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लोमड़ीका बच्चा और मीठे बेर  [Moral Story]
Spiritual Story - Spiritual Story (Spiritual Story)

लोमड़ीका बच्चा और मीठे बेर

एक दिन एक लोमड़ीका बच्चा जब खानेकी खोज में निकला तो उसकी माँने उसे समझाया-'बेटा जंगली बेर खाते वक्त ध्यान रखना। बेर बहुत ही मीठे हैं, पर ज्यादा खाओगे तो पेटमें दर्द होगा।'
बच्चेने 'हाँ, समझ गया' कहकर जंगलमें प्रवेश किया। चलते-चलते उसे बेरोंसे लदा हुआ एक पेड़ दिखायी दिया। उसके मुँहमें पानी आ गया। नीचे गिरे बेरोंको खानेकी इच्छा तो उसकी बहुत हुई, पर माँकी बात भी याद आयी।
कुछ समयके लिये वह दुविधामें पड़ गया 'खाऊँ या न खाऊँ ?' जब वह अपने लालचको रोक नहीं पाया तो सब बातें भुलाकर गपागप बेर खाने लगा। उसने बेर खाना तभी छोड़ा, जब पेटमें दर्द महसूस किया। जब दर्द असहनीय हो गया, तब उसने अफसोस किया। घर पहुँचकर अपनी माँसे फिरसे वादा किया—'माँ! मैं कसम खाता हूँ कि कभी जंगली बेर नहीं खाऊँगा।'
अलगे दिन जब वह फिरसे खानेकी खोजमें निकला, उसे बेरोंसे लदे उस पेड़की याद आयी। उसने अपने मनको समझाया कि उसे उस पेड़ और बेरोंके बारेमें नहीं सोचना चाहिये। पर अनायास ही उसके कदम उस ओर बढ़ने लगे। उसने अपने मनमें सोचा 'अगर मैं पेड़के पास चला भी जाता हूँ तो क्या गलत है ? बस, बेरोंको नहीं खाऊँगा।'
पर जंगलमें जब उसने फलसे लदे पेड़को देखा तो अपने-आपको रोक नहीं पाया। उसके मुँहमें पानी आ गया और उसने सोचा 'अगर एक-दो बेर खा लेता हूँ तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा।' उसने इस तर्कसे अपने मनको समझाया और पहले दिनका भयंकर पेट दर्द भूलकर वह फल खाने लगा। कुछ ही क्षणोंमें वह जमीनपर गिरकर दर्दसे छटपटाने लगा।
क्या यह हमारे जीवनकी भी सच्चाई नहीं है?
हम भी उस लोमड़ीके बच्चेकी तरह ही हैं। जब हमें बड़े समझाते हैं कि बुरी आदतोंको मत अपनाओ, हम मान लेते हैं, पर जल्द ही प्रलोभनोंके सामने हार जाते हैं। कुछ क्षणोंके आनन्दके लिये हम उन बुरे परिणामोंको भुला बैठते हैं, जो हमें बर्बाद कर देते हैं।[ श्रीराघवेश्वरजी भारती ]



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lomada़eeka bachcha aur meethe bera

lomada़eeka bachcha aur meethe bera

ek din ek lomada़eeka bachcha jab khaanekee khoj men nikala to usakee maanne use samajhaayaa-'beta jangalee ber khaate vakt dhyaan rakhanaa. ber bahut hee meethe hain, par jyaada khaaoge to petamen dard hogaa.'
bachchene 'haan, samajh gayaa' kahakar jangalamen pravesh kiyaa. chalate-chalate use beronse lada hua ek peda़ dikhaayee diyaa. usake munhamen paanee a gayaa. neeche gire beronko khaanekee ichchha to usakee bahut huee, par maankee baat bhee yaad aayee.
kuchh samayake liye vah duvidhaamen pada़ gaya 'khaaoon ya n khaaoon ?' jab vah apane laalachako rok naheen paaya to sab baaten bhulaakar gapaagap ber khaane lagaa. usane ber khaana tabhee chhoda़a, jab petamen dard mahasoos kiyaa. jab dard asahaneey ho gaya, tab usane aphasos kiyaa. ghar pahunchakar apanee maanse phirase vaada kiyaa—'maan! main kasam khaata hoon ki kabhee jangalee ber naheen khaaoongaa.'
alage din jab vah phirase khaanekee khojamen nikala, use beronse lade us peda़kee yaad aayee. usane apane manako samajhaaya ki use us peda़ aur beronke baaremen naheen sochana chaahiye. par anaayaas hee usake kadam us or badha़ne lage. usane apane manamen socha 'agar main peड़ke paas chala bhee jaata hoon to kya galat hai ? bas, beronko naheen khaaoongaa.'
par jangalamen jab usane phalase lade peda़ko dekha to apane-aapako rok naheen paayaa. usake munhamen paanee a gaya aur usane socha 'agar eka-do ber kha leta hoon to koee phark naheen pada़egaa.' usane is tarkase apane manako samajhaaya aur pahale dinaka bhayankar pet dard bhoolakar vah phal khaane lagaa. kuchh hee kshanonmen vah jameenapar girakar dardase chhatapataane lagaa.
kya yah hamaare jeevanakee bhee sachchaaee naheen hai?
ham bhee us lomada़eeke bachchekee tarah hee hain. jab hamen bada़e samajhaate hain ki buree aadatonko mat apanaao, ham maan lete hain, par jald hee pralobhanonke saamane haar jaate hain. kuchh kshanonke aanandake liye ham un bure parinaamonko bhula baithate hain, jo hamen barbaad kar dete hain.[ shreeraaghaveshvarajee bhaaratee ]

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