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दानका फल (1)  [प्रेरक कहानी]
प्रेरक कथा - बोध कथा (Hindi Story)

गरमीके दिन थे, धूप तेज थी, पृथ्वी जल रही थी। महाराज भोजके राजकवि किसी आवश्यक कार्यको सम्पन्न करके नगरकी ओर लौट रहे थे। मार्गमें उन्होंने देखा कि एक दुर्बल मनुष्य नंगे पैर लड़खड़ाता हुआ चल रहा है। उसके पैरोंमें सम्भवतः छाले पड़ गये हैं। बार-बार दीर्घ श्वास लेता है, दौड़नेका प्रयत्न करता है; किंतु अपनी दुर्बलताके कारण भाग नहीं पाता। कविके सुकुमार हृदयसे यह देखा नहीं गया। आज वे भी पैदल ही थे। परंतु उस पुरुषके पास जाकर उन्होंने अपने जूते उतार दिये और बोले-'भाई! तुम इन्हें पहिन लो।'

कभी नंगे पैर चलनेका अभ्यास नहीं, कोमल चरण और संतप्त भूमि-कविको तो लगा कि वे मार्ग में ही मूर्छित होकर गिर पड़ेंगे। उनके पैरोंमें शीघ्र ही छाले पड़ गये। परंतु वे प्रसन्न थे एक दुःखी प्राणीकी सेवा करके। इसी समय राजाके हाथीको महावत उधरसे ले आ रहा था। राजकविको पहिचानता तो वह था ही, उसने उन्हें हाथीकी पीठपर बैठा लिया। संयोग ऐसा हुआ कि राजा भोज नगरमें निकले थे उस दोपहरी में ही । नगरमें प्रवेश करते ही कवि और नरेशकी भेंट हो गयी। नरेशने हँसीमें ही पूछा - 'आपको यह हाथी कहाँ मिल गया ?' कविने उत्तर दिया

उपानहं मया दत्तं जीर्णं कर्णविवर्जितम् ।

तत्पुण्येन गजारूढो न दत्तं वैहि तद्गतम् ॥

‘राजन्! मैंने अपना पुराना, कर्णरहित (फटा) जूता दान कर दिया, इस पुण्यसे इस समय हाथीपर बैठा हूँ। जिस द्रव्यका दान नहीं हुआ, वह तो व्यर्थ नष्ट हुआ।' उदार नरेशने वह हाथी कविको ही दे दिया।



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daanaka phal (1)

garameeke din the, dhoop tej thee, prithvee jal rahee thee. mahaaraaj bhojake raajakavi kisee aavashyak kaaryako sampann karake nagarakee or laut rahe the. maargamen unhonne dekha ki ek durbal manushy nange pair lada़khada़aata hua chal raha hai. usake paironmen sambhavatah chhaale pada़ gaye hain. baara-baar deergh shvaas leta hai, dauda़neka prayatn karata hai; kintu apanee durbalataake kaaran bhaag naheen paataa. kavike sukumaar hridayase yah dekha naheen gayaa. aaj ve bhee paidal hee the. parantu us purushake paas jaakar unhonne apane joote utaar diye aur bole-'bhaaee! tum inhen pahin lo.'

kabhee nange pair chalaneka abhyaas naheen, komal charan aur santapt bhoomi-kaviko to laga ki ve maarg men hee moorchhit hokar gir pada़enge. unake paironmen sheeghr hee chhaale pada़ gaye. parantu ve prasann the ek duhkhee praaneekee seva karake. isee samay raajaake haatheeko mahaavat udharase le a raha thaa. raajakaviko pahichaanata to vah tha hee, usane unhen haatheekee peethapar baitha liyaa. sanyog aisa hua ki raaja bhoj nagaramen nikale the us dopaharee men hee . nagaramen pravesh karate hee kavi aur nareshakee bhent ho gayee. nareshane hanseemen hee poochha - 'aapako yah haathee kahaan mil gaya ?' kavine uttar diyaa

upaanahan maya dattan jeernan karnavivarjitam .

tatpunyen gajaaroodho n dattan vaihi tadgatam ..

‘raajan! mainne apana puraana, karnarahit (phataa) joota daan kar diya, is punyase is samay haatheepar baitha hoon. jis dravyaka daan naheen hua, vah to vyarth nasht huaa.' udaar nareshane vah haathee kaviko hee de diyaa.

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