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स्वामिभक्ति धन्य है  [शिक्षदायक कहानी]
Short Story - Spiritual Story (हिन्दी कहानी)

महाराणा संग्रामसिंह स्वर्ग पधारे। मेवाड़के सिंहासनके योग्य उनका ज्येष्ठ पुत्र विक्रमादित्य सिद्ध नहीं हुआ। राजपूत सरदारोंने उसे शीघ्र सिंहासनसे उतार दिया। छोटे कुमार उदयसिंह अभी शिशु थे। उनका राज्याभिषेक तो हो गया; किंतु दासीपुत्र बनवीरको उनका संरक्षकबनाया गया। बालक राणा उदयसिंहकी ओरसे बनवीर राज्य संचालन करने लगा।

बनवीरके मनमें राज्यका लोभ आया। एक रात्रिको वह स्वयं नंगी तलवार लेकर उठा और राजभवनमें | निःशङ्क सोते राजकुमार विक्रमादित्यकी उसने हत्याकर दी। उसका यह क्रूर कर्म राजभवनमें दोने-पत्तल उठानेका काम करनेवाला सेवक देख रहा था। वह दौड़ा हुआ राणा उदयसिंहकी धाय पन्नाके पास गया। उसने बतलाया - 'बनवीर इसी ओर आ रहा है।'

पन्ना दाईने दो क्षणमें कर्तव्य निश्चित कर लिया। उसने सोते हुए उदयसिंहके वस्त्र उतार लिये और उन्हें एक टोकरीमें लिटाकर ऊपरसे दोने-पत्तलसे ढक दिया। वह टोकरी उस सेवकको देकर कह दिया 'चुप-चाप राजभवन से बाहर निकल जाओ। नगरके बाहर नदीके पास मेरी प्रतीक्षा करना।'

अपने पुत्र चन्दनको उस स्वामिभक्ता धायने उदय सिंहके कपड़े पहिनाकर उनके पलंगपर सुला दिया। इतनेमें ही रक्तसे सनी तलवार लिये बनवीर आ पहुँचा।उसने पूछा- 'उदय कहाँ है ?'

हृदयपर पत्थर रखकर पन्नाने अपने बच्चेकी ओर संकेत कर दिया। एक ही झटकेमें उस बालकका मस्तक बनवीरने शरीरसे पृथक् कर दिया। वह शीघ्रतासे वहाँसे चल दिया। पन्ना अपने पुत्रका शव लिये नदी-किनारे पहुँची। आज वह खुलकर रो भी नहीं सकती थी । पुत्रका शरीर नदीमें विसर्जित करके वह उदयसिंहको लेकर वहाँसे चली गयी।

समय आया जब कि बड़े होकर उदयसिंहने बनवीरको उसके कर्मका दण्ड दिया और मेवाड़के सिंहासनको भूषित किया। पन्ना दाईके अपूर्व त्यागने ही राणाके कुलकी रक्षा की। धन्य है ऐसी स्वामिभक्ति ।

- सु0 सिं0



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svaamibhakti dhany hai

mahaaraana sangraamasinh svarg padhaare. mevaada़ke sinhaasanake yogy unaka jyeshth putr vikramaadity siddh naheen huaa. raajapoot saradaaronne use sheeghr sinhaasanase utaar diyaa. chhote kumaar udayasinh abhee shishu the. unaka raajyaabhishek to ho gayaa; kintu daaseeputr banaveerako unaka sanrakshakabanaaya gayaa. baalak raana udayasinhakee orase banaveer raajy sanchaalan karane lagaa.

banaveerake manamen raajyaka lobh aayaa. ek raatriko vah svayan nangee talavaar lekar utha aur raajabhavanamen | nihshank sote raajakumaar vikramaadityakee usane hatyaakar dee. usaka yah kroor karm raajabhavanamen done-pattal uthaaneka kaam karanevaala sevak dekh raha thaa. vah dauda़a hua raana udayasinhakee dhaay pannaake paas gayaa. usane batalaaya - 'banaveer isee or a raha hai.'

panna daaeene do kshanamen kartavy nishchit kar liyaa. usane sote hue udayasinhake vastr utaar liye aur unhen ek tokareemen litaakar ooparase done-pattalase dhak diyaa. vah tokaree us sevakako dekar kah diya 'chupa-chaap raajabhavan se baahar nikal jaao. nagarake baahar nadeeke paas meree prateeksha karanaa.'

apane putr chandanako us svaamibhakta dhaayane uday sinhake kapada़e pahinaakar unake palangapar sula diyaa. itanemen hee raktase sanee talavaar liye banaveer a pahunchaa.usane poochhaa- 'uday kahaan hai ?'

hridayapar patthar rakhakar pannaane apane bachchekee or sanket kar diyaa. ek hee jhatakemen us baalakaka mastak banaveerane shareerase prithak kar diyaa. vah sheeghrataase vahaanse chal diyaa. panna apane putraka shav liye nadee-kinaare pahunchee. aaj vah khulakar ro bhee naheen sakatee thee . putraka shareer nadeemen visarjit karake vah udayasinhako lekar vahaanse chalee gayee.

samay aaya jab ki bada़e hokar udayasinhane banaveerako usake karmaka dand diya aur mevaada़ke sinhaasanako bhooshit kiyaa. panna daaeeke apoorv tyaagane hee raanaake kulakee raksha kee. dhany hai aisee svaamibhakti .

- su0 sin0

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