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नित्य प्रेरणादायी श्लोक  [Spiritual Story]
प्रेरक कथा - Shikshaprad Kahani (हिन्दी कहानी)

नित्य प्रेरणादायी श्लोक

भारतके महान् वीर, न्यायप्रिय, प्रतिभावान् और असाधारण विद्वान् राजा विक्रमादित्यको कौन नहीं जानता? उनकी स्मृतिमें चलनेवाले विक्रम संवत्से भी हर विद्वान् परिचित है। उन्हीं राजा विक्रमादित्यने अपने दरबारमें एक श्लोकको लिपिबद्ध कराकर सामने ही रखा हुआ था
प्रत्यहं प्रत्यवेक्षेत नरश्चरितमात्मनः ।
किन्तु मे पशुभिस्तुल्यं किन्तु सत्पुरुषैरिव ॥ अर्थात् मनुष्यको चाहिये कि वह प्रतिदिन अपने
आचरणकी समीक्षा करता रहे कि 'मेरा आचरण पशुओं जैसा है या सत्पुरुषों-जैसा।'
प्रतिदिन सिंहासनपर बैठनेसे पहले राजा विक्रमादित्य इस श्लोकको ध्यानसे पढ़ते थे; ताकि समयकी महत्ता | और सार्थकताका बोध करानेवाले इस श्लोकसे दिन-भर प्रेरित रहें। और वाकई उनका जीवन और उनका राज्यकाल इस श्लोकके प्रकाशसे सदैव प्रकाशित रहा। तभी तो वे अपने नामानुरूप सचमुचके विक्रमादित्य बन सके।



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nity preranaadaayee shloka

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bhaaratake mahaan veer, nyaayapriy, pratibhaavaan aur asaadhaaran vidvaan raaja vikramaadityako kaun naheen jaanataa? unakee smritimen chalanevaale vikram sanvatse bhee har vidvaan parichit hai. unheen raaja vikramaadityane apane darabaaramen ek shlokako lipibaddh karaakar saamane hee rakha hua thaa
pratyahan pratyavekshet narashcharitamaatmanah .
kintu me pashubhistulyan kintu satpurushairiv .. arthaat manushyako chaahiye ki vah pratidin apane
aacharanakee sameeksha karata rahe ki 'mera aacharan pashuon jaisa hai ya satpurushon-jaisaa.'
pratidin sinhaasanapar baithanese pahale raaja vikramaadity is shlokako dhyaanase padha़te the; taaki samayakee mahatta | aur saarthakataaka bodh karaanevaale is shlokase dina-bhar prerit rahen. aur vaakaee unaka jeevan aur unaka raajyakaal is shlokake prakaashase sadaiv prakaashit rahaa. tabhee to ve apane naamaanuroop sachamuchake vikramaadity ban sake.

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