshya chintaamanike paas jaayan-yahee chinta thee unhen .

sandhyaako bilvamangalako chhutakaara mila . dauड़e dauda़e nadee kinaare gaye; kintu usee samay aakaashamen ghataaen chha gayeen, vegakee aandhee aayee, chaaron or andhakaar chha gayaa. koee kevat nadee-kinaare mila naheen. nauka dhoonढ़ne men der huee. raatri ho gayee. jab koee saadhan paar jaaneko naheen mila tab bilvamangal nadeemen kood pada़e. sanyogavash ek bahata murda mil gayaa. use lakada़ee samajhakar bilvamangalane pakada़ liya aur useeke sahaare nadee-paar hue.

aandhee-paaneeke maare veshyaane apane gharaka dvaar tatha khida़kiyaan band kar dee theen. bilvamangalake ghar shraaddh honese usake aanekee baat thee hee naheen, atah veshya nishchint so gayee thee. bilvamangalane use dvaarapar pahunchakar bahut pukaara, dvaar khatakhataayaa; kintu varsha tatha aandheeke kaaran unaka shabd veshya sun naheen sakee. bijalee chamakee, bilvamangalako ek khida़keese rassee-jaisa kuchh latakata deekhaa. ve use pakada़kar oopar chadha़ gaye. vah khida़kee sanyogavash khulee thee, atah bheetar pahunch gaye. jagaayee jaanepar chintaamani paaneese bheege bilvamangalako dekhakar chaunk gayee. usane poochhaa- 'tum itanee raat gaye kaise aaye ? tumhaare shareerase itanee durgandh kyon a rahee hai?' bilvamangalane bataaya ki ve lakada़eeke takhtepar baithakar nadee paar hue the aur reshamakee rasseeke sahaare gharamen pahunche. varsha ruk gayee thee. chintaamanine deepak lekar dekha to khida़keese baahar bhayankar sarp latak raha thaa. ab to vah bilvamangalake saath nadee-tatatak gayee. vahaan vah jalajeevonse sthaana-sthaanapar nucha, sada़ee durgandh deta murda pada़a tha jise kaashth samajhakar, jisapar baithakar bilvamangal nadee paar hue the .

veshyaaka man ghrinaase bhar gayaa. usane kahaa- 'braahman kumaara! aaj tumhaare pitaaka shraaddh tha aur phir bhee tum mere yahaan dauda़e aaye. jisake premamen tumhen sada़e murdekee durgandh naheen aayee, kaala naag tumhen reshamakee doree jaan pada़a, vah tumhaara premapaatr kaun hai—yah aankh kholakar dekh lo. yah mera deh bhee isee murde jaisa hai. isamen bhee aisa hee maans, haddiyaan, ghrinit mala-mootr, nasen, majja med hee hai. yah murda hai tumhaara premapaatr ? are! jitana prem tumhaara is murdese hai, usaka ek ansh bhee shreekrishn hota to tum nishchay kritaarth ho jaate.'

baat thikaane lag gayee. bilvamangalane veshya chintaamaniko pranaam kiyaa- 'tumheen meree guru ho !' ve vaheense chal pada़e vrajakee ora. sachamuch premapaatr kaun hai, yah aaj unhonne jaan liya thaa. su0 sin0

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