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दीनोंके प्रति आत्मीयता  [Hindi Story]
Spiritual Story - हिन्दी कथा (हिन्दी कथा)

श्रीधाम पुरीके 'बड़े बाबाजी' सिद्ध श्रीरामरमण दासजीके विद्यार्थी जीवनका नाम राइचरण था। उस समय इनकी अवस्था दस-बारह वर्षकी थी। इस अवस्थामें आप सदैव परहितमें तत्पर रहते थे। एक दिन विद्यालयसे आते समय एक विद्यार्थीको बिना छातेके आता हुआ देखकर आपने अपना छाता उसे दे दिया और स्वयं धूपमें तपते घर आये। एक दिन एक व्यक्तिको वस्त्राभावसे जाड़ेमें कष्ट पाते देख आपने अत्यन्त आग्रहपूर्वक अपना मूल्यवान् शीतवस्त्र उसे दे दिया और स्वयं शीतसे काँपते हुए घर लौटे। माँसे डरकर कहा -'माँ, मेरी अलवान कहीं खो गयी।' माँ कनकसुन्दरी दुःख करने लगी। इसपर उनके कुछ साथियोंने कहा कि 'नहीं माँ! राइचरण झूठ बोल रहा है, कल स्कूलसे आते समय एक गरीबको जाड़ेसे काँपते देखकर यह अपनी अलवान उसे दे आया है।' यह सुनकर देवी कनकसुन्दरी हँसकर कहने लगी——अच्छा! गरीबको दे आया, बहुत अच्छाकिया। माँ जगदम्बा तुझे और देंगी।' माता और पुत्रके इस व्यवहारको देखकर सभी अवाक् रह गये। जैसी दयामयी माँ, वैसा ही दयार्द्रहृदय बेटा ।

एक दिन राइचरणने देखा कि एक वृद्ध बाजारसे लौटते समय ज्वराक्रान्त हो गया है। वह दाल-चावलादि सामान बाजारसे खरीदकर घर ले जा रहा था। अब वह उस सामानको लेकर घर जानेमें असमर्थ है। आपने शीघ्रतासे उसका गट्ठर उठाकर अपने सिरपर रख लिया और उसके घर ले जाने लगे। वह भय एवं संकोचसे कहने लगा-'बाबूजी! आप मेरा बोझ अपने सिरपर न रखें, मैं तो नीच जाति धोबी हूँ।' आपने उत्तर दिया 'तुम कोई भी क्यों न हो, परिचयसे मुझे कोई प्रयोजन नहीं। इस समय तुम पीड़ित हो, चलो, तुम्हें घर पहुँचा दूँ।' वृद्धको पहुँचाकर घर लौटनेमें इन्हें देर हुई, स्नेहमयी माँ रोने लगीं। कुछ समय पश्चात् जब आप घर पहुँचे तो बात सुनकर माता आनन्दमग्न हो गयीं।



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deenonke prati aatmeeyataa

shreedhaam pureeke 'bada़e baabaajee' siddh shreeraamaraman daasajeeke vidyaarthee jeevanaka naam raaicharan thaa. us samay inakee avastha dasa-baarah varshakee thee. is avasthaamen aap sadaiv parahitamen tatpar rahate the. ek din vidyaalayase aate samay ek vidyaartheeko bina chhaateke aata hua dekhakar aapane apana chhaata use de diya aur svayan dhoopamen tapate ghar aaye. ek din ek vyaktiko vastraabhaavase jaada़emen kasht paate dekh aapane atyant aagrahapoorvak apana moolyavaan sheetavastr use de diya aur svayan sheetase kaanpate hue ghar laute. maanse darakar kaha -'maan, meree alavaan kaheen kho gayee.' maan kanakasundaree duhkh karane lagee. isapar unake kuchh saathiyonne kaha ki 'naheen maan! raaicharan jhooth bol raha hai, kal skoolase aate samay ek gareebako jaada़ese kaanpate dekhakar yah apanee alavaan use de aaya hai.' yah sunakar devee kanakasundaree hansakar kahane lagee——achchhaa! gareebako de aaya, bahut achchhaakiyaa. maan jagadamba tujhe aur dengee.' maata aur putrake is vyavahaarako dekhakar sabhee avaak rah gaye. jaisee dayaamayee maan, vaisa hee dayaardrahriday beta .

ek din raaicharanane dekha ki ek vriddh baajaarase lautate samay jvaraakraant ho gaya hai. vah daala-chaavalaadi saamaan baajaarase khareedakar ghar le ja raha thaa. ab vah us saamaanako lekar ghar jaanemen asamarth hai. aapane sheeghrataase usaka gatthar uthaakar apane sirapar rakh liya aur usake ghar le jaane lage. vah bhay evan sankochase kahane lagaa-'baaboojee! aap mera bojh apane sirapar n rakhen, main to neech jaati dhobee hoon.' aapane uttar diya 'tum koee bhee kyon n ho, parichayase mujhe koee prayojan naheen. is samay tum peeda़it ho, chalo, tumhen ghar pahuncha doon.' vriddhako pahunchaakar ghar lautanemen inhen der huee, snehamayee maan rone lageen. kuchh samay pashchaat jab aap ghar pahunche to baat sunakar maata aanandamagn ho gayeen.

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