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लोभका दुष्परिणाम  [हिन्दी कहानी]
Moral Story - प्रेरक कथा (आध्यात्मिक कहानी)

प्राचीन कालमें सृञ्जय नामके एक नरेश थे। उनके कोई पुत्र नहीं था, केवल एक कन्या थी । पुत्रप्राप्तिकी इच्छासे उन्होंने वेदज्ञ ब्राह्मणोंकी सेवा प्रारम्भ की। राजाके दान एवं सम्मानसे संतुष्ट होकर ब्राह्मणोंने देवर्षि नारदसे राजाके पुत्र होनेकी प्रार्थना की। उन दिनों देवर्षि राजा सृञ्जयके ही अतिथि थे। ब्राह्मणोंकी प्रार्थनासे द्रवित होकर देवर्षिने राजासे कहा- 'तुम कैसा पुत्र चाहते हो ?'

अब राजा सृञ्जयके मनमें लोभ आया। उन्होंनेप्रार्थना की— 'आप मुझे ऐसा पुत्र होनेका वरदान दें जो सुन्दर हो, स्वस्थ हो, गुणवान् हो तथा उसके मल-मूत्र, थूक- कफ आदि स्वर्णमय हों।'

देवर्षिने कुछ सोचकर 'एवमस्तु' कह दिया। उनके वरदानके अनुसार राजाको थोड़े दिनमें पुत्र प्राप्त हुआ । उस पुत्रका नाम राजाने सुवर्णष्ठीवी रखा। अब सृञ्जयके धनका क्या ठिकाना था। उनके पुत्रका थूक तथा मल मूत्र - सभी स्वर्ण होता था। राजाने अपने राजभवनके सब पात्र, आसन आदि स्वर्णके बनवा लिये। इसके अनन्तरउन्होंने पूरा राजभवन ही स्वर्णका बनवाया। उसमें दीवाल, खंभे, छत तथा भूमि आदि सब सोनेकी थीं।

राजाके पुत्र सुवर्णष्ठीवीका समाचार सारे देशमें फैल गया। दूर-दूर से लोग उसे देखने आने लगे। डाकुओंने भी यह समाचार पाया। उनके अनेक दल परस्पर मिलकर उस राजकुमारको हरण करनेका प्रयत्न करने लगे। अवसर पाकर एक रात दस्यु राजभवनमें घुस आये और राजकुमारको उठा ले गये ।

वनमें पहुँचनेपर दस्युओंमें विवाद हो गया। अधिक समयतक राजकुमारको जीवित छिपाये रखना अत्यन्तकठिन था। सबने निश्चय किया कि सुवर्णष्ठीवीको मारकर जो स्वर्ण मिले, उसे परस्पर बाँट लिया जाय। उन निर्दय दस्युओंने राजकुमारके टुकड़े कर डाले; किंतु उसके शरीरसे उन्हें एक रत्ती भी सोना नहीं मिला।

लोभके वश होकर राजा सृञ्जयने ऐसा पुत्र माँगा कि उसकी रक्षा अशक्य हो गयी। पुत्रशोक सहन करना पड़ा उन्हें। लोभवश डाकुओंने राजकुमारकी हत्या की। केवल पापभागी हुए वे और राजकोपके भाजन भी । लाभ कुछ उन्हें भी नहीं हुआ ।

-सु0 सिं0 (महाभारत, द्रोण0 55 )



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lobhaka dushparinaama

praacheen kaalamen srinjay naamake ek naresh the. unake koee putr naheen tha, keval ek kanya thee . putrapraaptikee ichchhaase unhonne vedajn braahmanonkee seva praarambh kee. raajaake daan evan sammaanase santusht hokar braahmanonne devarshi naaradase raajaake putr honekee praarthana kee. un dinon devarshi raaja srinjayake hee atithi the. braahmanonkee praarthanaase dravit hokar devarshine raajaase kahaa- 'tum kaisa putr chaahate ho ?'

ab raaja srinjayake manamen lobh aayaa. unhonnepraarthana kee— 'aap mujhe aisa putr honeka varadaan den jo sundar ho, svasth ho, gunavaan ho tatha usake mala-mootr, thooka- kaph aadi svarnamay hon.'

devarshine kuchh sochakar 'evamastu' kah diyaa. unake varadaanake anusaar raajaako thoda़e dinamen putr praapt hua . us putraka naam raajaane suvarnashtheevee rakhaa. ab srinjayake dhanaka kya thikaana thaa. unake putraka thook tatha mal mootr - sabhee svarn hota thaa. raajaane apane raajabhavanake sab paatr, aasan aadi svarnake banava liye. isake anantaraunhonne poora raajabhavan hee svarnaka banavaayaa. usamen deevaal, khanbhe, chhat tatha bhoomi aadi sab sonekee theen.

raajaake putr suvarnashtheeveeka samaachaar saare deshamen phail gayaa. doora-door se log use dekhane aane lage. daakuonne bhee yah samaachaar paayaa. unake anek dal paraspar milakar us raajakumaarako haran karaneka prayatn karane lage. avasar paakar ek raat dasyu raajabhavanamen ghus aaye aur raajakumaarako utha le gaye .

vanamen pahunchanepar dasyuonmen vivaad ho gayaa. adhik samayatak raajakumaarako jeevit chhipaaye rakhana atyantakathin thaa. sabane nishchay kiya ki suvarnashtheeveeko maarakar jo svarn mile, use paraspar baant liya jaaya. un nirday dasyuonne raajakumaarake tukada़e kar daale; kintu usake shareerase unhen ek rattee bhee sona naheen milaa.

lobhake vash hokar raaja srinjayane aisa putr maanga ki usakee raksha ashaky ho gayee. putrashok sahan karana pada़a unhen. lobhavash daakuonne raajakumaarakee hatya kee. keval paapabhaagee hue ve aur raajakopake bhaajan bhee . laabh kuchh unhen bhee naheen hua .

-su0 sin0 (mahaabhaarat, drona0 55 )

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