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साधनकी सटीकताका महत्त्व  [प्रेरक कथा]
Short Story - Wisdom Story (Short Story)

5- साधनकी सटीकताका महत्त्व

गुरुके द्वारा निर्दिष्ट साधन ही परिपक्व और फलप्रद हो सकता है। पाँच-छः मनुष्य हैं। उन सबको एक ही रोग है, उसके लिये जुलाब लेना आवश्यक है। वे पंसारीकी दूकानपर जाकर पूछते हैं कि 'भाई! जुलाबके लिये क्या लेना चाहिये ?' वह कहता है कि नमकीन आँवला बहुत अच्छा रहेगा। दूसरी दूकानपर जाकर पूछते हैं तो वह कहता है कि हरें अच्छी रहेंगी। तीसरा दूकानदार कहता है कि नौसादर अच्छा रहेगा। चौथा कहता है कि विलायती नमक अच्छा रहेगा। झण्डूकी दूकानपर पूछनेसे वह कहता है कि अश्वगन्धा ले लो, वायु कुपित हो गया है।
ऐसी अवस्थामें वे निश्चय नहीं कर पाते कि कौन-सा जुलाब लें और उनको निराशा हो जाती है। इतनेमें एक चतुर मनुष्य कहता है, 'भाई! उदास क्यों होते हो ? चतुरलाल वैद्यके यहाँ चलो और वे जैसा कहें, वैसा करो।' वैद्यराज प्रत्येककी प्रकृतिकी जाँच करके किसीको हर्रे, किसीको नौसादर तथा किसीको नमकीन आँवला, किसीको विलायती नमकका नुस्खा बताते हैं और उससे प्रत्येकको लाभ होता है।
इसी प्रकार हम सब लोग एक ही रोगसे पीड़ित हैं। व्याधि महाभयंकर है, उसका नाम है भव-रोग निदान तो ठीक है, परंतु चिकित्सामें भूल होनेसे मृत्यु निश्चित है। यहाँ मृत्युका अर्थ एक बार मरना नहीं है, बल्कि अनन्त मृत्युके चक्करमें भटकना है। 'मृत्योः स मृत्युमाप्नोति ।' अतएव सद्गुरुरूपी सद्वैद्यके पास जाना चाहिये और उनकी बतलायी हुई ओषधिका सेवन तबतक करना चाहिये, जबतक व्याधि निर्मूल न हो जाय। इसमें असावधानी करनेसे रोग दूर नहीं हो सकता।
[ ब्रह्मलीन सन्त स्वामी श्रीचिदानन्दजी सरस्वती, सिहोरवाले ]



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saadhanakee sateekataaka mahattva

5- saadhanakee sateekataaka mahattva

guruke dvaara nirdisht saadhan hee paripakv aur phalaprad ho sakata hai. paancha-chhah manushy hain. un sabako ek hee rog hai, usake liye julaab lena aavashyak hai. ve pansaareekee dookaanapar jaakar poochhate hain ki 'bhaaee! julaabake liye kya lena chaahiye ?' vah kahata hai ki namakeen aanvala bahut achchha rahegaa. doosaree dookaanapar jaakar poochhate hain to vah kahata hai ki haren achchhee rahengee. teesara dookaanadaar kahata hai ki nausaadar achchha rahegaa. chautha kahata hai ki vilaayatee namak achchha rahegaa. jhandookee dookaanapar poochhanese vah kahata hai ki ashvagandha le lo, vaayu kupit ho gaya hai.
aisee avasthaamen ve nishchay naheen kar paate ki kauna-sa julaab len aur unako niraasha ho jaatee hai. itanemen ek chatur manushy kahata hai, 'bhaaee! udaas kyon hote ho ? chaturalaal vaidyake yahaan chalo aur ve jaisa kahen, vaisa karo.' vaidyaraaj pratyekakee prakritikee jaanch karake kiseeko harre, kiseeko nausaadar tatha kiseeko namakeen aanvala, kiseeko vilaayatee namakaka nuskha bataate hain aur usase pratyekako laabh hota hai.
isee prakaar ham sab log ek hee rogase peeda़it hain. vyaadhi mahaabhayankar hai, usaka naam hai bhava-rog nidaan to theek hai, parantu chikitsaamen bhool honese mrityu nishchit hai. yahaan mrityuka arth ek baar marana naheen hai, balki anant mrityuke chakkaramen bhatakana hai. 'mrityoh s mrityumaapnoti .' ataev sadgururoopee sadvaidyake paas jaana chaahiye aur unakee batalaayee huee oshadhika sevan tabatak karana chaahiye, jabatak vyaadhi nirmool n ho jaaya. isamen asaavadhaanee karanese rog door naheen ho sakataa.
[ brahmaleen sant svaamee shreechidaanandajee sarasvatee, sihoravaale ]

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