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साधुताका परम आदर्श  [Hindi Story]
Spiritual Story - Spiritual Story (आध्यात्मिक कहानी)

सन् 1844 ई0 में कलकत्तेके संस्कृत कालेजमें एक व्याकरणाध्यापककी आवश्यकता हुई और प्रबन्ध समितिने ईश्वरचन्द्र विद्यासागरको वह पद दिया । विद्यासागरको उस समय पचास रुपये मासिक मिलते थे और अब नये स्थानपर उन्हें नब्बे रुपये मिलते। पर आश्चर्य! विद्यासागरने सोचा कि उनके मित्र तर्कवाचस्पति व्याकरणमें उनसे अधिक दक्ष हैं और उन्होंने समितिके सामने इस पदको उन्हींको दिये जानेका प्रस्ताव रखा।अन्तमें समितिने विद्यासागरकी सम्मति मान ली। इससे विद्यासागरको अपार आनन्द हुआ। वे आनन्दके आवेशमें अपने मित्रको उसका समाचार देनेके लिये कलकत्तेसे कुछ दूरतक चले गये।

जब तर्कवाचस्पतिने विद्यासागरके मुँहसे यह सारी कहानी सुनी, तब वे आश्चर्यचकित रह गये। वे बोल उठे – 'विद्यासागर ! तुम मनुष्य नहीं, बल्कि मनुष्य वेषमें साक्षात् देवता हो।'

- जा0 श0



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saadhutaaka param aadarsha

san 1844 ee0 men kalakatteke sanskrit kaalejamen ek vyaakaranaadhyaapakakee aavashyakata huee aur prabandh samitine eeshvarachandr vidyaasaagarako vah pad diya . vidyaasaagarako us samay pachaas rupaye maasik milate the aur ab naye sthaanapar unhen nabbe rupaye milate. par aashcharya! vidyaasaagarane socha ki unake mitr tarkavaachaspati vyaakaranamen unase adhik daksh hain aur unhonne samitike saamane is padako unheenko diye jaaneka prastaav rakhaa.antamen samitine vidyaasaagarakee sammati maan lee. isase vidyaasaagarako apaar aanand huaa. ve aanandake aaveshamen apane mitrako usaka samaachaar deneke liye kalakattese kuchh dooratak chale gaye.

jab tarkavaachaspatine vidyaasaagarake munhase yah saaree kahaanee sunee, tab ve aashcharyachakit rah gaye. ve bol uthe – 'vidyaasaagar ! tum manushy naheen, balki manushy veshamen saakshaat devata ho.'

- jaa0 sha0

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