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गोसेवाका शुभ परिणाम  [प्रेरक कथा]
Hindi Story - Shikshaprad Kahani (Hindi Story)

महाराज दिलीप और देवराज इन्द्रमें मित्रता थी। बुलानेपर दिलीप एक बार स्वर्ग गये| लौटते समय मार्गमें कामधेनु मिली; किंतु दिलीपने पृथ्वीपर आनेकी आतुरताके कारण उसे देखा नहीं। कामधेनुको उन्होंने प्रणाम नहीं किया। इस अपमानसे रुष्ट होकर कामधेनुने शाप दिया- 'मेरी संतान यदि कृपा न करे तो यह पुत्रहीन ही रहेगा।'

महाराज दिलीपको शापका कुछ पता नहीं था। किंतु उनके कोई पुत्र न होनेसे वे स्वयं, महारानी तथा के लोग भी चिन्तित एवं दुखी रहते थे। पुत्र प्राप्तिकी इच्छासे महाराज रानीके साथ कुलगुरु महर्षि वसिष्ठके आश्रमपर पहुँचे। महर्षिने उनकी प्रार्थना सुनकर आदेश किया- 'कुछ काल आश्रममें रहो और मेरी होमधेनु नन्दिनीकी सेवा करो।"

महाराजने गुरुकी आज्ञा स्वीकार कर ली। महारानी प्रातःकाल उस गौकी भलीभाँति पूजा करती थीं। गो दोहन हो जानेपर महाराज उस गायके साथ वनमें जाते थे। वे उसके पीछे-पीछे चलते और अपने उत्तरीयसे उसपर बैठनेवाले मच्छर, मक्खी आदि जीवोंको उड़ाते रहते थे। हरी घास अपने हाथसे लाकर उसे खिलाते थे। उसके शरीरपर हाथ फेरते। गौके बैठ जानेपर ही बैठते और उसके जल पी चुकनेपर ही जल पीते थे। सायंकाल जब गौ वनसे लौटती, महारानी उसकी फिर पूजा करती थीं। रात्रिमें वे उसके पास घीका दीपक रखती थीं। महाराज रात्रिमें गौके समीप भूमिपर होते थे।

अत्यन्त श्रद्धा और सावधानीके साथ गो-सेवा हुए महाराज दिलीपको एक महीना हो गया। करते महीने के अन्तिम दिन वनमें वे एक स्थानपर वृक्षोंका सौन्दर्य देखते खड़े हो गये। नन्दिनी तृण चरती हुई दूर निकल गयी, इस बातका उन्हें ध्यान नहीं रहा। सहसा | उन्हें गौके चीत्कारका शब्द सुन्न पड़ा। दिलीप चौके औरतापूर्वक उस ओर चले, जिधरसे शब्द आया| था। उन्होंने देखा कि एक बलवान् सिंह गौको पंजोंमें दबाये उसके ऊपर बैठा है। गौ बड़ी कातर दृष्टिसेउनकी ओर देख रही है। दिलीपने धनुष उठाया और सिंहको मारनेके लिये बाण निकालना चाहा; किंतु उनका वह हाथ भाथेमें ही चिपक गया।

इसी समय स्पष्ट मनुष्यभाषामें सिंह बोला 'राजन्! व्यर्थ उद्योग मत करो। मैं साधारण पशु नहीं हूँ मैं भगवती पार्वतीका कृपापात्र हूँ और उन्होंने मुझे अपने हाथों लगाये इस देवदार वृक्षकी रक्षाके लिये नियुक्त किया है। जो पशु अपने-आप यहाँ आ जाते हैं, वे ही मेरे आहार होते हैं।'

महाराज दिलीपने कहा-'आप जगन्माताके सेवक होनेके कारण मेरे वन्दनीय हैं, मैं आपको प्रणाम करता हूँ। सत्पुरुषोंके साथ सात पद चलनेसे भी मित्रता हो जाती है। आप मुझपर कृपा करें। मेरे गुरुकी इस गौको छोड़ दें और सुधा-निवृतिके लिये मेरे शरीरको आहार बना लें।'

सिंहने आश्चर्यपूर्वक कहा 'आप यह कैसी बात करते हैं! आप युवा हैं, नरेश हैं और आपको सभी सुखभोग प्राप्त हैं। इस प्रकार आपका देहत्याग किसी प्रकार बुद्धिमानीका काम नहीं। आप तो एक गौके बदले अपने गुरुको सहस्रों गायें दे सकते हैं।'

राजाने नम्रतापूर्वक कहा भगवन् मुझे शरीरका - मोह नहीं और न सुख भोगनेकी स्पृहा है। मेरी रक्षा में दी हुई गौ मेरे रहते मारी जाय तो मेरे जीवनको धिक्कार है। आप मेरे शरीरपर कृपा करनेके बदले मेरे धर्मकी रक्षा करें। मेरे यश तथा मेरे कर्तव्यको सुरक्षित बनायें।'

सिंहने राजाको समझानेका बहुत प्रयत्न किया; किंतु जब उन्होंने अपना आग्रह नहीं छोड़ा, तब वह बोला 'अच्छी बात! मुझे तो आहार चाहिये। तुम अपना शरीर देना चाहते हो तो मैं इस गौको छोड़ दूंगा।'

दिलीपका भाथेमें चिपका हाथ छूट गया। उन्होंने धनुष तथा भाथा उतारकर दूर रख दिये और वे मस्तक झुकाकर भूमिपर बैठ गये। परंतु उनपर सिंह कूदे, इसके बदले आकाशसे पुष्प वर्षा होने लगी। नन्दिनीका स्वर सुनायी पड़ा 'पुत्र उठो तुम्हारी परीक्षा लेनेकेलिये अपनी मायासे मैंने ही यह दृश्य उपस्थित किया था। पत्तेके दोनेमें मेरा दूध दुहकर पी लो। इससे तुम्हें तेजस्वी पुत्र प्राप्त होगा।'

दिलीप उठे। यहाँ सिंह कहीं था ही नहीं। नन्दिनीको उन्होंने साष्टाङ्ग प्रणाम किया। हाथ जोड़कर बोले – 'देवि ! आपके दूधपर पहले आपके बछड़ेका अधिकार है और फिर गुरुदेवका आश्रम पहुँचनेपआपका बछड़ा जब दूध पीकर तृप्त हो जायगा, तब गुरुदेवकी आज्ञा लेकर मैं आपका दूध पी सकता हूँ।' दिलीपकी धर्मनिष्ठासे नन्दिनी और भी प्रसन्न हुई । वह आश्रम लौटी। महर्षि वसिष्ठ भी सब बातें सुनकर अत्यन्त प्रसन्न हुए उनकी आज्ञा लेकर दिलीपने गौका दूध पीया । गोसेवाके फलसे उन्हें पराक्रमी पुत्र प्राप्त हुआ।

– सु0 सिं0 (रघुवंश)



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gosevaaka shubh parinaama

mahaaraaj dileep aur devaraaj indramen mitrata thee. bulaanepar dileep ek baar svarg gaye| lautate samay maargamen kaamadhenu milee; kintu dileepane prithveepar aanekee aaturataake kaaran use dekha naheen. kaamadhenuko unhonne pranaam naheen kiyaa. is apamaanase rusht hokar kaamadhenune shaap diyaa- 'meree santaan yadi kripa n kare to yah putraheen hee rahegaa.'

mahaaraaj dileepako shaapaka kuchh pata naheen thaa. kintu unake koee putr n honese ve svayan, mahaaraanee tatha ke log bhee chintit evan dukhee rahate the. putr praaptikee ichchhaase mahaaraaj raaneeke saath kulaguru maharshi vasishthake aashramapar pahunche. maharshine unakee praarthana sunakar aadesh kiyaa- 'kuchh kaal aashramamen raho aur meree homadhenu nandineekee seva karo."

mahaaraajane gurukee aajna sveekaar kar lee. mahaaraanee praatahkaal us gaukee bhaleebhaanti pooja karatee theen. go dohan ho jaanepar mahaaraaj us gaayake saath vanamen jaate the. ve usake peechhe-peechhe chalate aur apane uttareeyase usapar baithanevaale machchhar, makkhee aadi jeevonko uda़aate rahate the. haree ghaas apane haathase laakar use khilaate the. usake shareerapar haath pherate. gauke baith jaanepar hee baithate aur usake jal pee chukanepar hee jal peete the. saayankaal jab gau vanase lautatee, mahaaraanee usakee phir pooja karatee theen. raatrimen ve usake paas gheeka deepak rakhatee theen. mahaaraaj raatrimen gauke sameep bhoomipar hote the.

atyant shraddha aur saavadhaaneeke saath go-seva hue mahaaraaj dileepako ek maheena ho gayaa. karate maheene ke antim din vanamen ve ek sthaanapar vrikshonka saundary dekhate khada़e ho gaye. nandinee trin charatee huee door nikal gayee, is baataka unhen dhyaan naheen rahaa. sahasa | unhen gauke cheetkaaraka shabd sunn pada़aa. dileep chauke aurataapoorvak us or chale, jidharase shabd aayaa| thaa. unhonne dekha ki ek balavaan sinh gauko panjonmen dabaaye usake oopar baitha hai. gau bada़ee kaatar drishtiseunakee or dekh rahee hai. dileepane dhanush uthaaya aur sinhako maaraneke liye baan nikaalana chaahaa; kintu unaka vah haath bhaathemen hee chipak gayaa.

isee samay spasht manushyabhaashaamen sinh bola 'raajan! vyarth udyog mat karo. main saadhaaran pashu naheen hoon main bhagavatee paarvateeka kripaapaatr hoon aur unhonne mujhe apane haathon lagaaye is devadaar vrikshakee rakshaake liye niyukt kiya hai. jo pashu apane-aap yahaan a jaate hain, ve hee mere aahaar hote hain.'

mahaaraaj dileepane kahaa-'aap jaganmaataake sevak honeke kaaran mere vandaneey hain, main aapako pranaam karata hoon. satpurushonke saath saat pad chalanese bhee mitrata ho jaatee hai. aap mujhapar kripa karen. mere gurukee is gauko chhoda़ den aur sudhaa-nivritike liye mere shareerako aahaar bana len.'

sinhane aashcharyapoorvak kaha 'aap yah kaisee baat karate hain! aap yuva hain, naresh hain aur aapako sabhee sukhabhog praapt hain. is prakaar aapaka dehatyaag kisee prakaar buddhimaaneeka kaam naheen. aap to ek gauke badale apane guruko sahasron gaayen de sakate hain.'

raajaane namrataapoorvak kaha bhagavan mujhe shareeraka - moh naheen aur n sukh bhoganekee spriha hai. meree raksha men dee huee gau mere rahate maaree jaay to mere jeevanako dhikkaar hai. aap mere shareerapar kripa karaneke badale mere dharmakee raksha karen. mere yash tatha mere kartavyako surakshit banaayen.'

sinhane raajaako samajhaaneka bahut prayatn kiyaa; kintu jab unhonne apana aagrah naheen chhoda़a, tab vah bola 'achchhee baata! mujhe to aahaar chaahiye. tum apana shareer dena chaahate ho to main is gauko chhoda़ doongaa.'

dileepaka bhaathemen chipaka haath chhoot gayaa. unhonne dhanush tatha bhaatha utaarakar door rakh diye aur ve mastak jhukaakar bhoomipar baith gaye. parantu unapar sinh koode, isake badale aakaashase pushp varsha hone lagee. nandineeka svar sunaayee pada़a 'putr utho tumhaaree pareeksha lenekeliye apanee maayaase mainne hee yah drishy upasthit kiya thaa. patteke donemen mera doodh duhakar pee lo. isase tumhen tejasvee putr praapt hogaa.'

dileep uthe. yahaan sinh kaheen tha hee naheen. nandineeko unhonne saashtaang pranaam kiyaa. haath joda़kar bole – 'devi ! aapake doodhapar pahale aapake bachhada़eka adhikaar hai aur phir gurudevaka aashram pahunchanepaaapaka bachhada़a jab doodh peekar tript ho jaayaga, tab gurudevakee aajna lekar main aapaka doodh pee sakata hoon.' dileepakee dharmanishthaase nandinee aur bhee prasann huee . vah aashram lautee. maharshi vasishth bhee sab baaten sunakar atyant prasann hue unakee aajna lekar dileepane gauka doodh peeya . gosevaake phalase unhen paraakramee putr praapt huaa.

– su0 sin0 (raghuvansha)

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