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एकान्त कहीं नहीं  [आध्यात्मिक कथा]
बोध कथा - शिक्षदायक कहानी (Short Story)

दक्षिण भारतके प्रतिष्ठित संत स्वामी वादिराजजीके अ अनेकों शिष्य थे; किंतु स्वामीजी अपने अन्त्यज शिष्य कनकदासपर अधिक स्नेह रखते थे। उच्चवर्णके शिष्योंको यह बात खटकती थी। 'कनकदास सच्चा भक्त है' यह गुरुदेवकी बात शिष्योंके हृदयमें बैठती नहीं थी। स्वामी वादिराजजीने एक दिन अपने सभी शिष्योंको एक-एक केला देकर कहा 'आज एकादशी हैं।

लोगोंके सामने फल खानेसे भी आदर्शके प्रति समाजमेंअश्रद्धा बढ़ती है। इसलिये जहाँ कोई न देखे, ऐसे स्थानमें जाकर इसे खा लो।' थोड़ी देरमें सब शिष्य केले खाकर गुरुके समीप आ गये। केवल कनकदासके हाथमें केला ज्यों-का त्यों रखा था। गुरुने पूछा- 'क्यों कनकदास! तुम्हें कहीं एकान्त नहीं मिला?'

कनकदासने हाथ जोड़कर उत्तर दिया-'भगवन्! वासुदेव प्रभु तो सर्वत्र हैं, फिर एकान्त कहीं कैसे मिलेगा।'



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ekaant kaheen naheen

dakshin bhaaratake pratishthit sant svaamee vaadiraajajeeke anekon shishy the; kintu svaameejee apane antyaj shishy kanakadaasapar adhik sneh rakhate the. uchchavarnake shishyonko yah baat khatakatee thee. 'kanakadaas sachcha bhakt hai' yah gurudevakee baat shishyonke hridayamen baithatee naheen thee. svaamee vaadiraajajeene ek din apane sabhee shishyonko eka-ek kela dekar kaha 'aaj ekaadashee hain.

logonke saamane phal khaanese bhee aadarshake prati samaajamenashraddha badha़tee hai. isaliye jahaan koee n dekhe, aise sthaanamen jaakar ise kha lo.' thoda़ee deramen sab shishy kele khaakar guruke sameep a gaye. keval kanakadaasake haathamen kela jyon-ka tyon rakha thaa. gurune poochhaa- 'kyon kanakadaasa! tumhen kaheen ekaant naheen milaa?'

kanakadaasane haath joda़kar uttar diyaa-'bhagavan! vaasudev prabhu to sarvatr hain, phir ekaant kaheen kaise milegaa.'

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