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स्वतन्त्रताका मूल्य  [हिन्दी कथा]
बोध कथा - आध्यात्मिक कथा (Spiritual Story)

एक चाँदनी रातमें दैवयोगसे एक भेड़ियेको एक अत्यन्त मोटे-ताजे कुत्तेसे भेंट हो गयी। प्राथमिक शिष्टाचारके बाद भेड़ियेने कहा- 'मित्र! यह कैसी बात है कि तुम स्वयं तो खा-पीकर इतने मोटे-ताजे हो गये हो और इधर मैं रात-दिन भोजनके अभावमें मर रहा हूँ, बड़ी कठिनाई से इस दुर्बल शरीरमें मेरे प्राणमात्र अब शेष रह गये हैं।'

कुत्तेने कहा- 'ठीक तो है, तुम भी हमारे जैसे मोटे-ताजे बन सकते हो, बस, आवश्यकता इस बातकी है कि तुम भी मेरा अनुकरण करो।'

भेड़ियेने कहा- 'वह क्या ?'

'बस, केवल मेरे मालिकके घरकी रखवाली करना और रातमें चोरोंको समीप न आने देना।' कुत्ता बोला। 'सब प्रकारसे सोलहों आने जी लगाकर करूँगा

आजकल मेरे दिन बड़े दुःखसे बीत रहे हैं। एक तो जंगलका वातावरण, दूसरे असह्य हिमपात, घोर वर्षा जीवन-धारण कठिन हो रहा है सो सिरपर गरम छत और भरपेट भोजन, मैं समझता हूँ, यह परिवर्तन कोई बुरा तो नहीं दीखता।' भेड़िया बोला।

'बिलकुल ठीक। बस, तो अब आपको कुछकरना नहीं है। आप चुपचाप मेरे पीछे-पीछे चलते आइये।' कुत्ता बोला।

इस प्रकार जब दोनों धीरे-धीरे चले जा रहे थे. तबतक भेड़ियेका ध्यान कुत्तेकी गर्दनपर पड़े हुए एक दागकी तरफ गया। इस विचित्र चिह्नको देखकर उसे इतना कुतूहल हुआ कि वह किसी प्रकार अपनेको रोक न सका और पूछ बैठा कि वह उसका कैसा चिह्न है ? कुत्तेने कहा- 'यह कुछ नहीं है।'

भेड़ियेने कहा- 'तो भी कृपाकर बतलाओ तो सही।' कुत्ता बोला- 'मालूम होता है तुम बन्धनकी पट्टीकी बात कर रहे हो, जिसमें मेरी सिकड़ी लगी रहती है।' 'तो इसका अर्थ है कि तुम्हें यथेच्छ घूमने फिरनेकी स्वतन्त्रता नहीं है।' भेड़िया चकित होकर चिल्ला पड़ा।

'प्रायः नहीं; क्योंकि मैं देखनेमें भयानक हूँ ही। इसलिये दिनमें तो लोग मुझे बाँध रखते हैं और रात में खुला छोड़ देते हैं। पर मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ, मेरा मालिक मुझे अपने जैसा ही भोजन देता है। वह मुझे बड़ा प्यार करता है। परंतु भाई यह क्या!तुम चले कहाँ ?'

'बस! नमस्कार! तुम्हारा यह भोजन तुम्हें ही मुबारक हो। मेरी आजादीके सामने यह जंगलका सूखा छिलका एक परवश सम्राट्के उपभोगोंसे भी कहींबढ़ा-चढ़ा है। मैं तो इस लोह - शृङ्खलाको उस मूल्यपर भी न स्वीकार करूँगा।' – A dry crust with liberty against a king's luxury with a chain.

-जा0 श0



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svatantrataaka moolya

ek chaandanee raatamen daivayogase ek bheda़iyeko ek atyant mote-taaje kuttese bhent ho gayee. praathamik shishtaachaarake baad bheda़iyene kahaa- 'mitra! yah kaisee baat hai ki tum svayan to khaa-peekar itane mote-taaje ho gaye ho aur idhar main raata-din bhojanake abhaavamen mar raha hoon, bada़ee kathinaaee se is durbal shareeramen mere praanamaatr ab shesh rah gaye hain.'

kuttene kahaa- 'theek to hai, tum bhee hamaare jaise mote-taaje ban sakate ho, bas, aavashyakata is baatakee hai ki tum bhee mera anukaran karo.'

bheda़iyene kahaa- 'vah kya ?'

'bas, keval mere maalikake gharakee rakhavaalee karana aur raatamen choronko sameep n aane denaa.' kutta bolaa. 'sab prakaarase solahon aane jee lagaakar karoongaa

aajakal mere din bada़e duhkhase beet rahe hain. ek to jangalaka vaataavaran, doosare asahy himapaat, ghor varsha jeevana-dhaaran kathin ho raha hai so sirapar garam chhat aur bharapet bhojan, main samajhata hoon, yah parivartan koee bura to naheen deekhataa.' bheda़iya bolaa.

'bilakul theeka. bas, to ab aapako kuchhakarana naheen hai. aap chupachaap mere peechhe-peechhe chalate aaiye.' kutta bolaa.

is prakaar jab donon dheere-dheere chale ja rahe the. tabatak bheda़iyeka dhyaan kuttekee gardanapar pada़e hue ek daagakee taraph gayaa. is vichitr chihnako dekhakar use itana kutoohal hua ki vah kisee prakaar apaneko rok n saka aur poochh baitha ki vah usaka kaisa chihn hai ? kuttene kahaa- 'yah kuchh naheen hai.'

bheda़iyene kahaa- 'to bhee kripaakar batalaao to sahee.' kutta bolaa- 'maaloom hota hai tum bandhanakee patteekee baat kar rahe ho, jisamen meree sikada़ee lagee rahatee hai.' 'to isaka arth hai ki tumhen yathechchh ghoomane phiranekee svatantrata naheen hai.' bheda़iya chakit hokar chilla pada़aa.

'praayah naheen; kyonki main dekhanemen bhayaanak hoon hee. isaliye dinamen to log mujhe baandh rakhate hain aur raat men khula chhoda़ dete hain. par main tumhen vishvaas dilaata hoon, mera maalik mujhe apane jaisa hee bhojan deta hai. vah mujhe bada़a pyaar karata hai. parantu bhaaee yah kyaa!tum chale kahaan ?'

'basa! namaskaara! tumhaara yah bhojan tumhen hee mubaarak ho. meree aajaadeeke saamane yah jangalaka sookha chhilaka ek paravash samraatke upabhogonse bhee kaheenbadha़aa-chadha़a hai. main to is loh - shrinkhalaako us moolyapar bhee n sveekaar karoongaa.' – A dry crust with liberty against king's luxury with chain.

-jaa0 sha0

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