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आत्महत्या कैसी मूर्खता !  [प्रेरक कथा]
प्रेरक कहानी - Wisdom Story (हिन्दी कथा)

पूर्वकालमें काश्यप नामक एक बड़ा तपस्वी और संयमी ऋषिपुत्र था। उसे किसी धनमदान्ध वैश्यने अपने रथके धक्केसे गिरा दिया। गिरने से काश्यप बड़ा दुखी हुआ और क्रोधवश आपेसे बाहर होकर कहने लगा-'दुनियामें निर्धनका जीना व्यर्थ है, अतः अब मैं आत्मघात कर लूँगा।'

उसे इस प्रकार क्षुब्ध देखकर इन्द्र उसके पास गीदड़का रूप धारण करके आये और बोले, 'मुनिवर ! मनुष्य शरीर पानेके लिये तो सभी जीव उत्सुक रहते हैं। उसमें भी ब्राह्मणत्वका तो कुछ कहना ही नहीं। आप मनुष्य हैं, ब्राह्मण हैं और शास्त्रज्ञ भी हैं। ऐसा दुर्लभ शरीर पाकर उसे यों ही नष्ट कर देना, आत्मघात कर लेना भला, कहाँकी बुद्धिमानी है। अजी! जिन्हें भगवान् ने हाथ दिये हैं उनके तो मानो सभी मनोरथ सिद्ध हो गये। इस समय आपको जैसे धनकी लालसा है, उसी प्रकार मैं तो केवल हाथ पानेके लिये उत्सुक हूँ। मेरी दृष्टिमें हाथ पानेसे बढ़कर संसारमें कोई लाभ नहीं है। देखिये, मेरे शरीरमें काँटे चुभे हैं; किंतु हाथ न होनेसे मैं उन्हें निकाल नहीं सकता। किंतु जिन्हें भगवान्से हाथ मिले हैं, उनका क्या कहना? वे वर्षा, शीत, धूपसे अपना कष्ट निवारण कर सकते हैं। जोदुःख बिना हाथके दीन, दुर्बल और मूक प्राणी सहते हैं, सौभाग्यवश, वे तो आपको नहीं सहन करने पड़ते। भगवान्‌की बड़ी दया समझिये कि आप गीदड़, कीड़ा, चूहा साँप या मेढक आदि किसी दूसरी योनिमें नहीं उत्पन्न हुए।

'काश्यप! आत्महत्या करना बड़ा पाप है। यही सोचकर मैं वैसा नहीं कर रहा हूँ: अन्यथा देखिये, मुझे ये कीड़े काट रहे हैं, किंतु हाथ न होनेसे मैं इनसे अपनी रक्षा नहीं कर सकता। आप मेरी बात मानिये, आपको वेदोक्त कर्मका वास्तविक फल मिलेगा। आप सावधानीसे स्वाध्याय और अग्निहोत्र कीजिये। सत्य बोलिये, इन्द्रियोंको अपने काबूमें रखिये, दान दीजिये, किसीसे स्पर्धा न कीजिये। विप्रवर! यह शृगालयोनि मेरे कुकर्मोंका परिणाम है। मैं तो रात-दिन अब कोई ऐसी साधना करना चाहता हूँ जिससे किसी प्रकार आप जैसी मनुष्ययोनि प्राप्त हो सके।'

काश्यपको मानवदेहकी महत्ताका ज्ञान हो गया। उसे यह भी भान हुआ कि यह कोई प्राकृत श्रृंगाल नहीं, अपितु शृगाल- वेशमें शचीपति इन्द्र ही हैं। उसने उनकी पूजा की और उनकी आज्ञा पाकर घर लौट आया l

(महा0 शान्तिपर्व, अध्याय 180)



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aatmahatya kaisee moorkhata !

poorvakaalamen kaashyap naamak ek bada़a tapasvee aur sanyamee rishiputr thaa. use kisee dhanamadaandh vaishyane apane rathake dhakkese gira diyaa. girane se kaashyap bada़a dukhee hua aur krodhavash aapese baahar hokar kahane lagaa-'duniyaamen nirdhanaka jeena vyarth hai, atah ab main aatmaghaat kar loongaa.'

use is prakaar kshubdh dekhakar indr usake paas geedada़ka roop dhaaran karake aaye aur bole, 'munivar ! manushy shareer paaneke liye to sabhee jeev utsuk rahate hain. usamen bhee braahmanatvaka to kuchh kahana hee naheen. aap manushy hain, braahman hain aur shaastrajn bhee hain. aisa durlabh shareer paakar use yon hee nasht kar dena, aatmaghaat kar lena bhala, kahaankee buddhimaanee hai. ajee! jinhen bhagavaan ne haath diye hain unake to maano sabhee manorath siddh ho gaye. is samay aapako jaise dhanakee laalasa hai, usee prakaar main to keval haath paaneke liye utsuk hoon. meree drishtimen haath paanese badha़kar sansaaramen koee laabh naheen hai. dekhiye, mere shareeramen kaante chubhe hain; kintu haath n honese main unhen nikaal naheen sakataa. kintu jinhen bhagavaanse haath mile hain, unaka kya kahanaa? ve varsha, sheet, dhoopase apana kasht nivaaran kar sakate hain. joduhkh bina haathake deen, durbal aur mook praanee sahate hain, saubhaagyavash, ve to aapako naheen sahan karane pada़te. bhagavaan‌kee bada़ee daya samajhiye ki aap geedada़, keeda़a, chooha saanp ya medhak aadi kisee doosaree yonimen naheen utpann hue.

'kaashyapa! aatmahatya karana bada़a paap hai. yahee sochakar main vaisa naheen kar raha hoon: anyatha dekhiye, mujhe ye keeda़e kaat rahe hain, kintu haath n honese main inase apanee raksha naheen kar sakataa. aap meree baat maaniye, aapako vedokt karmaka vaastavik phal milegaa. aap saavadhaaneese svaadhyaay aur agnihotr keejiye. saty boliye, indriyonko apane kaaboomen rakhiye, daan deejiye, kiseese spardha n keejiye. vipravara! yah shrigaalayoni mere kukarmonka parinaam hai. main to raata-din ab koee aisee saadhana karana chaahata hoon jisase kisee prakaar aap jaisee manushyayoni praapt ho sake.'

kaashyapako maanavadehakee mahattaaka jnaan ho gayaa. use yah bhee bhaan hua ki yah koee praakrit shrringaal naheen, apitu shrigaala- veshamen shacheepati indr hee hain. usane unakee pooja kee aur unakee aajna paakar ghar laut aaya l

(mahaa0 shaantiparv, adhyaay 180)

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