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क्रोध असुर है  [Hindi Story]
Wisdom Story - Moral Story (बोध कथा)

एक संत एक बार अपने एक अनुयायीके समीप बैठे थे। अचानक एक दुष्ट मनुष्य वहाँ आया और वह उस व्यक्तिको दुर्वचन कहने लगा, जिसके समीप वे संत साहब बैठे थे। उस सत्पुरुषने कुछ देर तो उसके कठोर वचन सहे; किंतु अन्तमें उसे भी क्रोध आ गया और वह भी उत्तर देने लगा। यह देखकर संत उठ खड़े हुए। वह व्यक्ति बोला- 'जबतक यह दुष्ट मुझे गालियाँदे रहा था तबतक तो आप बैठे रहे और जब मैं उत्तर दे रहा हूँ तो आप उठकर क्यों जा रहे हैं?'

संत बोले—‘जबतक तुम मौन थे तबतक तो देवता तुम्हारी ओरसे उत्तर देते थे; किंतु जब तुम बोलने लगे तो तुम्हारे भीतर देवताओंके बदले क्रोध आ बैठा । क्रोध तो असुर है और असुरोंका साथ छोड़ ही देना चाहिये, इसलिये मैं जा रहा हूँ।'



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krodh asur hai

ek sant ek baar apane ek anuyaayeeke sameep baithe the. achaanak ek dusht manushy vahaan aaya aur vah us vyaktiko durvachan kahane laga, jisake sameep ve sant saahab baithe the. us satpurushane kuchh der to usake kathor vachan sahe; kintu antamen use bhee krodh a gaya aur vah bhee uttar dene lagaa. yah dekhakar sant uth khada़e hue. vah vyakti bolaa- 'jabatak yah dusht mujhe gaaliyaande raha tha tabatak to aap baithe rahe aur jab main uttar de raha hoon to aap uthakar kyon ja rahe hain?'

sant bole—‘jabatak tum maun the tabatak to devata tumhaaree orase uttar dete the; kintu jab tum bolane lage to tumhaare bheetar devataaonke badale krodh a baitha . krodh to asur hai aur asuronka saath chhoda़ hee dena chaahiye, isaliye main ja raha hoon.'

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