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भीमसेनका गर्व भङ्ग  [हिन्दी कथा]
Story To Read - Hindi Story (छोटी सी कहानी)

भीमसेनको अपनी शक्तिका बड़ा गर्व था। एक बार वनवास कालमें जब ये लोग गन्धमादन पर्वतपर रह रहे थे, तब द्रौपदीको एक सहस्रदल कमल वायुकोणसे उड़ता आता दीखा। उसे उसने ले लिया और भीमसेनसे उसी प्रकारका एक और कमल लानेको कहा। भीमसेन वायुकोणकी ओर चल पड़े। चलते समय भीषण गर्जना करना उनका स्वभाव ही था उनके इस भीषण शब्दसे बाघ अपनी गुफाओं को छोड़कर भागने लगे। जंगली जीव जहाँ-तहाँ पिने लगे, पक्षी भयभीत होकर उड़ने लगे और मृगोंके झुंड घबराकर चौकड़ी भरने लगे। भीमसेनको गर्जनासे सारी दिशाएँ गूँज उठीं। वे बराबर आगे बढ़ते जा रहे थे। आगे जानेपर गन्धमादनकी चोटीपर उन्हें एक विशाल केलेका वन मिला। महाबली भीम नृसिंहके समान गर्जना करते हुए उसके भीतर घुस गये।

इधर इसी वनमें महावीर हनुमानजी रहते थे। उन्हें अपने छोटे भाई भीमसेनके उधर आनेका पता लग गया। उन्होंने सोचा कि अब आगे स्वर्गक मार्गमें जाना भीमके लिये भयकारक होगा। यह सोचकर वे भीमसेनकेरास्तेमें लेट गये। अब भीमसेन उनके पास पहुंचे और भीषण सिंहनाद किया। भीमसेनकी उस गर्जनासे बनके | जीव-जन्तुओं और पक्षियोंको बड़ा त्रास हुआ। हनुमानजीने भी अपनी आँखें खोलीं और उपेक्षापूर्वक उनकी और देखते हुए कहा—‘भैया! मैं तो रोगी हूँ, यहाँ आनन्दय सो रहा था; तुमने आकर क्यों जगा दिया? समझदार। व्यक्तिको जीवोंपर दया करनी चाहिये। यहाँसे आगे यह | पर्वत मनुष्योंके लिये अगम्य है । अतः अब तुम मीठे कन्द-मूल-फल खाकर यहींसे लौट जाओ। आगे जाकर व्यर्थ अपने प्राणोंको संकटमें क्यों डालते हो।

भीमसेनने कहा- 'मैं मरूँ या बचूँ तुमसे तो इस विषयमें नहीं पूछ रहा हूँ। तुम जरा उठकर मुझे रास्ता दे दो।' हनुमानजीने कहा, 'मैं रोगसे पीड़ित हूँ; तुम्हें जाना ही है तो मुझे लाँघकर चले जाओ। भीमसेन बोले- 'परमात्मा समस्त प्राणियोंके देहमें है, किसीको लाँघकर मैं उसका अपमान नहीं करना चाहता।' हनुमानजीने कहा, 'तो तुम मेरी पूँछ पकड़कर हटा दो और निकल जाओ।' हनुमान्जीका यह कहना था कि भीमसेनने अवज्ञापूर्वक बायें हाथसे हनुमानजीको पूछ पकड़कर बड़े जोरसे खींची। पर वे टस से मस न हुए। अब क्रोधसे भरकर उन्होंने दोनों हाथोंसे उनकी पूँछको खींचना आरम्भ किया। पर इतनेपर भी उनकी पूँछ टस से मस न हुई । जब भीमकी सारी शक्ति व्यर्थ चली गयीं, तब उनका मुँह लज्जासे झुक गया। वे समझ गये कि यह वानर कोई साधारण वानर नहीं है। अतएव उनकेचरणोंपर गिरकर क्षमा माँगने लगे। हनुमानजीने अपना परिचय दिया और बहुत-सी नीतिका उपदेश करके उन्हें वहींसे लौटा दिया। वहीं उन्होंने भीमसेनको यह वरदान दिया था कि महाभारत युद्धके समय मैं अर्जुनकी ध्वजापर बैठकर तुमलोगों की सहायता करूँगा।

(महाभारत, वनपर्व, अध्याय 143-147)



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bheemasenaka garv bhanga

bheemasenako apanee shaktika bada़a garv thaa. ek baar vanavaas kaalamen jab ye log gandhamaadan parvatapar rah rahe the, tab draupadeeko ek sahasradal kamal vaayukonase uda़ta aata deekhaa. use usane le liya aur bheemasenase usee prakaaraka ek aur kamal laaneko kahaa. bheemasen vaayukonakee or chal pada़e. chalate samay bheeshan garjana karana unaka svabhaav hee tha unake is bheeshan shabdase baagh apanee guphaaon ko chhoda़kar bhaagane lage. jangalee jeev jahaan-tahaan pine lage, pakshee bhayabheet hokar uda़ne lage aur mrigonke jhund ghabaraakar chaukada़ee bharane lage. bheemasenako garjanaase saaree dishaaen goonj utheen. ve baraabar aage badha़te ja rahe the. aage jaanepar gandhamaadanakee choteepar unhen ek vishaal keleka van milaa. mahaabalee bheem nrisinhake samaan garjana karate hue usake bheetar ghus gaye.

idhar isee vanamen mahaaveer hanumaanajee rahate the. unhen apane chhote bhaaee bheemasenake udhar aaneka pata lag gayaa. unhonne socha ki ab aage svargak maargamen jaana bheemake liye bhayakaarak hogaa. yah sochakar ve bheemasenakeraastemen let gaye. ab bheemasen unake paas pahunche aur bheeshan sinhanaad kiyaa. bheemasenakee us garjanaase banake | jeeva-jantuon aur pakshiyonko bada़a traas huaa. hanumaanajeene bhee apanee aankhen kholeen aur upekshaapoorvak unakee aur dekhate hue kahaa—‘bhaiyaa! main to rogee hoon, yahaan aananday so raha thaa; tumane aakar kyon jaga diyaa? samajhadaara. vyaktiko jeevonpar daya karanee chaahiye. yahaanse aage yah | parvat manushyonke liye agamy hai . atah ab tum meethe kanda-moola-phal khaakar yaheense laut jaao. aage jaakar vyarth apane praanonko sankatamen kyon daalate ho.

bheemasenane kahaa- 'main maroon ya bachoon tumase to is vishayamen naheen poochh raha hoon. tum jara uthakar mujhe raasta de do.' hanumaanajeene kaha, 'main rogase peeda़it hoon; tumhen jaana hee hai to mujhe laanghakar chale jaao. bheemasen bole- 'paramaatma samast praaniyonke dehamen hai, kiseeko laanghakar main usaka apamaan naheen karana chaahataa.' hanumaanajeene kaha, 'to tum meree poonchh pakada़kar hata do aur nikal jaao.' hanumaanjeeka yah kahana tha ki bheemasenane avajnaapoorvak baayen haathase hanumaanajeeko poochh pakada़kar bada़e jorase kheenchee. par ve tas se mas n hue. ab krodhase bharakar unhonne donon haathonse unakee poonchhako kheenchana aarambh kiyaa. par itanepar bhee unakee poonchh tas se mas n huee . jab bheemakee saaree shakti vyarth chalee gayeen, tab unaka munh lajjaase jhuk gayaa. ve samajh gaye ki yah vaanar koee saadhaaran vaanar naheen hai. ataev unakecharanonpar girakar kshama maangane lage. hanumaanajeene apana parichay diya aur bahuta-see neetika upadesh karake unhen vaheense lauta diyaa. vaheen unhonne bheemasenako yah varadaan diya tha ki mahaabhaarat yuddhake samay main arjunakee dhvajaapar baithakar tumalogon kee sahaayata karoongaa.

(mahaabhaarat, vanaparv, adhyaay 143-147)

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