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परोपकार और सचाईका फल  [हिन्दी कथा]
हिन्दी कथा - हिन्दी कहानी (हिन्दी कथा)

दोब्रीवेकी पढ़ाई समाप्त हो गयी। उसका जन्मदिवस आया जन्म दिनके उपलक्ष्यमें उसके यहाँ बहुत कीमती सौगातका ढेर लग गया। उसके पिताने कहा 'बेटा! तुम्हारी पढ़ाई हो गयी, अब तुम्हें संसारमें जाकर धन कमाना चाहिये। अबतक तुम बहुत अच्छे साहसी, बुद्धिमान् और परिश्रमी विद्यार्थी रहे इतना बड़ा धन तुम्हारे पास हो गया है। मुझे तुम्हारी योग्यतापर विश्वास
है। जाओ और संसारमें फलो फूलो।' दोब्रीवे प्रसन्न हो उठा। वह अपने माता- पिताको प्रणाम करके अपने सुन्दर जहाजकी ओर चल दिया। उसका जहाज समुद्रकी छातीपर लहरोंको चीरता हुआ चला जा रहा था। रास्तेमें एक तुर्की जहाज दिखलायी दिया। उसके समीप आनेपर लोगोंका कराहना और चिल्लाना सुनायी दिया। उसने चिल्लाकर तुर्की कप्तानसे पूछा - 'भाई! तुम्हारे जहाजमें लोग रो क्यों रहे हैं? लोग भूखे हैं या बीमार ?!

तुकं कप्तानने जवाब दिया 'नहीं, ये कैदी हैं, इन्हें गुलाम बनाकर हम बेचनेके लिये ले जा रहे हैं।' दोब्रीवेने कहा- 'ठहरो, शायद हमलोग आपस में सौदा कर सकें।'

तुर्क कप्तानने जाकर देखा कि दोब्रीवेका जहाज व्यापारिक सामानोंसे लदा है। वह अपना जहाज बदलनेके लिये तैयार हो गया दोब्रीवे तुर्की जहाजलेकर चल पड़ा। उसने उसपर रहनेवाले सारे कैदियोंसे उनके पते पूछे और उनको वे जिन-जिन देशोंके थे, वहाँ-वहाँ पहुँचा दिया। परंतु एक सुन्दर लड़की और उसके साथवाली एक बुढ़ियाका पता उसे न लग सका। उनका घर बहुत दूर था और रास्ता मालूम न था । लड़कीने बतलाया कि 'मैं रूसके जारकी पुत्री हूँ और बुढ़िया मेरी दासी है। मेरा घर लौटना कठिन है, इसलिये मैं विदेशमें ही रहकर अपनी रोटी कमाना चाहती हूँ।'

दोब्रीवे बोल उठा- 'सुन्दरी! यदि तुम मुझसे ब्याह करो तो तुम्हें किसी बातकी चिन्ता न होगी।' लड़की उसके स्वभाव और रूप-रंगसे उसपर मुग्ध थी, राजी हो गयी।

जब जहाज उसके घरके सामने बंदरगाहपर लगा तो दोब्रीवेका पिता उससे मिलने आया। उसके बेटेने कहा- 'पिताजी! मैंने आपके धनका कितना अच्छा उपयोग किया। देखिये, इतने दुःखी आदमियोंको मैंने सुखी बनाया और एक इतनी सुन्दर दुलहिन ले आया जिसके सामने सैकड़ों जहाजोंकी कीमत नहींके बराबर है!' यह सुनते ही उसके बापका प्रसन्न चेहरा बदल गया। वह बिगड़कर अपने बेटेको बहुत बुरा-भला कहने लगा।कुछ दिनोंके बाद यह समझकर कि लड़का अब कुछ होशियार हो गया, दोबोवेके पिताने दूसरा व्यापारी जहाज तैयार करके उसके साथ उसे विदा किया।

जहाज जैसे ही दूसरे बंदरगाहपर लगा दोब्रीवे देखता क्या है कि कुछ सिपाही गरीब आदमियोंको कैद कर रहे हैं और उनके बाल-बच्चे उन्हें देखकर बिलख रहे हैं। पता लगानेपर मालूम हुआ कि उनपर राज्यकी ओरसे कोई टैक्स लगाया गया है जिसे वे अदा नहीं कर सकते, इसलिये कैद किये जा रहे हैं। दोब्रीवेने अपने सारे जहाजका सामान बेचकर टैक्स चुका दिया और उन गरीब आदमियोंको कैदसे छुड़ा दिया।

घर वापस लौटनेपर उसका बाप इतना बिगड़ा कि उसने दोबीचे उसकी स्त्री और बुदियाको अपने घरसे निकाल बाहर किया परंतु अहोस-पड़ोस के लोगोंने उसे किसी प्रकार समझा-बुझाकर शान्त किया। तीसरी बार उसके बापने दोनोवेसे कहा कि "अपनी स्त्रीको देखो, अबकी बार तुमने यदि पहले जैसी मूर्खता की तो याद रखना कि यह आखिरी मौका भी तुमने खो दिया और अब इसको भूखों मरना पड़ेगा।'

इस बार दोब्रीवे जहाजपर सवार हुआ। वह बहुत दूर देशमें एक बंदरगाह पर पहुँचा। वहाँ उतरते ही उसने देखा कि एक राजसी पोशाक पहने हुए कोई पुरुष सामने टहल रहा है और उसकी ओर बड़े ध्यानसे देख रहा है। पास जानेपर उस आदमीने कहा कि 'आपने जो अंगूठी पहनी है वह मेरी लड़कीकी अंगूठीसे मिलती-जुलती है, आपने इसे कहाँ पाया ? यह अंगूठी रूसके जारकी लड़कीकी है। किनारे चलिये और अपनी कहानी सुनाइये।'

दोब्रीवेकी बातें सुनकर जार और उसके मन्त्रीको विश्वास हो गया कि जारकी खोयी गयी लड़की दोनीवेकी स्त्री है. जार प्रसन्न हो उठा, उसने दोनीवेसे कहा कि 'तुम्हें आधा राज्य दिया जायगा।' उसने उसे लड़कीको और दोनीवेके माता-पिताको लाने भेज दिया साथमें भेंटके साथ अपने मन्त्रीको भी भेज दिया।

इस बार दोब्रीवेके बापने उससे कुछ न कहा। उसके घरके सब लोग प्रसन्नतापूर्वक जहाजपर सवारहोकर रूसके लिये चल दिये।


जारका मन्त्री बड़ा डाही था। उसने रास्तेमें मौका पाकर दोग्रीवेको जहाजसे ढकेल दिया। जहाज तेज जा रहा था। दो समुद्र किनारे पहुँचनेके लिये जोरसे हाथ-पैर चलाने लगा। भाग्यसे एक पानीकी लहर आयी और उसने उसे समुद्र के किनारे जा लगाया।

परंतु वहाँ पहुँचनेपर उसने देखा कि वह एक बीरान चट्टान है। दो-तीन दिनोंतक उसने किसी तरह अपने प्राण बचाये। चौथे दिन एक मछुआ अपनी नौका लिये उस रास्तेसे आ निकला। दोब्रीवेने उससे अपनी सारी कथा कह सुनायी। वह मछुआ इस शर्तपर उसे रूसके बंदरगाहपर पहुंचाने के लिये राजी हुआ कि 'दोब्रीवेको जो कुछ वहाँ मिलेगा उसका आधा हिस्सा वह उसको देगा।'

मछुएकी नौका उस पार समुद्र के किनारे लगी। दोब्रीवे राजमहलमें पहुँचा। जारके आनन्दका ठिकाना न रहा। दोब्रीवेने उससे प्रार्थना की कि 'मन्त्रीका अपराध क्षमा किया जाय।' दोब्रीवेकी उदारता देखकर जारने अपना सारा राज्य उसे दे दिया और अपना शेष जीवन शान्तिपर्वक एकान्तमें भगवान्‌के भजनमें बिताया।

जिस दिन दोब्रीवेके सिरपर राजमुकुट रखा गया, उस दिन एक बूढ़ा मछुआ उसके सामने उपस्थित हुआ। उसने कहा-'सरकार! आपने अपना आधा धन मुझे देनेका वचन दिया है।'

दोब्रीवे चाहता तो सिपाहीको इशारा करके बूढ़ेको दरबारसे बाहर निकलवा देता। परंतु उसने उसका स्वागत किया और कहा-'हाँ, महाशय पधारिये। राज्यका नक्शा देखकर हम आधा-आधा बाँट लें और उसके बाद चलकर खजाना भी बाँटें।"

अकस्मात् उस बूढ़ेके सफेद बाल सुनहरे हो गये और वह सफेद पोशाकमें बोल उठा

'दोबीवे! जो दयालु है उसके ऊपर भगवान् दया करता है।' और अन्तर्धान हो गया।

देवदूतके इस वाक्यको सामने रखकर दोखीवेने बड़ी शान्तिके साथ अपने देशका शासन किया। उसके राज्यमें प्रजा सुख और चैनकी वंशी बजाती रही।



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paropakaar aur sachaaeeka phala

dobreevekee padha़aaee samaapt ho gayee. usaka janmadivas aaya janm dinake upalakshyamen usake yahaan bahut keematee saugaataka dher lag gayaa. usake pitaane kaha 'betaa! tumhaaree padha़aaee ho gayee, ab tumhen sansaaramen jaakar dhan kamaana chaahiye. abatak tum bahut achchhe saahasee, buddhimaan aur parishramee vidyaarthee rahe itana bada़a dhan tumhaare paas ho gaya hai. mujhe tumhaaree yogyataapar vishvaasa
hai. jaao aur sansaaramen phalo phoolo.' dobreeve prasann ho uthaa. vah apane maataa- pitaako pranaam karake apane sundar jahaajakee or chal diyaa. usaka jahaaj samudrakee chhaateepar laharonko cheerata hua chala ja raha thaa. raastemen ek turkee jahaaj dikhalaayee diyaa. usake sameep aanepar logonka karaahana aur chillaana sunaayee diyaa. usane chillaakar turkee kaptaanase poochha - 'bhaaee! tumhaare jahaajamen log ro kyon rahe hain? log bhookhe hain ya beemaar ?!

tukan kaptaanane javaab diya 'naheen, ye kaidee hain, inhen gulaam banaakar ham bechaneke liye le ja rahe hain.' dobreevene kahaa- 'thaharo, shaayad hamalog aapas men sauda kar saken.'

turk kaptaanane jaakar dekha ki dobreeveka jahaaj vyaapaarik saamaanonse lada hai. vah apana jahaaj badalaneke liye taiyaar ho gaya dobreeve turkee jahaajalekar chal pada़aa. usane usapar rahanevaale saare kaidiyonse unake pate poochhe aur unako ve jina-jin deshonke the, vahaan-vahaan pahuncha diyaa. parantu ek sundar lada़kee aur usake saathavaalee ek budha़iyaaka pata use n lag sakaa. unaka ghar bahut door tha aur raasta maaloom n tha . lada़keene batalaaya ki 'main roosake jaarakee putree hoon aur budha़iya meree daasee hai. mera ghar lautana kathin hai, isaliye main videshamen hee rahakar apanee rotee kamaana chaahatee hoon.'

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machhuekee nauka us paar samudr ke kinaare lagee. dobreeve raajamahalamen pahunchaa. jaarake aanandaka thikaana n rahaa. dobreevene usase praarthana kee ki 'mantreeka aparaadh kshama kiya jaaya.' dobreevekee udaarata dekhakar jaarane apana saara raajy use de diya aur apana shesh jeevan shaantiparvak ekaantamen bhagavaan‌ke bhajanamen bitaayaa.

jis din dobreeveke sirapar raajamukut rakha gaya, us din ek booढ़a machhua usake saamane upasthit huaa. usane kahaa-'sarakaara! aapane apana aadha dhan mujhe deneka vachan diya hai.'

dobreeve chaahata to sipaaheeko ishaara karake boodha़eko darabaarase baahar nikalava detaa. parantu usane usaka svaagat kiya aur kahaa-'haan, mahaashay padhaariye. raajyaka naksha dekhakar ham aadhaa-aadha baant len aur usake baad chalakar khajaana bhee baanten."

akasmaat us boodha़eke saphed baal sunahare ho gaye aur vah saphed poshaakamen bol uthaa

'dobeeve! jo dayaalu hai usake oopar bhagavaan daya karata hai.' aur antardhaan ho gayaa.

devadootake is vaakyako saamane rakhakar dokheevene bada़ee shaantike saath apane deshaka shaasan kiyaa. usake raajyamen praja sukh aur chainakee vanshee bajaatee rahee.

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बरसाने मे दोल, के मुख से राधे राधे बोल,
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कैसे तारोगे प्रभु जी मेरो, प्रभु जी
जय राधे राधे, राधे राधे
जय राधे राधे, राधे राधे
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