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जहाँ मन, वहीं हम  [हिन्दी कहानी]
बोध कथा - शिक्षदायक कहानी (प्रेरक कहानी)

सुशील नामके एक ब्राह्मण थे। उनके दो पुत्र थे। बड़ेका नाम था सुवृत्त और छोटेका वृत्त। दोनों युवा थे। दोनों गुणसम्पन्न तथा कई विद्याओंके विशारद थे। घूमते आप दोनों एक दिन प्रयाग पहुँचे। उस दिन थी जन्माष्टमी। इसलिये श्रीबेनीमाधवजीके मन्दिरमें महान उत्सव था महोत्सव देखनेके लिये वे दोनों भी निकले। वे लोग सड़कपर निकले ही थे कि बड़े जोरकी वर्षा आ गयी। इसलिये दोनों मार्ग भूल गये। किसी निश्चित स्थानपर उनका पहुँचना कठिन था। अतएव एक तो वेश्याके घरमें चला गया, दूसरा भूलता-भटकता माधवजीके मन्दिरमें जा पहुँचा। सुवृत्त चाहता था कि वृत्त भी उसके साथ वेश्याके यहाँ ही रह जाय। पर वृत्तने इसे स्वीकार नहीं किया। वह माधवजीके मन्दिरमें पहुँचा भी, पर वहाँ पहुँचनेपर उसके संस्कार बदले और वह लगा ताने वह मन्दिरमें रहते हुए भी सुवृत्त और वेश्याके ध्यानमें डूब गया। वहाँ भगवान्‌की पूजा हो रही थी। जूत उसे सामनेसे ही खड़ा देख रहा था पर वहवेश्याके ध्यानमें ऐसा तल्लीन हो गया था कि वहाँकी पूजा, कथा, नमस्कार, स्तुति, पुष्पाञ्जलि, गीत-नृत्यादिको देखते-सुनते हुए भी नहीं देख रहा था और नहीं सुन रहा था। वह तो बिलकुल चित्रके समान वहाँ निर्जीव सा खड़ा था।

इधर वेश्यालयमें गये सुवृत्तकी दशा विचित्र थी । वह पश्चात्तापकी अग्रिमें जल रहा था। वह सोचने लगा- 'अरे! आज भैया वृत्तके हजारों जन्मोंके पुण्य उदय हुए जो वह जन्माष्टमीकी रात्रिमें प्रयागमें भगवान् माधवका दर्शन कर रहा है। ओहो ! इस समय वह प्रभुको अर्घ्य दे रहा होगा। अब वह पूजा-आरतीका दर्शन कर रहा होगा। अब वह नाम एवं कथा-कीर्तनादि सुन रहा होगा। अब तो नमस्कार कर रहा होगा। सचमुच आज उसके नेत्र, कान, सिर, जिह्वा तथा अन्य सभी अङ्ग सफल हो गये। मुझे तो बार-बार धिक्कार है जो मैं इस पापमन्दिर वेश्याके घरमें आ पड़ा। मेरे नेत्र मोरके पाँखके समान हैं, जो आज भगवद्दर्शन न करपाये। मेरे हाथ, जो आज प्रभुके सामने नहीं जुड़े, कलछुलसे भी गये बीते हैं। हाय! आज संत-समागमके बिना मुझे यहाँ एक-एक क्षण युगसे बड़ा मालूम होने लगा है। अरे! देखो तो मुझ दुरात्माके आज कितने जन्मोंके पाप उदित हुए कि प्रयाग जैसी मोक्षपुरीमें आकर भी मैं घोर दुष्ट सङ्गमें फँस गया!'

इस तरह दोनोंको सोचते रात बीत गयी। प्रातः काल उठकर वे दोनों परस्पर मिलने चले। वे अभी सामने आये ही थे कि वज्रपात हुआ और दोनोंकी तत्क्षण मृत्यु हो गयी। तत्काल वहाँ तीन यमदूत और दो भगवान् विष्णुके दूत आ उपस्थित हुए । यमदूतोंने तो वृत्तको पकड़ा और विष्णुदूतोंने सुवृत्तको साथ लिया। ज्यों ही वे लोग चलनेको तैयार हुए, सुवृत्त घबराया-सा बोल उठा, 'अरे! आपलोग यह कैसा अन्याय कर रहे हैं। कलके पूर्व तो हम दोनों समान थे। पर आजकी रात मैं वेश्यालयमें रहा हूँ, और वह वृत्त, मेरा छोटा भाई, माधवजीके मन्दिरमें रहकर परम पुण्य अर्जन कर चुका है। अतएव भगवान्के परम धाममें तो वही जानेका अधिकारी हो सकता है।'

अब भगवान्के दोनों पार्षद ठहाका मारकर हँस पड़े। वे बोले-'हमलोग भूल या अन्याय नहीं करते। देखो, धर्मका रहस्य बड़ा सूक्ष्म तथा विचित्र है। सभीधर्मकमम मनः शुद्धि ही मूल कारण है। मनसे भी किया गया पाप दुःखद होता है और मनसे भी चिन्तित धर्म सुखद होता है। आज तुम रातभर शुभचिन्तामें लगे रहे हो, अतएव तुम्हें भगवद्धामकी प्राप्ति हुई। इसके विपरीत वह आजकी सारी रात अशुभ चिन्तनमें ही रहा है, अतएव वह नरक जा रहा है। इसलिये सदा धर्मका ही चिन्तन और मन लगाकर धर्मानुष्ठान करना चाहिये।'

वस्तुतः जहाँ मन है, वहीं मनुष्य वैश्यालय में हो तो मन्दिरमें रहकर भी मनुष्य मन वेश्यालय में है और मन भगवान्में हैं तो वह चाहे कहीं भी हो, भगवान्में ही है।

सुवृत्तने कहा-' पर जो हो, इस भाईके बिना मेरी भगवद्धाममें जानेकी इच्छा ही नहीं होती। अन्यथा आपलोग कृपा करके इसे भी यमपाशसे मुक्त कर दें।' विष्णुदूत बोले- 'सुवृत्त ! यदि तुम्हें उसपर दया है l

तो तुम्हारे गतजन्मके मानसिक माघस्नानका संकल्पित जो पुण्य बच रहा है, उसे तुम वृत्तको दे दो तो यह भी तुम्हारे साथ ही विष्णुलोकको चल सकेगा। सुवृत्तने तत्काल वैसा ही किया और फलतः वृत्त भी हरिधामको अपने भाईके साथ ही चला गया।

- जा0 श0 (वायुपुराण, माघमाहात्म्य, अध्याय 21)



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jahaan man, vaheen hama

susheel naamake ek braahman the. unake do putr the. bada़eka naam tha suvritt aur chhoteka vritta. donon yuva the. donon gunasampann tatha kaee vidyaaonke vishaarad the. ghoomate aap donon ek din prayaag pahunche. us din thee janmaashtamee. isaliye shreebeneemaadhavajeeke mandiramen mahaan utsav tha mahotsav dekhaneke liye ve donon bhee nikale. ve log sada़kapar nikale hee the ki bada़e jorakee varsha a gayee. isaliye donon maarg bhool gaye. kisee nishchit sthaanapar unaka pahunchana kathin thaa. ataev ek to veshyaake gharamen chala gaya, doosara bhoolataa-bhatakata maadhavajeeke mandiramen ja pahunchaa. suvritt chaahata tha ki vritt bhee usake saath veshyaake yahaan hee rah jaaya. par vrittane ise sveekaar naheen kiyaa. vah maadhavajeeke mandiramen pahuncha bhee, par vahaan pahunchanepar usake sanskaar badale aur vah laga taane vah mandiramen rahate hue bhee suvritt aur veshyaake dhyaanamen doob gayaa. vahaan bhagavaan‌kee pooja ho rahee thee. joot use saamanese hee khada़a dekh raha tha par vahaveshyaake dhyaanamen aisa talleen ho gaya tha ki vahaankee pooja, katha, namaskaar, stuti, pushpaanjali, geeta-nrityaadiko dekhate-sunate hue bhee naheen dekh raha tha aur naheen sun raha thaa. vah to bilakul chitrake samaan vahaan nirjeev sa khada़a thaa.

idhar veshyaalayamen gaye suvrittakee dasha vichitr thee . vah pashchaattaapakee agrimen jal raha thaa. vah sochane lagaa- 'are! aaj bhaiya vrittake hajaaron janmonke puny uday hue jo vah janmaashtameekee raatrimen prayaagamen bhagavaan maadhavaka darshan kar raha hai. oho ! is samay vah prabhuko arghy de raha hogaa. ab vah poojaa-aarateeka darshan kar raha hogaa. ab vah naam evan kathaa-keertanaadi sun raha hogaa. ab to namaskaar kar raha hogaa. sachamuch aaj usake netr, kaan, sir, jihva tatha any sabhee ang saphal ho gaye. mujhe to baara-baar dhikkaar hai jo main is paapamandir veshyaake gharamen a pada़aa. mere netr morake paankhake samaan hain, jo aaj bhagavaddarshan n karapaaye. mere haath, jo aaj prabhuke saamane naheen juda़e, kalachhulase bhee gaye beete hain. haaya! aaj santa-samaagamake bina mujhe yahaan eka-ek kshan yugase bada़a maaloom hone laga hai. are! dekho to mujh duraatmaake aaj kitane janmonke paap udit hue ki prayaag jaisee mokshapureemen aakar bhee main ghor dusht sangamen phans gayaa!'

is tarah dononko sochate raat beet gayee. praatah kaal uthakar ve donon paraspar milane chale. ve abhee saamane aaye hee the ki vajrapaat hua aur dononkee tatkshan mrityu ho gayee. tatkaal vahaan teen yamadoot aur do bhagavaan vishnuke doot a upasthit hue . yamadootonne to vrittako pakada़a aur vishnudootonne suvrittako saath liyaa. jyon hee ve log chalaneko taiyaar hue, suvritt ghabaraayaa-sa bol utha, 'are! aapalog yah kaisa anyaay kar rahe hain. kalake poorv to ham donon samaan the. par aajakee raat main veshyaalayamen raha hoon, aur vah vritt, mera chhota bhaaee, maadhavajeeke mandiramen rahakar param puny arjan kar chuka hai. ataev bhagavaanke param dhaamamen to vahee jaaneka adhikaaree ho sakata hai.'

ab bhagavaanke donon paarshad thahaaka maarakar hans pada़e. ve bole-'hamalog bhool ya anyaay naheen karate. dekho, dharmaka rahasy bada़a sookshm tatha vichitr hai. sabheedharmakamam manah shuddhi hee mool kaaran hai. manase bhee kiya gaya paap duhkhad hota hai aur manase bhee chintit dharm sukhad hota hai. aaj tum raatabhar shubhachintaamen lage rahe ho, ataev tumhen bhagavaddhaamakee praapti huee. isake vipareet vah aajakee saaree raat ashubh chintanamen hee raha hai, ataev vah narak ja raha hai. isaliye sada dharmaka hee chintan aur man lagaakar dharmaanushthaan karana chaahiye.'

vastutah jahaan man hai, vaheen manushy vaishyaalay men ho to mandiramen rahakar bhee manushy man veshyaalay men hai aur man bhagavaanmen hain to vah chaahe kaheen bhee ho, bhagavaanmen hee hai.

suvrittane kahaa-' par jo ho, is bhaaeeke bina meree bhagavaddhaamamen jaanekee ichchha hee naheen hotee. anyatha aapalog kripa karake ise bhee yamapaashase mukt kar den.' vishnudoot bole- 'suvritt ! yadi tumhen usapar daya hai l

to tumhaare gatajanmake maanasik maaghasnaanaka sankalpit jo puny bach raha hai, use tum vrittako de do to yah bhee tumhaare saath hee vishnulokako chal sakegaa. suvrittane tatkaal vaisa hee kiya aur phalatah vritt bhee haridhaamako apane bhaaeeke saath hee chala gayaa.

- jaa0 sha0 (vaayupuraan, maaghamaahaatmy, adhyaay 21)

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