मार्गमें एक घायल सर्प तड़फड़ा रहा था । सहस्रों चींटियाँ उससे चिपटी थीं। पाससे एक सत्पुरुष शिष्यके साथ जा रहे थे। सर्पकी दयनीय दशा देखकर शिष्यने कहा - ' कितना दुखी है यह प्राणी ।'
गुरु बोले- 'कर्मफल तो सबको भोगना ही पड़ता है।' शिष्य - 'इस सर्पने ऐसा क्या पाप किया कि सर्प योनिमें भी उसे यह कष्ट ।'गुरु – 'तुम्हें स्मरण नहीं कि कुछ वर्ष पूर्व इस सरोवरके किनारेसे हमलोग जा रहे थे तो तुमने एक मछुएको मछली मारनेसे रोका था।'
शिष्य——वह दुष्ट मेरे रोकनेपर मेरा ही उपहास करने लगा था।'
गुरु – 'आज वही सर्प है और उसने जिन मछलियोंको मारा था, उन्हें अपना बदला लेनेका अवसर मिला है। वे चींटियाँ होकर उत्पन्न हुई हैं।'
maargamen ek ghaayal sarp tada़phada़a raha tha . sahasron cheentiyaan usase chipatee theen. paasase ek satpurush shishyake saath ja rahe the. sarpakee dayaneey dasha dekhakar shishyane kaha - ' kitana dukhee hai yah praanee .'
guru bole- 'karmaphal to sabako bhogana hee pada़ta hai.' shishy - 'is sarpane aisa kya paap kiya ki sarp yonimen bhee use yah kasht .'guru – 'tumhen smaran naheen ki kuchh varsh poorv is sarovarake kinaarese hamalog ja rahe the to tumane ek machhueko machhalee maaranese roka thaa.'
shishya——vah dusht mere rokanepar mera hee upahaas karane laga thaa.'
guru – 'aaj vahee sarp hai aur usane jin machhaliyonko maara tha, unhen apana badala leneka avasar mila hai. ve cheentiyaan hokar utpann huee hain.'