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विचित्र न्याय  [छोटी सी कहानी]
Story To Read - हिन्दी कहानी (आध्यात्मिक कथा)

कहते हैं कि प्राचीन रोमनिवासियोंके न्यायालयों व्यापके स्थानपर एक ऐसी स्त्रीको प्रतिमा बनी रहती श्री. जिसको आँखोंके ऊपर तो कपड़े की पट्टी बंधी बहती थी और हाथमें तराजू होता था इसका अर्थ था कि यदि उसके सामने उसका पिता, पुत्र या पति भी आ जाय तो उसके माप-तौलमें वह न्यूनाधिक कुछ भी न कर सकेगी। इसी तरह न्यायाधीशको भी वहाँ अपने पुत्र, मित्र, शत्रु और मध्यस्थ-सभीको एक प्रकारका उचित न्याय वितरण करना पड़ेगा। (देखिये Youths Noble Path, by F. J. Gould pp. 226)

अन्यान्य देशोंमें यह चाहे जैसा भी रहा हो, पर भारतके प्राचीन इतिहासमें ऐसे न्यायोंकी कमी न थी। राजा दिष्टके पुत्र नाभागने एक वैश्य कन्यासे शादी कर ली थी। वैश्यने राजासे निवेदन किया कि 'आपके पुत्रने बलपूर्वक मेरी कन्याका अपहरण कर लिया है। आप यथोचित न्याय करें।' राजाने देखा कि उसका पुत्रविद्रोही-सा बन रहा है तो वह एक छोटी-सी टुकड़ी लेकर उसे पकड़ने चल पड़ा। युद्ध हुआ। युद्धमें ऋषियोंने राजासे आकर कहा- 'न्यायतः तुम्हारा यह पुत्र वैश्य हो गया; क्योंकि यदि कोई उच्च वर्णका व्यक्ति बिना अपने वर्णकी कन्यासे विवाह किये किसी निम्न वर्णकी कन्यासे विवाह कर लेता है तो वह उसी वर्णका हो जाता है, जिस वर्णकी कन्या होती है। अतएव अब तुम्हारा, जो क्षत्रिय हो, इस वैश्यसे युद्ध न्यायोचित नहीं है।' इसपर युद्ध बंद हो गया।

अब थोड़ी देरमें नाभाग वैश्यका वेष बनाकर राजाके पास उपस्थित हुआ और बोला- 'महाराज ! अब मैं न्यायतः आपकी वैश्य जातिकी एक प्रजा हूँ और मुझे उचित आज्ञा प्रदान करें।' तबसे नाभागने कृषि, वाणिज्य, गोपालन आदि वैश्योचित धर्म-कर्मोंको ही अपना लिया।

- जा0 श0 (Aryan Ancedotes, by R. S. Pandyaji)



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vichitr nyaaya

kahate hain ki praacheen romanivaasiyonke nyaayaalayon vyaapake sthaanapar ek aisee streeko pratima banee rahatee shree. jisako aankhonke oopar to kapada़e kee pattee bandhee bahatee thee aur haathamen taraajoo hota tha isaka arth tha ki yadi usake saamane usaka pita, putr ya pati bhee a jaay to usake maapa-taulamen vah nyoonaadhik kuchh bhee n kar sakegee. isee tarah nyaayaadheeshako bhee vahaan apane putr, mitr, shatru aur madhyastha-sabheeko ek prakaaraka uchit nyaay vitaran karana pada़egaa. (dekhiye Youths Noble Path, by F. J. Gould pp. 226)

anyaany deshonmen yah chaahe jaisa bhee raha ho, par bhaaratake praacheen itihaasamen aise nyaayonkee kamee n thee. raaja dishtake putr naabhaagane ek vaishy kanyaase shaadee kar lee thee. vaishyane raajaase nivedan kiya ki 'aapake putrane balapoorvak meree kanyaaka apaharan kar liya hai. aap yathochit nyaay karen.' raajaane dekha ki usaka putravidrohee-sa ban raha hai to vah ek chhotee-see tukada़ee lekar use pakada़ne chal pada़aa. yuddh huaa. yuddhamen rishiyonne raajaase aakar kahaa- 'nyaayatah tumhaara yah putr vaishy ho gayaa; kyonki yadi koee uchch varnaka vyakti bina apane varnakee kanyaase vivaah kiye kisee nimn varnakee kanyaase vivaah kar leta hai to vah usee varnaka ho jaata hai, jis varnakee kanya hotee hai. ataev ab tumhaara, jo kshatriy ho, is vaishyase yuddh nyaayochit naheen hai.' isapar yuddh band ho gayaa.

ab thoda़ee deramen naabhaag vaishyaka vesh banaakar raajaake paas upasthit hua aur bolaa- 'mahaaraaj ! ab main nyaayatah aapakee vaishy jaatikee ek praja hoon aur mujhe uchit aajna pradaan karen.' tabase naabhaagane krishi, vaanijy, gopaalan aadi vaishyochit dharma-karmonko hee apana liyaa.

- jaa0 sha0 (Aryan Ancedotes, by R. S. Pandyaji)

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