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उचित गौरव  [शिक्षदायक कहानी]
आध्यात्मिक कथा - Spiritual Story (Moral Story)

एक भंगिन शौचालय स्वच्छ करके जब चलने लगी तब किसी भले आदमीने कुतूहलवश पूछा—'तुम्हें यह काम करनेमें घृणा नहीं लगती ? तुम इतनी दुर्गन्ध सह कैसे लेती हो ?'भंगिनने धीरेसे उत्तर दिया – 'हमारे बड़े लोगोंने बताया है कि सृष्टिकर्ताने हमें मनुष्यमात्रकी माताका पद दिया है। अपनी संतानका मल स्वच्छ करनेमें माताको कभी घृणा लगी है या दुर्गन्ध आयी है ? '

- सु0 सिं0



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uchit gaurava

ek bhangin shauchaalay svachchh karake jab chalane lagee tab kisee bhale aadameene kutoohalavash poochhaa—'tumhen yah kaam karanemen ghrina naheen lagatee ? tum itanee durgandh sah kaise letee ho ?'bhanginane dheerese uttar diya – 'hamaare bada़e logonne bataaya hai ki srishtikartaane hamen manushyamaatrakee maataaka pad diya hai. apanee santaanaka mal svachchh karanemen maataako kabhee ghrina lagee hai ya durgandh aayee hai ? '

- su0 sin0

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