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करुणाका आदर्श  [बोध कथा]
प्रेरक कहानी - आध्यात्मिक कहानी (Hindi Story)

एक कारवाँ एक मरुभूमिको पार कर रहा था । रास्तेंमें पानीका सर्वथा अभाव हो गया । अन्तमें थोड़ा सा जल उनके पास बच रहा । अब यात्री उसे मापसे परस्पर बाँटने लग गये। उस मापका प्रकार यह था कि एक प्यालेमें एक छोटा कंकड़ डाल दिया गया था। जब जल कंकड़के ऊपर आ जाय तब वह एक व्यक्तिका उचित भाग मान लिया जाता था। वह जल भी केवल उसके प्रधान लोगोंके हिस्से पड़ता था ।

जब पहले दिन जल बाँटा जाने लगा, तब प्रथम माप काब - इब्न-मम्माहको दिया जाने लगा । वह उसे लेना ही चाहता था कि उसकी दृष्टि नामीर जातिके एक आदमीपर पड़ी जो बड़ा ध्यान लगाये उसकी ओर सतृष्ण दृष्टिसे देख रहा था। उसने जल बाँटनेवालेको कहा, 'भइया! मेरा हिस्सा कृपया इस व्यक्तिको दे दो।' उस व्यक्तिने जल पी लिया और काब - इब्न-मम्माहकोबिना जलके ही रह जाना पड़ा। दूसरे दिन पुनः जलका विभाजन आरम्भ हुआ। और उस नामीर जातिका वह पुरुष पुनः बड़े ध्यानसे उधर देखने लगा। 'काब' ने पुनः अपना भाग उस व्यक्तिके लिये दिला दिया।

पर अब जब कारवाँ चलने लगा, तब काबको इतनी भी शक्ति न रह गयी थी कि वह किसी प्रकार ऊँटपर बैठ सके। वह मरुस्थलमें ही लेट गया। सबोंने देखा कि अब कोई यहाँ ठहरता है तो सभी नष्ट होंगे, अतएव किसीने उसकी सहायताका साहस नहीं किया और मांसलोभी हिंस्र जन्तुओंके भयसे उसके ऊपर कुछ वस्त्र डालकर चलते बने।

वस्तुतः काब करुणाका आदर्श था, जिसने अपनी जान दे दी। पर दया- कातरताका तिरस्कार करनेका साहस वह न कर सका। -जा0 श0



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karunaaka aadarsha

ek kaaravaan ek marubhoomiko paar kar raha tha . raastenmen paaneeka sarvatha abhaav ho gaya . antamen thoda़a sa jal unake paas bach raha . ab yaatree use maapase paraspar baantane lag gaye. us maapaka prakaar yah tha ki ek pyaalemen ek chhota kankada़ daal diya gaya thaa. jab jal kankada़ke oopar a jaay tab vah ek vyaktika uchit bhaag maan liya jaata thaa. vah jal bhee keval usake pradhaan logonke hisse pada़ta tha .

jab pahale din jal baanta jaane laga, tab pratham maap kaab - ibna-mammaahako diya jaane laga . vah use lena hee chaahata tha ki usakee drishti naameer jaatike ek aadameepar pada़ee jo bada़a dhyaan lagaaye usakee or satrishn drishtise dekh raha thaa. usane jal baantanevaaleko kaha, 'bhaiyaa! mera hissa kripaya is vyaktiko de do.' us vyaktine jal pee liya aur kaab - ibna-mammaahakobina jalake hee rah jaana pada़aa. doosare din punah jalaka vibhaajan aarambh huaa. aur us naameer jaatika vah purush punah bada़e dhyaanase udhar dekhane lagaa. 'kaaba' ne punah apana bhaag us vyaktike liye dila diyaa.

par ab jab kaaravaan chalane laga, tab kaabako itanee bhee shakti n rah gayee thee ki vah kisee prakaar oontapar baith sake. vah marusthalamen hee let gayaa. sabonne dekha ki ab koee yahaan thaharata hai to sabhee nasht honge, ataev kiseene usakee sahaayataaka saahas naheen kiya aur maansalobhee hinsr jantuonke bhayase usake oopar kuchh vastr daalakar chalate bane.

vastutah kaab karunaaka aadarsh tha, jisane apanee jaan de dee. par dayaa- kaatarataaka tiraskaar karaneka saahas vah n kar sakaa. -jaa0 sha0

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