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जाति-विरोधसे अनर्थ  [Spiritual Story]
छोटी सी कहानी - आध्यात्मिक कथा (आध्यात्मिक कथा)

एक व्याधने पक्षियोंको फँसानेके लिये अपना जाल बिछाया ! उसके जालमें दो पक्षी फँसे; किंतु उन पक्षियोंने झटपट परस्पर सलाह की और जालको लेकर उड़ने लगे। व्याधको यह देखकर बड़ा दुःख हुआ। वह उन पक्षियोंके पीछे भूमिपर दौड़ने लगा। कोई ऋषि अपने आश्रम में बैठे यह दृश्य देख रहे थे।

उन्होंने व्याधको समीप बुलाकर पूछा- 'तुम व्यर्थ क्यों दौड़ रहे हो ? पक्षी तो जाल लेकर आकाशमें उड़ रहे हैं। 'व्याध बोला- 'भगवन्! अभी इन पक्षियोंमें मित्रता है। वे परस्पर मेल करके एक दिशामें उड़ रहे हैं। इसीसे वे मेरा जाल लिये जा रहे हैं। परंतु कुछ देरमें इनमें झगड़ा हो सकता है। मैं उसी समयकी प्रतीक्षा में इनके पीछे दौड़ रहा हूँ। परस्पर झगड़कर जब ये गिर पड़ेंगे, तब मैं इन्हें पकड़ लूँगा ।'

व्याधकी बात ठीक थी। थोड़ी देर उड़ते-उड़ते जब पक्षी थकने लगे, तब उनमें इस बातको लेकर विरोध हो गया कि उन्हें कहाँ ठहरना चाहिये। विरोध होते ही उनके उड़नेकी दिशा और पंखोंकी गति समाननहीं रह गयी। इसका फल यह हुआ कि वे उस जालको सम्हाले नहीं रख सके। जालके भारसे लड़खड़ाकर स्वयं भी गिरने लगे और एक बार गिरना प्रारम्भ होते हीजालमें उलझ गये। अब उनके पंख भी फँस चुके थे। जालके साथ वे भूमिपर गिर पड़े। व्याधने उन्हें सरलता पूर्वक पकड़ लिया । - सु0 सिं0 (महाभारत, उद्योग॰ 64)



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jaati-virodhase anartha

ek vyaadhane pakshiyonko phansaaneke liye apana jaal bichhaaya ! usake jaalamen do pakshee phanse; kintu un pakshiyonne jhatapat paraspar salaah kee aur jaalako lekar uda़ne lage. vyaadhako yah dekhakar bada़a duhkh huaa. vah un pakshiyonke peechhe bhoomipar dauda़ne lagaa. koee rishi apane aashram men baithe yah drishy dekh rahe the.

unhonne vyaadhako sameep bulaakar poochhaa- 'tum vyarth kyon dauda़ rahe ho ? pakshee to jaal lekar aakaashamen uda़ rahe hain. 'vyaadh bolaa- 'bhagavan! abhee in pakshiyonmen mitrata hai. ve paraspar mel karake ek dishaamen uda़ rahe hain. iseese ve mera jaal liye ja rahe hain. parantu kuchh deramen inamen jhagada़a ho sakata hai. main usee samayakee prateeksha men inake peechhe dauda़ raha hoon. paraspar jhagada़kar jab ye gir pada़enge, tab main inhen pakada़ loonga .'

vyaadhakee baat theek thee. thoda़ee der uda़te-uda़te jab pakshee thakane lage, tab unamen is baatako lekar virodh ho gaya ki unhen kahaan thaharana chaahiye. virodh hote hee unake uda़nekee disha aur pankhonkee gati samaananaheen rah gayee. isaka phal yah hua ki ve us jaalako samhaale naheen rakh sake. jaalake bhaarase lada़khada़aakar svayan bhee girane lage aur ek baar girana praarambh hote heejaalamen ulajh gaye. ab unake pankh bhee phans chuke the. jaalake saath ve bhoomipar gir pada़e. vyaadhane unhen saralata poorvak pakada़ liya . - su0 sin0 (mahaabhaarat, udyoga॰ 64)

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