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कटड़ा बँधा है  [हिन्दी कथा]
Spiritual Story - आध्यात्मिक कहानी (Spiritual Story)

कटड़ा बँधा है

सारंगपुर अच्छा बड़ा गाँव था। नहरका क्षेत्र होनेके कारण पानीकी कमी न थी। इसलिये फसलें अच्छी होती थीं। सारंगपुरमें लाला नत्थूमल दूकान करते थे और ठाकुर चन्दन सिंह एक बड़े किसान थे। दोनों एक-दूसरेसे परिचित थे।
ठाकुर चन्दन सिंहके खेतपर खड़ा शीशमका पेड़ सूख गया था, इसलिये उन्होंने उसके कुन्दे कटवाकर अपने चबूतरेपर रखवा दिये। गन्नेकी फसल अच्छी हुई और उससे काफी लाभ हुआ तो ठाकुर चन्दन सिंहने बढ़ईको बुलाकर उस लकड़ीसे एक शानदार रहड़ (बैलगाड़ी) बनवाना आरम्भ किया।
रहडू बहुत बढ़िया बना। गाँवमें सभीने उसकी तारीफ की, पर ठाकुर चन्दन सिंहको वह नहीं भाया। उन्होंने शहरसे एक कारीगर बुलाया। उसने रहडूपर पोलके फूल जड़ दिये और उन फूलोंको पीतलपालिशसे रगड़कर ऐसा चमकाया कि सारा रहडू झमझम झमकने लगा। सबने कहा कि हमारे गाँवमें ऐसा सुन्दर और कीमती रहड़ कभी किसीने नहीं बनवाया। सच तो यह है कि सारंगपुरके पासके किसी दूसरे गाँवमें भी ऐसा रहडू नहीं था।
उन्हीं दिनों लाला नत्थूमलकी बेटीका विवाह हुआ। सारंगपुरसे रेलका स्टेशन पाँच मील था। नत्थूमलने सोचा कि यदि मेरी बेटी उस रहडुमें बैठकर स्टेशनतक जाय, तो मेरे सम्बन्धियों में मेरा खूब नाम होगा।
वे झपटे झपटे ठाकुर चन्दन सिंहके घर पहुँचे। ठाकुर साहब अपनी बैठकमें बैठे थे। नत्थूमलने कहा 'आज बेटीकी बिदाई है। उसे स्टेशनतक पहुँचाने के लिये अपना रहडू दे दें।'
ठाकुर साहब बोले-'नत्थूमल, जैसी वह तुम्हारी बेटी, वैसी ही मेरी बेटी। बेटी रहडूमें बैठकर स्टेशन जाय, यह तो खुशीकी बात है। फिर रहडू भी खाली ही खड़ा है, पर दिक्कत तो यह है कि मेरे बेटेने उसमें भैंस कटड़ेका रस्सा बाँध दिया है। इसलिये रहडू चल नहीं सकता।'
ठाकुर साहबका मतलब साफ था कि वे अपना रहडू देना नहीं चाहते, इसीलिये कटड़ा बाँधनेका बहाना कर रहे हैं। पर लाला नत्थूमल नहीं समझे। उन्होंने कहा-'ठाकुर साहब, आप चिन्ता न करें, कटड़ेका रस्सा खोलकर मैं में बाँध दूँगा।'
ठाकुर साहबने एक बार तीखी आँखये नत्थूमलकी तरफ देखा। फिर अपने स्वरको सँभालकर कहा-'क्यों भाई नत्थूमल, क्या मुँह से इनकार सुनकर ही मनकी बात समझोगे ?'
नत्थूमलने ठाकुरकी आँखें देखीं, बोल सुने और चुपचाप लौट गये।
हाँ जी, नत्थूमल लौट गये, पर हम सबको एक पाठ पढ़ा गये। वह बड़े कामका है। पाठ यह है कि पहले तो यह आदत ही बुरी है कि दूसरेसे चीज माँगकर शान बाँधी जाय। कुछ लोगोंमें आदत होती है कि कहीं जायेंगे तो किसीके कपड़े माँगेंगे, किसीकी घड़ी, किसीका कुछ यह समझना ही भूल है कि इस तरह किसीकी प्रतिष्ठा बढ़ती है। देर-सबेर यह बात सबको पता चल जाती है कि वह माँगी हुई चीजें बरतता है। इससे वह सबकी निगाहोंसे गिर जाता है और उसकी झूठी शान उखड़ जाती है।
दूसरी बात यह है कि यदि हमें किसीसे कुछ चीज माँगनी ही पड़े, तो उस माँगनेको हम अपना अधिकार न मानें, देनेकी जिद न करें और कोई इनकार कर दे, तो बुरा न मानें।
तीसरी बात यह है कि हम ऐसे ही कोई चीज माँगें, जिसपर हमारा अधिकार हो और जिसके बारेमें यह विश्वास हो कि वह इनकार नहीं कर सकता।



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katada़a bandha hai

katada़a bandha hai

saarangapur achchha bada़a gaanv thaa. naharaka kshetr honeke kaaran paaneekee kamee n thee. isaliye phasalen achchhee hotee theen. saarangapuramen laala natthoomal dookaan karate the aur thaakur chandan sinh ek bada़e kisaan the. donon eka-doosarese parichit the.
thaakur chandan sinhake khetapar khada़a sheeshamaka peda़ sookh gaya tha, isaliye unhonne usake kunde katavaakar apane chabootarepar rakhava diye. gannekee phasal achchhee huee aur usase kaaphee laabh hua to thaakur chandan sinhane badha़eeko bulaakar us lakada़eese ek shaanadaar rahada़ (bailagaada़ee) banavaana aarambh kiyaa.
rahadoo bahut badha़iya banaa. gaanvamen sabheene usakee taareeph kee, par thaakur chandan sinhako vah naheen bhaayaa. unhonne shaharase ek kaareegar bulaayaa. usane rahadoopar polake phool jada़ diye aur un phoolonko peetalapaalishase ragada़kar aisa chamakaaya ki saara rahadoo jhamajham jhamakane lagaa. sabane kaha ki hamaare gaanvamen aisa sundar aur keematee rahada़ kabhee kiseene naheen banavaayaa. sach to yah hai ki saarangapurake paasake kisee doosare gaanvamen bhee aisa rahadoo naheen thaa.
unheen dinon laala natthoomalakee beteeka vivaah huaa. saarangapurase relaka steshan paanch meel thaa. natthoomalane socha ki yadi meree betee us rahadumen baithakar steshanatak jaay, to mere sambandhiyon men mera khoob naam hogaa.
ve jhapate jhapate thaakur chandan sinhake ghar pahunche. thaakur saahab apanee baithakamen baithe the. natthoomalane kaha 'aaj beteekee bidaaee hai. use steshanatak pahunchaane ke liye apana rahadoo de den.'
thaakur saahab bole-'natthoomal, jaisee vah tumhaaree betee, vaisee hee meree betee. betee rahadoomen baithakar steshan jaay, yah to khusheekee baat hai. phir rahadoo bhee khaalee hee khada़a hai, par dikkat to yah hai ki mere betene usamen bhains katada़eka rassa baandh diya hai. isaliye rahadoo chal naheen sakataa.'
thaakur saahabaka matalab saaph tha ki ve apana rahadoo dena naheen chaahate, iseeliye katada़a baandhaneka bahaana kar rahe hain. par laala natthoomal naheen samajhe. unhonne kahaa-'thaakur saahab, aap chinta n karen, katada़eka rassa kholakar main men baandh doongaa.'
thaakur saahabane ek baar teekhee aankhaye natthoomalakee taraph dekhaa. phir apane svarako sanbhaalakar kahaa-'kyon bhaaee natthoomal, kya munh se inakaar sunakar hee manakee baat samajhoge ?'
natthoomalane thaakurakee aankhen dekheen, bol sune aur chupachaap laut gaye.
haan jee, natthoomal laut gaye, par ham sabako ek paath padha़a gaye. vah bada़e kaamaka hai. paath yah hai ki pahale to yah aadat hee buree hai ki doosarese cheej maangakar shaan baandhee jaaya. kuchh logonmen aadat hotee hai ki kaheen jaayenge to kiseeke kapada़e maangenge, kiseekee ghada़ee, kiseeka kuchh yah samajhana hee bhool hai ki is tarah kiseekee pratishtha badha़tee hai. dera-saber yah baat sabako pata chal jaatee hai ki vah maangee huee cheejen baratata hai. isase vah sabakee nigaahonse gir jaata hai aur usakee jhoothee shaan ukhada़ jaatee hai.
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teesaree baat yah hai ki ham aise hee koee cheej maangen, jisapar hamaara adhikaar ho aur jisake baaremen yah vishvaas ho ki vah inakaar naheen kar sakataa.

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