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अभयका देवता  [Wisdom Story]
Short Story - Spiritual Story (प्रेरक कथा)

विराट् विश्वको अभय, अद्वेष और अखेदका दिव्य संदेश देनेवाले भगवान् महावीरने साधना-पथपर चलनेवाले साधकोंको सम्बोधित करके कहा- 'साधको! तुम स्वयं अपने वैरी हो और स्वयं ही अपने परम मित्र भी। जब आत्मा क्रोधके क्षणोंमें होता है, तब अपना वैरी और जब क्षमाके क्षणोंमें होता है, तब अपना मित्र।'

एक तपस्वी था। शिष्यके बार-बार कुछ कह देनेपर तपस्वीको क्रोध आया और मारने दौड़नेपर रातके अँधेरेमें खम्भेसे टकराकर मर गया।

तपस्वी मरकर भी अपने तपोबलसे फिर तापस बना। आश्रमका अधिपति बन गया। नाम था चण्डकौशिक तापस। एक बार आश्रममें ग्वाल-बाल फल-फूल तोड़नेके अभिप्रायसे आ घुसे और फल-फूल तोड़ने लगे। चण्डकौशिकने देखते ही ललकारा; किंतु वे फिर आ घुसे। अबकी बार चण्डकौशिकको प्रचण्ड क्रोध आया। कुल्हाड़ी लेकर दौड़ा मारने। क्रोधावेशमें ध्यान न रहनेसे कूपमें जा गिरा और मर गया। प्रचण्ड क्रोधके क्षणोंमें मृत्यु होनेसे वह चण्डकौशिकतापस उसी वनमें विष दृष्टि सर्प बना। विषधर और भयङ्कर सर्पके भयसे भीत होकर लोगोंने उधर जाना आना बंद कर दिया।

एक बार परम प्रभु महावीर साधना करते-करते जा निकले उस वनमें। देखनेवाले लोगोंने जानेका निषेध भी बहुत किया। पर अभयको भय क्या ? क्षमाश्रमण महावीरको विष-दृष्टि चण्डकौशिक नागराजने ज्यों ही देखा कि फुफकार करने लगा, विष-ज्वाला उगलने लगा। वीर प्रभु भी उसके बिलके पास ही अडिग और अमिट होकर स्थिर खड़े रहे । क्षमा और क्रोधका संघर्ष काफी देरतक चलता रहा। अपना तीक्ष्ण दंश भी मारा भगवान्‌के चरणमें। वहाँ तो खूनके बदले दूधकी धार बह निकली। वह हार गया ।

क्रोधपर क्षमाकी विजय । अमृतने विषको जीत लिया। परम प्रभु महावीरने शान्त और मधुर स्वरमें कहा – 'चण्ड ! चेतो, जरा सोचो-समझो। तुम कौन थे? क्या बन बैठे हो ?' वह समझा और तबसे लोगोंको उसने अभय देना सीखा। लोग उसे मारते, तब भी शान्त | रहता। अपने जीवनके क्षण पूरे करके वह देव बना।



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abhayaka devataa

viraat vishvako abhay, advesh aur akhedaka divy sandesh denevaale bhagavaan mahaaveerane saadhanaa-pathapar chalanevaale saadhakonko sambodhit karake kahaa- 'saadhako! tum svayan apane vairee ho aur svayan hee apane param mitr bhee. jab aatma krodhake kshanonmen hota hai, tab apana vairee aur jab kshamaake kshanonmen hota hai, tab apana mitra.'

ek tapasvee thaa. shishyake baara-baar kuchh kah denepar tapasveeko krodh aaya aur maarane dauड़nepar raatake andheremen khambhese takaraakar mar gayaa.

tapasvee marakar bhee apane tapobalase phir taapas banaa. aashramaka adhipati ban gayaa. naam tha chandakaushik taapasa. ek baar aashramamen gvaala-baal phala-phool toda़neke abhipraayase a ghuse aur phala-phool toda़ne lage. chandakaushikane dekhate hee lalakaaraa; kintu ve phir a ghuse. abakee baar chandakaushikako prachand krodh aayaa. kulhaada़ee lekar dauda़a maarane. krodhaaveshamen dhyaan n rahanese koopamen ja gira aur mar gayaa. prachand krodhake kshanonmen mrityu honese vah chandakaushikataapas usee vanamen vish drishti sarp banaa. vishadhar aur bhayankar sarpake bhayase bheet hokar logonne udhar jaana aana band kar diyaa.

ek baar param prabhu mahaaveer saadhana karate-karate ja nikale us vanamen. dekhanevaale logonne jaaneka nishedh bhee bahut kiyaa. par abhayako bhay kya ? kshamaashraman mahaaveerako visha-drishti chandakaushik naagaraajane jyon hee dekha ki phuphakaar karane laga, visha-jvaala ugalane lagaa. veer prabhu bhee usake bilake paas hee adig aur amit hokar sthir khada़e rahe . kshama aur krodhaka sangharsh kaaphee deratak chalata rahaa. apana teekshn dansh bhee maara bhagavaan‌ke charanamen. vahaan to khoonake badale doodhakee dhaar bah nikalee. vah haar gaya .

krodhapar kshamaakee vijay . amritane vishako jeet liyaa. param prabhu mahaaveerane shaant aur madhur svaramen kaha – 'chand ! cheto, jara socho-samajho. tum kaun the? kya ban baithe ho ?' vah samajha aur tabase logonko usane abhay dena seekhaa. log use maarate, tab bhee shaant | rahataa. apane jeevanake kshan poore karake vah dev banaa.

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