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डाकू से महात्मा  [हिन्दी कहानी]
प्रेरक कहानी - Spiritual Story (हिन्दी कहानी)

संवत् 1700 के लगभग जैसलमेर राज्यान्तर्गत वारू ग्राममें चौहान क्षत्रिय माधवसिंहजी हुए थे स्वभावसे बहुत ही रजोगुणी थे। डाकुओंका संघटन करके आसपासमें लूट करना इनका दैनिक व्यवहार सा बन गया था। ये विशेषकर जंगलोंमें रहते और उधरसे माल लेकर जब कोई व्यापारी निकलते तो ये उन्हें लूट लेते। इस कारण प्रायः सिंधसे इधर वस्तुओंका आना-जाना बंद-सा हो गया था। फिर भी, अकालके समय कभी-कभी लोग निकटवर्ती मार्गसे जल्दी आने-जाने की बात सोचकर अपने ऊँटोंसे वस्तु लाया ले जाया करते थे। वे कई बार माधवसिंहजीद्वारा लूट लिये जाते थे। यह क्रम कई वर्षोंतक चलता रहा। लोग इनके नामसे ही काँपने लगे थे। एक समय देशमें भयंकर दुष्काल पड़ा, चारों ओर हाहाकार मच गया। उस समय ऊँटोंपर अनाज लेकर कई यात्री सिंधसे आ रहे थे। जिस झाड़ीले जंगलमें माधवसिंहजी रहते थे, उसके पास पहुँचते-पहुँचते सूर्य अस्त हो गया। कतारिये रात्रिकी भयानकताको देखकर आगे चलनानहीं चाहते थे और वहाँ ठहरनेसे लुट जानेका डर था। दैवगति विचित्र होती है, वे वहाँ ठहर गये। खानेके लिये रोटियाँ बनाने लगे। उनमेंसे एकने कहा- 'यहाँ ठहर तो गये, कहीं माधवसिंह आ गये और लूट लिया तो बाल-बच्चे सब नष्ट हो जायँगे।' दूसरेने कहा- 'अब तो श्रीरघुनाथजी ही बचायेंगे।' रात्रिके अन्धकारमें वहीं पास खड़े माधवसिंह ये सब बातें सुन रहे थे। इनकी बातें सुनकर उनका हृदय द्रवित हो गया। वे अपनेको रोक नहीं सके, हठात् कतारियोंके सामने जा पहुँचे। इनको देखते ही वे सब रोटियाँ छोड़कर चिल्लाने लगे। उनको रोते- कराहते देखकर माधवसिंहने कहा- 'भाई! डरो मत, तुम रोटी खाकर यहाँसे चले जाओ। मैं तुम्हें नहीं लूटूंगा। मेरी सम्मतिके बिना मेरे साथी भी तुम्हें कष्ट नहीं देंगे।' यों कहकर उन लोगोंको वहाँसे विदा कर दिया। माधवसिंह रातभर अग्नि जलाकर वहींपर बैठे रहे। उन्होंने अपने सारे कपड़े जला दिये। सबेरे जब उनके साथी आये और पूछा—'यह क्या किया ?' तब आपने कहा- 'भाई! तुमलोगोंमेंसे जो भाई सत्यऔर अहिंसासे अपना उद्धार करना चाहे, वह मेरे साथ रहे। मैं अब कलङ्कको धोकर अपने जीवनको पवित्र करूँगा।' माधवसिंहजीके बर्ताव और कथनसे प्रभावितहोकर सभीने डकैतीका त्याग करके धर्मोचित कार्य करना शुरू किया। आगे चलकर ये ही माधवदासजी वीतराग महात्मा हुए, जिनका स्थान कोडमदेसर है।



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daakoo se mahaatmaa

sanvat 1700 ke lagabhag jaisalamer raajyaantargat vaaroo graamamen chauhaan kshatriy maadhavasinhajee hue the svabhaavase bahut hee rajogunee the. daakuonka sanghatan karake aasapaasamen loot karana inaka dainik vyavahaar sa ban gaya thaa. ye visheshakar jangalonmen rahate aur udharase maal lekar jab koee vyaapaaree nikalate to ye unhen loot lete. is kaaran praayah sindhase idhar vastuonka aanaa-jaana banda-sa ho gaya thaa. phir bhee, akaalake samay kabhee-kabhee log nikatavartee maargase jaldee aane-jaane kee baat sochakar apane oontonse vastu laaya le jaaya karate the. ve kaee baar maadhavasinhajeedvaara loot liye jaate the. yah kram kaee varshontak chalata rahaa. log inake naamase hee kaanpane lage the. ek samay deshamen bhayankar dushkaal pada़a, chaaron or haahaakaar mach gayaa. us samay oontonpar anaaj lekar kaee yaatree sindhase a rahe the. jis jhaada़eele jangalamen maadhavasinhajee rahate the, usake paas pahunchate-pahunchate soory ast ho gayaa. kataariye raatrikee bhayaanakataako dekhakar aage chalanaanaheen chaahate the aur vahaan thaharanese lut jaaneka dar thaa. daivagati vichitr hotee hai, ve vahaan thahar gaye. khaaneke liye rotiyaan banaane lage. unamense ekane kahaa- 'yahaan thahar to gaye, kaheen maadhavasinh a gaye aur loot liya to baala-bachche sab nasht ho jaayange.' doosarene kahaa- 'ab to shreeraghunaathajee hee bachaayenge.' raatrike andhakaaramen vaheen paas khada़e maadhavasinh ye sab baaten sun rahe the. inakee baaten sunakar unaka hriday dravit ho gayaa. ve apaneko rok naheen sake, hathaat kataariyonke saamane ja pahunche. inako dekhate hee ve sab rotiyaan chhoda़kar chillaane lage. unako rote- karaahate dekhakar maadhavasinhane kahaa- 'bhaaee! daro mat, tum rotee khaakar yahaanse chale jaao. main tumhen naheen lootoongaa. meree sammatike bina mere saathee bhee tumhen kasht naheen denge.' yon kahakar un logonko vahaanse vida kar diyaa. maadhavasinh raatabhar agni jalaakar vaheenpar baithe rahe. unhonne apane saare kapada़e jala diye. sabere jab unake saathee aaye aur poochhaa—'yah kya kiya ?' tab aapane kahaa- 'bhaaee! tumalogonmense jo bhaaee satyaaur ahinsaase apana uddhaar karana chaahe, vah mere saath rahe. main ab kalankako dhokar apane jeevanako pavitr karoongaa.' maadhavasinhajeeke bartaav aur kathanase prabhaavitahokar sabheene dakaiteeka tyaag karake dharmochit kaary karana shuroo kiyaa. aage chalakar ye hee maadhavadaasajee veetaraag mahaatma hue, jinaka sthaan kodamadesar hai.

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