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भगवान् या उनका बल  [हिन्दी कहानी]
Wisdom Story - Story To Read (प्रेरक कहानी)

महाभारतका युद्ध निश्चित हो गया था। दोनों पक्ष अपने अपने मित्रों, सम्बन्धियों, सहायकोंको एकत्र करनेमें लग गये थे। श्रीकृष्णचन्द्र पाण्डवोंके पक्षमें रहेंगे, यह निश्चित था; किंतु सभी कौरव वीर इसी सत्यसे भयभीत थे। श्रीकृष्ण यदि चक्र उठा लें, उनके सामने दो क्षण भी खड़ा होनेवाला उन्हें दीखता नहीं था और उनकी नारायणी सेना-विश्वकी वह सर्वश्रेष्ठ सेना क्या उपेक्षा कर देने योग्य है ? 'कुछ भी हो, जितनी सहायता श्रीकृष्णसे पायी जा सके, पानेका प्रयत्न करना चाहिये।' यह सम्मति थी शकुनि जैसे सम्मति देनेवालोंकी इच्छा न होनेपर भी स्वयं दुर्योधन द्वारकाधीशको रण-निमन्त्रण देने द्वारका पहुँचे।

दुर्योधनकी पुत्रीका विवाह हुआ था श्रीकृष्ण तनय साम्बसे दुर्योधनके लिये द्वारकेशके भवनमें जानेगें कोई बाधा नहीं थी। वे भवनमें भीतर पहुँचे। भगवान् वासुदेव भोजन करके मध्याह्न - विश्राम करने शय्यापर लेटे थे। कक्षमें दूसरा कोई था नहीं। लीलामयने निद्राका नाट्य करके नेत्र बंद कर रखे थे। दुर्योधनने इधर उधर देखा। शय्याके सिरहानेके पास बैठनेके लिये एक उत्तम आसन पड़ा था। वे उसीपर चुपचाप बैठकर श्रीकृष्णचन्द्रके जागने की प्रतीक्षा करने लगे।

अर्जुन भी उपप्लव्य नगरसे चले थे रण-निमन्त्रण देने से भी पहुँचे द्वारकेशके उसी कक्षमें श्यामसुन्दरको शयन करते देखकर वे उनके चरणोंके पास खड़े हो गये और उन भुवनसुन्दरकी यह शयनझाँकी देखने लगे आत्मविस्मृत होकर।

सहसा श्रीकृष्णचन्द्र नेत्र खोले सम्मुख अर्जुनको देखकर पूछने लगे- 'धनञ्जय! कब आये तुम? कैसे आये ?"
दुर्योधन डरे कि कहीं अर्जुनको ये कोई वचन न दे दें बैठे-बैठे ही वे बोले-'वासुदेव पहिले मैंआया हूँ आपके यहाँ । अर्जुन तो अभी आया है।'

'आप!' बायीं ओरसे सिरको पीछे घुमाकर जनार्दनने
देखा दुर्योधनको और अभिवादन करके पूछा- 'कैसे पधारे आप ?' दुर्योधनने कहा-'आप जानते ही हैं कि पाण्डवोंसे हमारा युद्ध निश्चित है। आप मेरे सम्बन्धी हैं। मैं युद्धमें आपकी सहायता माँगने आया हूँ।'

'अर्जुन! तुम?' अब अर्जुनसे पूछा गया तो वे बोले- 'आया तो मैं भी इसी उद्देश्यसे हूँ।" बड़े गम्भीर स्वरमें द्वारकानाथ बोले- 'आप दोन हमारे सम्बन्धी हैं। इस घरेलू युद्धमें किसी पक्षसे युद्ध करना मुझे प्रिय नहीं है। मैं इस युद्धमें शस्त्र नहीं ग्रहण करूँगा। एक ओर मैं शस्त्रहीन रहूँगा और एक ओर मेरी सेना शस्त्र-सज्ज रहेगी। परंतु राजन्। अर्जुनको मैंने पहिले देखा है और वे आपसे छोटे भी हैं; अतः पहिले अर्जुनको अवसर मिलना चाहिये कि वे दोनोंमेंसे जो चाहें, अपने लिये चुन लें।'

अर्जुनको तो जैसे वरदान मिला। वे डर रहे थे कि कहीं पहिला अवसर दुर्योधनको मिला और उसने वासुदेवको ले लिया तो अनर्थ ही हो जायगा। उन्होंने बड़ी आतुरतासे कहा-'आप हमारी ओर रहें।'

दुर्योधनका मुख सूख गया था द्वारकेशके निर्णयसे। वे सोचने लगे थे, जब ये शस्त्र उठायेंगे ही नहीं, तब युद्धमें इन्हें लेकर कोई करेगा क्या। उलटे कोई न कोई उपद्रव खड़ा किये रहेंगे ये कहीं ऐसा न हो कि अर्जुन सेना ले ले और ये हमारे सिर पढ़ें। अर्जुनकी बात सुनते ही दुर्योधन आसनसे उत्साहके मारे उठ खड़े हुए- 'हाँ, हाँ, ठीक है! स्वीकार हैं हमें!' आप पाण्डवपक्षमें रहें और नारायणी सेनाको आज्ञा दें हमारे पक्षमें प्रस्थान करनेकी।' भगवान्ने पहले ही वामदृष्टिसे देख लिया था उनकी ओर, इससे भगवान्‌को न पाकर वे प्रसन्न हो गये।

दुर्योधनके सामने ही सेनाको आदेश भेज दिया गया। जब वे प्रसन्न होकर चले गये, तब हँसकर मधुसूदन अर्जुनसे बोले-'पार्थ! यह क्या बचपन किया तुमने। सेना क्यों नहीं ली तुमने।' मैंने तो तुमको पहिले अवसर दिया था। मैं शस्त्र उठाऊँगा नहीं, यह कह चुका हूँ। मुझे लेकर तुमने क्या लाभ सोचा। तुम चाहो तो यादव शूरोंकी एक अक्षौहिणी सेना अब भी मेरे बदले ले सकते हो।'अर्जुनके नेत्र भर आये। वे कहने लगे- 'माधव ! आप मेरी परीक्षा क्यों लेते हैं! मैंने किसी लाभको सोचकर आपको नहीं चुना है । पाण्डवोंकी जय हो या न हो; किंतु हम आपको छोड़कर नहीं रह सकते। आप तो हमारे प्राण हैं। आपसे रहित आपका बल हमें नहीं चाहिये। हम तो आपके हैं, आपके समीप रहना चाहते हैं।''क्या कराना चाहते हो तुम मुझसे ?' हँसकर पूछा वासुदेवने और हँसकर ही अर्जुनने उत्तर दिया सारथि बनाऊँगा आपको। मेरे रथकी रश्मि हाथमें लीजिये और मुझे निश्चिन्त कर दीजिये ।'

जो अपने जीवन-रथकी डोर भगवान्‌के हाथमें सौंप देता है, उसकी लौकिक तथा पारमार्थिक विजय निश्चित है।

- सु0 सिं0



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bhagavaan ya unaka bala

mahaabhaarataka yuddh nishchit ho gaya thaa. donon paksh apane apane mitron, sambandhiyon, sahaayakonko ekatr karanemen lag gaye the. shreekrishnachandr paandavonke pakshamen rahenge, yah nishchit thaa; kintu sabhee kaurav veer isee satyase bhayabheet the. shreekrishn yadi chakr utha len, unake saamane do kshan bhee khada़a honevaala unhen deekhata naheen tha aur unakee naaraayanee senaa-vishvakee vah sarvashreshth sena kya upeksha kar dene yogy hai ? 'kuchh bhee ho, jitanee sahaayata shreekrishnase paayee ja sake, paaneka prayatn karana chaahiye.' yah sammati thee shakuni jaise sammati denevaalonkee ichchha n honepar bhee svayan duryodhan dvaarakaadheeshako rana-nimantran dene dvaaraka pahunche.

duryodhanakee putreeka vivaah hua tha shreekrishn tanay saambase duryodhanake liye dvaarakeshake bhavanamen jaanegen koee baadha naheen thee. ve bhavanamen bheetar pahunche. bhagavaan vaasudev bhojan karake madhyaahn - vishraam karane shayyaapar lete the. kakshamen doosara koee tha naheen. leelaamayane nidraaka naaty karake netr band kar rakhe the. duryodhanane idhar udhar dekhaa. shayyaake sirahaaneke paas baithaneke liye ek uttam aasan pada़a thaa. ve useepar chupachaap baithakar shreekrishnachandrake jaagane kee prateeksha karane lage.

arjun bhee upaplavy nagarase chale the rana-nimantran dene se bhee pahunche dvaarakeshake usee kakshamen shyaamasundarako shayan karate dekhakar ve unake charanonke paas khada़e ho gaye aur un bhuvanasundarakee yah shayanajhaankee dekhane lage aatmavismrit hokara.

sahasa shreekrishnachandr netr khole sammukh arjunako dekhakar poochhane lage- 'dhananjaya! kab aaye tuma? kaise aaye ?"
duryodhan dare ki kaheen arjunako ye koee vachan n de den baithe-baithe hee ve bole-'vaasudev pahile mainaaya hoon aapake yahaan . arjun to abhee aaya hai.'

'aapa!' baayeen orase sirako peechhe ghumaakar janaardanane
dekha duryodhanako aur abhivaadan karake poochhaa- 'kaise padhaare aap ?' duryodhanane kahaa-'aap jaanate hee hain ki paandavonse hamaara yuddh nishchit hai. aap mere sambandhee hain. main yuddhamen aapakee sahaayata maangane aaya hoon.'

'arjuna! tuma?' ab arjunase poochha gaya to ve bole- 'aaya to main bhee isee uddeshyase hoon." bada़e gambheer svaramen dvaarakaanaath bole- 'aap don hamaare sambandhee hain. is ghareloo yuddhamen kisee pakshase yuddh karana mujhe priy naheen hai. main is yuddhamen shastr naheen grahan karoongaa. ek or main shastraheen rahoonga aur ek or meree sena shastra-sajj rahegee. parantu raajan. arjunako mainne pahile dekha hai aur ve aapase chhote bhee hain; atah pahile arjunako avasar milana chaahiye ki ve dononmense jo chaahen, apane liye chun len.'

arjunako to jaise varadaan milaa. ve dar rahe the ki kaheen pahila avasar duryodhanako mila aur usane vaasudevako le liya to anarth hee ho jaayagaa. unhonne bada़ee aaturataase kahaa-'aap hamaaree or rahen.'

duryodhanaka mukh sookh gaya tha dvaarakeshake nirnayase. ve sochane lage the, jab ye shastr uthaayenge hee naheen, tab yuddhamen inhen lekar koee karega kyaa. ulate koee n koee upadrav khada़a kiye rahenge ye kaheen aisa n ho ki arjun sena le le aur ye hamaare sir padha़en. arjunakee baat sunate hee duryodhan aasanase utsaahake maare uth khada़e hue- 'haan, haan, theek hai! sveekaar hain hamen!' aap paandavapakshamen rahen aur naaraayanee senaako aajna den hamaare pakshamen prasthaan karanekee.' bhagavaanne pahale hee vaamadrishtise dekh liya tha unakee or, isase bhagavaan‌ko n paakar ve prasann ho gaye.

duryodhanake saamane hee senaako aadesh bhej diya gayaa. jab ve prasann hokar chale gaye, tab hansakar madhusoodan arjunase bole-'paartha! yah kya bachapan kiya tumane. sena kyon naheen lee tumane.' mainne to tumako pahile avasar diya thaa. main shastr uthaaoonga naheen, yah kah chuka hoon. mujhe lekar tumane kya laabh sochaa. tum chaaho to yaadav shooronkee ek akshauhinee sena ab bhee mere badale le sakate ho.'arjunake netr bhar aaye. ve kahane lage- 'maadhav ! aap meree pareeksha kyon lete hain! mainne kisee laabhako sochakar aapako naheen chuna hai . paandavonkee jay ho ya n ho; kintu ham aapako chhoda़kar naheen rah sakate. aap to hamaare praan hain. aapase rahit aapaka bal hamen naheen chaahiye. ham to aapake hain, aapake sameep rahana chaahate hain.''kya karaana chaahate ho tum mujhase ?' hansakar poochha vaasudevane aur hansakar hee arjunane uttar diya saarathi banaaoonga aapako. mere rathakee rashmi haathamen leejiye aur mujhe nishchint kar deejiye .'

jo apane jeevana-rathakee dor bhagavaan‌ke haathamen saunp deta hai, usakee laukik tatha paaramaarthik vijay nishchit hai.

- su0 sin0

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