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दानका फल  [Short Story]
Moral Story - Spiritual Story (आध्यात्मिक कहानी)

प्रतिष्ठानपुर-नरेश सातवाहन आखेटको निकले और सैनिकोंसे पृथक् होकर वनमें भटक गये। वनमें भटकते भूखे-प्यासे राजा सातवाहन एक भीलकी झोपड़ीपर पहुँच गये। भील उन्हें पहचानता नहीं था, फिर भी अतिथि समझकर उसने उनका स्वागत किया। भीलकी झोपड़ीमें धरा क्या था; सत्तू था उसके पास। राजाने वह सतू खाकर ही क्षुधा दूर की। रात्रि हो चुकी थी, भीलकी झोपड़ीमें ही वे सो रहे

रात्रि शीतकालकी थी। शीतल वायु चल रही थी। भील स्वयं झोपड़ीसे बाहर सोया और राजा सातवाहनको उसने झोपड़ीमें सुलाया। रात्रिमें वर्षा भी हुई। भील भीगता रहा। उसे सर्दी लगी और उसी सर्दीसे रात्रिमें ही उसकी मृत्यु हो गयी।

प्रातःकाल राजाके सैनिक उन्हें ढूँढ़ते पहुँचे। सातवाहनने बड़े सम्मानसे भीलका अन्तिम संस्कार कराया। भीलकी पत्नीको उन्होंने बहुत-सा धन दिया। यह सब करके भी नरेशको शान्ति नहीं हुई। वे नगर लौट तो आये, किंतु उदास रहने लगे। उनका शरीर दिनोदिन दुर्बल होने लगा। मन्त्री तथा देशके विद्वान् क्या करते ? राजाको चिन्ताका रोग था और उसकी ओषधि किसीके पास नहीं थी।

'बेचारे भीलने मुझे सत्तू दिया, मुझे झोपड़ी में सुलाकर स्वयं बाहर सोया और उसकी मृत्यु हो गयी दान और अतिथि सत्कारका ऐसा ही फल होता हो तो 'कौन दान-पुण्य करेगा।' राजाकी चिन्ता यही थी । कई महीने बीत गये, अन्तमें भगवती सरस्वतीके कृपा-पात्र पण्डित वररुचि प्रतिष्ठानपुर पधारे। राजाकी चिन्ताका समाचार पाकर वे राजभवन पधारे और राजाको लेकर नगरसेठके घर गये। नगरसे नगरसेठके नवजात पुत्रको राजाके सामने लाया गया। पण्डितजीके आदेशसे वह अबोध बालक सहसा बोल उठा-'राजन्! मैं आपका बहुत कृतज्ञ हूँ। आपको सत्तू देनेके फलसे भीलका शरीर छोड़कर मैं नगरसेठका पुत्र हुआ हूँ और उसी पुण्यके प्रभावसे मुझे पूर्वजन्मका स्मरण भी है । ' - सु0 सिं0



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daanaka phala

pratishthaanapura-naresh saatavaahan aakhetako nikale aur sainikonse prithak hokar vanamen bhatak gaye. vanamen bhatakate bhookhe-pyaase raaja saatavaahan ek bheelakee jhopada़eepar pahunch gaye. bheel unhen pahachaanata naheen tha, phir bhee atithi samajhakar usane unaka svaagat kiyaa. bheelakee jhopada़eemen dhara kya thaa; sattoo tha usake paasa. raajaane vah satoo khaakar hee kshudha door kee. raatri ho chukee thee, bheelakee jhopada़eemen hee ve so rahe

raatri sheetakaalakee thee. sheetal vaayu chal rahee thee. bheel svayan jhopada़eese baahar soya aur raaja saatavaahanako usane jhopada़eemen sulaayaa. raatrimen varsha bhee huee. bheel bheegata rahaa. use sardee lagee aur usee sardeese raatrimen hee usakee mrityu ho gayee.

praatahkaal raajaake sainik unhen dhoonढ़te pahunche. saatavaahanane bada़e sammaanase bheelaka antim sanskaar karaayaa. bheelakee patneeko unhonne bahuta-sa dhan diyaa. yah sab karake bhee nareshako shaanti naheen huee. ve nagar laut to aaye, kintu udaas rahane lage. unaka shareer dinodin durbal hone lagaa. mantree tatha deshake vidvaan kya karate ? raajaako chintaaka rog tha aur usakee oshadhi kiseeke paas naheen thee.

'bechaare bheelane mujhe sattoo diya, mujhe jhopada़ee men sulaakar svayan baahar soya aur usakee mrityu ho gayee daan aur atithi satkaaraka aisa hee phal hota ho to 'kaun daana-puny karegaa.' raajaakee chinta yahee thee . kaee maheene beet gaye, antamen bhagavatee sarasvateeke kripaa-paatr pandit vararuchi pratishthaanapur padhaare. raajaakee chintaaka samaachaar paakar ve raajabhavan padhaare aur raajaako lekar nagarasethake ghar gaye. nagarase nagarasethake navajaat putrako raajaake saamane laaya gayaa. panditajeeke aadeshase vah abodh baalak sahasa bol uthaa-'raajan! main aapaka bahut kritajn hoon. aapako sattoo deneke phalase bheelaka shareer chhoda़kar main nagarasethaka putr hua hoon aur usee punyake prabhaavase mujhe poorvajanmaka smaran bhee hai . ' - su0 sin0

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