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सत्संकल्प (1)  [Hindi Story]
शिक्षदायक कहानी - बोध कथा (Shikshaprad Kahani)

उसका नाम श्रुतावती था; वह महर्षि भरद्वाजकी स्नेहमयी कन्या थी, बालब्रह्मचारिणी थी; उसमें यौवन था, रूप और रस था; पर उसका सर्वस्व अपने प्रेमास्पदके चरणोंमें समर्पित था । श्रुतावतीकी तेजस्वितासे महर्षिके आश्रमकी प्रदीप्ति बढ़ गयी ।


'तुम धन्य हो, रूपमयि; तुम महर्षिके तप और पुण्यकी स्नेहमयी लावण्याकृति हो।' वसिष्ठने श्रुतावतीको आश्रम में समिधा एकत्र करते हुए देखा। यज्ञकी धूमशिखासे उसके कलेवरकी आभा प्राणमयी हो उठी थी।

'मैं क्या सेवा करूँ महर्षे! मैं अपने-आपको छोड़कर अपनी अन्य समस्त वस्तुओंसे आपकी प्रसन्नता-प्राप्तिकी आशा कर सकती हूँ। हृदय मैंने स्वर्गके अधिपतिइन्द्रके करकमलोंमें समर्पित कर दिया है; मेरा सत्संकल्प है कि मेरा विवाह उन्हींसे होगा। आज्ञा दीजिये, देव।' श्रुतावतीने विनम्रतापूर्वक नेत्र नीचे कर लिये, वह संकोच और लज्जासे धरतीमें गड़ी जा रही थी।

'मुझे पता है, श्रुतावती! मैं तुम्हारी तपस्याकी शक्ति जानता हूँ, वह शीघ्र ही सफल होगी। भगवान् सर्वेश्वर तुम्हारी कामना अवश्य पूरी करेंगे। मेरे लिये पाँच बदरीफल पकाकर रख देनेसे ही सेवा हो जायगी।' वसिष्ठने अपना रास्ता लिया।

'सारा दिन बीत गया, आँच भी तेज है; पर ये बदरीफल अभीतक सिद्ध नहीं हो सके। न जाने भाग्यमें क्या लिखा है?' श्रुतावती विस्मित थी। फिर थोड़ी देर बाद उसने पात्रका ढकना हटाकर फलोंको देखा,पर वे कड़े के कड़े थे। सेवामें विघ्न उपस्थित होते देखकर वह चिन्तित हो उठी।

'तप ही भगवान्की पूजा है, तपोबलसे बड़ी बड़ी सिद्धियाँ मिलती हैं।' उसने वसिष्ठके इन शब्दोंका स्मरण किया और जब सारा ईंधन जल गया, तब अपने शरीरको आगमें लगा देनेका निश्चय किया। उसे भय था कि कहीं वसिष्ठ शाप दे दें और आराध्य इन्द्र न मिल पायें।

श्रुतावतीने आगमें पैर डाल दिये, वह जलने लगी; उसे ऐसा लगा कि मानो वह हिमकी सरितामें स्नान कर रही है। उद्देश्यकी सिद्धिके लिये तप कर रही थी वह।'देवि! मैं प्रसन्न हूँ, मैं तुम्हारी कड़ी से कड़ी परीक्षा ले रहा था।' एक दिव्य पुरुषने श्रुतावतीका ध्यान आकृष्ट किया। उनके कानमें दिव्य कुण्डल हिल रहे थे, परिधान दिव्य था, उत्तरीय समीरके मन्द मन्द कम्पनसे आन्दोलित था।

'अभिवादन स्वीकार कीजिये।' श्रुतावतीने तृप्तिकी साँस ली।

'मैंने वसिष्ठका रूप धारणकर तुम्हें सत्यकी कसौटीपर कसनेका दुस्साहस किया था, क्षमा चाहता हूँ। मैं इन्द्र हूँ, श्रुतावती! इस शरीरको छोड़कर तुम मेरे लोकमें मेरी पत्नीके रूपमें निवास करोगी।' श्रुतावती अपलक देखती रही उन्हें ।

-रा0 श्री0 (महाभारत0 शल्य0 अ0 48)



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satsankalp (1)

usaka naam shrutaavatee thaa; vah maharshi bharadvaajakee snehamayee kanya thee, baalabrahmachaarinee thee; usamen yauvan tha, roop aur ras thaa; par usaka sarvasv apane premaaspadake charanonmen samarpit tha . shrutaavateekee tejasvitaase maharshike aashramakee pradeepti badha़ gayee .


'tum dhany ho, roopamayi; tum maharshike tap aur punyakee snehamayee laavanyaakriti ho.' vasishthane shrutaavateeko aashram men samidha ekatr karate hue dekhaa. yajnakee dhoomashikhaase usake kalevarakee aabha praanamayee ho uthee thee.

'main kya seva karoon maharshe! main apane-aapako chhoda़kar apanee any samast vastuonse aapakee prasannataa-praaptikee aasha kar sakatee hoon. hriday mainne svargake adhipatiindrake karakamalonmen samarpit kar diya hai; mera satsankalp hai ki mera vivaah unheense hogaa. aajna deejiye, deva.' shrutaavateene vinamrataapoorvak netr neeche kar liye, vah sankoch aur lajjaase dharateemen gada़ee ja rahee thee.

'mujhe pata hai, shrutaavatee! main tumhaaree tapasyaakee shakti jaanata hoon, vah sheeghr hee saphal hogee. bhagavaan sarveshvar tumhaaree kaamana avashy pooree karenge. mere liye paanch badareephal pakaakar rakh denese hee seva ho jaayagee.' vasishthane apana raasta liyaa.

'saara din beet gaya, aanch bhee tej hai; par ye badareephal abheetak siddh naheen ho sake. n jaane bhaagyamen kya likha hai?' shrutaavatee vismit thee. phir thoda़ee der baad usane paatraka dhakana hataakar phalonko dekha,par ve kada़e ke kada़e the. sevaamen vighn upasthit hote dekhakar vah chintit ho uthee.

'tap hee bhagavaankee pooja hai, tapobalase bada़ee bada़ee siddhiyaan milatee hain.' usane vasishthake in shabdonka smaran kiya aur jab saara eendhan jal gaya, tab apane shareerako aagamen laga deneka nishchay kiyaa. use bhay tha ki kaheen vasishth shaap de den aur aaraadhy indr n mil paayen.

shrutaavateene aagamen pair daal diye, vah jalane lagee; use aisa laga ki maano vah himakee saritaamen snaan kar rahee hai. uddeshyakee siddhike liye tap kar rahee thee vaha.'devi! main prasann hoon, main tumhaaree kada़ee se kada़ee pareeksha le raha thaa.' ek divy purushane shrutaavateeka dhyaan aakrisht kiyaa. unake kaanamen divy kundal hil rahe the, paridhaan divy tha, uttareey sameerake mand mand kampanase aandolit thaa.

'abhivaadan sveekaar keejiye.' shrutaavateene triptikee saans lee.

'mainne vasishthaka roop dhaaranakar tumhen satyakee kasauteepar kasaneka dussaahas kiya tha, kshama chaahata hoon. main indr hoon, shrutaavatee! is shareerako chhoda़kar tum mere lokamen meree patneeke roopamen nivaas karogee.' shrutaavatee apalak dekhatee rahee unhen .

-raa0 shree0 (mahaabhaarata0 shalya0 a0 48)

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