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दृढ़ निष्ठा  [Spiritual Story]
हिन्दी कथा - Wisdom Story (प्रेरक कहानी)

पर्वतराजकुमारी उमा तपस्या कर रही थीं। उनके जो नित्य आराध्य हैं, वे ठहरे नित्य-निष्काम। उन योगीश्वर चन्द्रमौलिमें कामना होगी और वे पाणिग्रहण | करेंगे किसी कुमारीका, यह तो सम्भावना ही नहीं। परंतु हैं आशुतोष जब वे औढरदानी प्रसन्न हो जाते हैं, उनके चरणोंमें किसीकी कैसी भी कामना अपूर्ण कहाँ रही है। इसलिये पार्वती उन शशाङ्कशेखरको तपस्या से प्रसन्न करना चाहती थीं।

जिसकी आराधना की जा रही थी, वह स्वयं आया था; किंतु जबतक वह स्वयं अपना परिचय न दे उसे कोई पहचान कैसे सकता है। पार्वतीके सम्मुख तो एक युवक ब्रह्मचारी खड़ा था। रूखी जटाएँ, वल्कल पहिने, कमण्डलु और पलाशदण्ड लिये वह ब्रह्मचारी - बड़ा वाचाल था वह तपस्विनी उमाका अस्वीकार करनेसे पूर्व ही उसने उनकी तपस्याका कारण पूछा और तब उसकी वाणी पता नहीं कैसे अहो कंठी 'सभी देवता और लोकपाल तुम्हारे पिता हिमालयके प्रदेशों में ही रहते हैं तुम्हारे जैसी सुकुमारी क्या तपस्यार्क योग्य है? मैंने दीर्घकालतक तप किया है,चाहो तो मेरा आधा या पूरा तप ले लो; पर तुम्हें चाहिये

क्या ? तुम्हें अलभ्य क्या है? तुम इच्छा करो तो

त्रिभुवनके स्वामी भगवान् विष्णु भी।'

लेकिन उमाने ऐसा भाव दिखाया कि ब्रह्मचारी दो क्षणको रुक गया; किंतु वह फिर बोला- 'तुम्हें क्या धुन चढ़ी है? योग्य वरमें तीन गुण देखे जाते हैं-1 सौन्दर्य, 2 कुलीनता और 3 सम्पति इन तीनोंमेंसे एक भी नाम मात्रको भी शिवमें है? नीलकण्ठ, त्रिलोचन, जटाधारी, विभूति पोते, साँप लपेटे, त्रिशूल, डमरू और खप्पर लिये शिवमें कहीं सौन्दर्य दीखता है तुम्हें? उनकी सम्पत्तिका तो पूछना ही क्या नंगे रहते हैं या बहुत हुआ तो चमड़ा लपेट लिया। कोई नहीं जानता कि उनकी उत्पत्ति कैसे हुई।'
ब्रह्मचारी पता नहीं क्या-क्या कहता; किंतु यह आराध्यकी निन्दा सुने कौन? उमाका तो दृढ़ निश्चय था

जनम कोटि लगि रगर हमारी।

बरउँ संभु न त रहउँ कुआरी ॥

अतः वे अन्यत्र जानेको उठ खड़ी हुई। जहाँ ऐसी दृढ़ निष्ठा है, वहाँ लक्ष्य कहीं अप्राप्त रह सकता है। -सु0 सिं0



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dridha़ nishthaa

parvataraajakumaaree uma tapasya kar rahee theen. unake jo nity aaraadhy hain, ve thahare nitya-nishkaama. un yogeeshvar chandramaulimen kaamana hogee aur ve paanigrahan | karenge kisee kumaareeka, yah to sambhaavana hee naheen. parantu hain aashutosh jab ve audharadaanee prasann ho jaate hain, unake charanonmen kiseekee kaisee bhee kaamana apoorn kahaan rahee hai. isaliye paarvatee un shashaankashekharako tapasya se prasann karana chaahatee theen.

jisakee aaraadhana kee ja rahee thee, vah svayan aaya thaa; kintu jabatak vah svayan apana parichay n de use koee pahachaan kaise sakata hai. paarvateeke sammukh to ek yuvak brahmachaaree khada़a thaa. rookhee jataaen, valkal pahine, kamandalu aur palaashadand liye vah brahmachaaree - bada़a vaachaal tha vah tapasvinee umaaka asveekaar karanese poorv hee usane unakee tapasyaaka kaaran poochha aur tab usakee vaanee pata naheen kaise aho kanthee 'sabhee devata aur lokapaal tumhaare pita himaalayake pradeshon men hee rahate hain tumhaare jaisee sukumaaree kya tapasyaark yogy hai? mainne deerghakaalatak tap kiya hai,chaaho to mera aadha ya poora tap le lo; par tumhen chaahiye

kya ? tumhen alabhy kya hai? tum ichchha karo to

tribhuvanake svaamee bhagavaan vishnu bhee.'

lekin umaane aisa bhaav dikhaaya ki brahmachaaree do kshanako ruk gayaa; kintu vah phir bolaa- 'tumhen kya dhun chadha़ee hai? yogy varamen teen gun dekhe jaate hain-1 saundary, 2 kuleenata aur 3 sampati in teenonmense ek bhee naam maatrako bhee shivamen hai? neelakanth, trilochan, jataadhaaree, vibhooti pote, saanp lapete, trishool, damaroo aur khappar liye shivamen kaheen saundary deekhata hai tumhen? unakee sampattika to poochhana hee kya nange rahate hain ya bahut hua to chamada़a lapet liyaa. koee naheen jaanata ki unakee utpatti kaise huee.'
brahmachaaree pata naheen kyaa-kya kahataa; kintu yah aaraadhyakee ninda sune kauna? umaaka to driढ़ nishchay thaa

janam koti lagi ragar hamaaree.

baraun sanbhu n t rahaun kuaaree ..

atah ve anyatr jaaneko uth khada़ee huee. jahaan aisee dridha़ nishtha hai, vahaan lakshy kaheen apraapt rah sakata hai. -su0 sin0

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