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संत दर्शनका प्रभाव  [Moral Story]
Short Story - बोध कथा (Short Story)

'इस संसारके सब प्राणी अपने ही हैं, कोई भी पराया नहीं है। पापी घृणाका पात्र नहीं है, उससे निष्कपट प्रेम करना चाहिये। भगवान् पापीके ही उद्धारके लिये अवतार लेते हैं।' महात्मा हरनाथने निर्भयतापूर्वक अपने प्रेमियों और शिष्योंको समझाया और उस ओर चल पड़े, जिधर डाकू रामखान रहता था। उसके अत्याचार और लूटपाटसे समस्त कटक प्रदेश संत्रस्त था। उसके भयसे लोग थर-थर काँपते थे और धोखेसे भी उसका नाम नहीं लेते थे।

'पागल' हरनाथने उस वनमें प्रवेश किया, जिसमें उस डाकूका निवास स्थान था। निर्जन वनमें महात्माने भीषण आकारवाले एक व्यक्तिको देखा और समझ गये। कि यह रामखान ही है। वे बढ़ते गये और दो-चार क्षणके बाद ही डाकू उनके सामने खड़ा था।

'पिताजी! मैंने आजतक पाप ही पाप किये हैं। मैंने अपने पाप और अत्याचारकी कथा किसीसे नहीं कही। मेरे उद्धारका समय आ पहुँचा है। मैं इस निर्जन पथपर खड़ा होकर केवल आपकी राह देख रहा था। जगत्के किसी भी पदार्थमें मुझे सुख नहीं मिल सका। मुझे भवसागरके पार उतारिये।' डाकू रामखानकी वृत्तिबदल गयी। एक क्षणके लिये ही संतके सम्पर्क में आनेसे उसके पाप नष्ट हो गये और वह पागल | हरनाथके चरणोंपर गिर पड़ा। वह सिसक रहा था। | महात्मा हरनाथने उसका बड़े प्रेमसे आलिङ्गन किया और कहा कि 'परमात्माके राज्यमें शाश्वत और परम | आनन्दकी प्राप्ति हो सकती है, तुमने पश्चात्तापकी आगमें अपने समस्त पाप जला दिये।'

'मुझे रास्ता दिखाइये। प्रकाश दीजिये। मैं आपका दास हूँ।' रामखानने कातर स्वरसे कहा। 'भगवान्का नाम ही मन्त्रराज है। सोते-जागते, उठते-बैठते और खाते-पीते उस मधुर नामामृतका पान करते रहना चाहिये। वे प्रभु सर्वसमर्थ हैं। जीवमात्रसे प्रेम करो, सच्चा प्रेम ही प्रभुकी प्राप्तिका सुगम पथ है।' महात्मा हरनाथने उसे अपनी अहैतुकी कृपासे धन्य कर दिया।

रामखानने संन्यास ले लिया और वृन्दावनमें यमुनातटस्थ किसी रमणीय स्थानमें निवास करके वे भगवान् श्रीकृष्णका भजन करने लगे। संतदर्शनकी महिमाका बखान नहीं किया जा सकता। बड़े भाग्यसे ही संतका दर्शन मिलता है।

-रा0 श्री0



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sant darshanaka prabhaava

'is sansaarake sab praanee apane hee hain, koee bhee paraaya naheen hai. paapee ghrinaaka paatr naheen hai, usase nishkapat prem karana chaahiye. bhagavaan paapeeke hee uddhaarake liye avataar lete hain.' mahaatma haranaathane nirbhayataapoorvak apane premiyon aur shishyonko samajhaaya aur us or chal pada़e, jidhar daakoo raamakhaan rahata thaa. usake atyaachaar aur lootapaatase samast katak pradesh santrast thaa. usake bhayase log thara-thar kaanpate the aur dhokhese bhee usaka naam naheen lete the.

'paagala' haranaathane us vanamen pravesh kiya, jisamen us daakooka nivaas sthaan thaa. nirjan vanamen mahaatmaane bheeshan aakaaravaale ek vyaktiko dekha aur samajh gaye. ki yah raamakhaan hee hai. ve badha़te gaye aur do-chaar kshanake baad hee daakoo unake saamane khada़a thaa.

'pitaajee! mainne aajatak paap hee paap kiye hain. mainne apane paap aur atyaachaarakee katha kiseese naheen kahee. mere uddhaaraka samay a pahuncha hai. main is nirjan pathapar khada़a hokar keval aapakee raah dekh raha thaa. jagatke kisee bhee padaarthamen mujhe sukh naheen mil sakaa. mujhe bhavasaagarake paar utaariye.' daakoo raamakhaanakee vrittibadal gayee. ek kshanake liye hee santake sampark men aanese usake paap nasht ho gaye aur vah paagal | haranaathake charanonpar gir pada़aa. vah sisak raha thaa. | mahaatma haranaathane usaka bada़e premase aalingan kiya aur kaha ki 'paramaatmaake raajyamen shaashvat aur param | aanandakee praapti ho sakatee hai, tumane pashchaattaapakee aagamen apane samast paap jala diye.'

'mujhe raasta dikhaaiye. prakaash deejiye. main aapaka daas hoon.' raamakhaanane kaatar svarase kahaa. 'bhagavaanka naam hee mantraraaj hai. sote-jaagate, uthate-baithate aur khaate-peete us madhur naamaamritaka paan karate rahana chaahiye. ve prabhu sarvasamarth hain. jeevamaatrase prem karo, sachcha prem hee prabhukee praaptika sugam path hai.' mahaatma haranaathane use apanee ahaitukee kripaase dhany kar diyaa.

raamakhaanane sannyaas le liya aur vrindaavanamen yamunaatatasth kisee ramaneey sthaanamen nivaas karake ve bhagavaan shreekrishnaka bhajan karane lage. santadarshanakee mahimaaka bakhaan naheen kiya ja sakataa. bada़e bhaagyase hee santaka darshan milata hai.

-raa0 shree0

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