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निर्वाण - पथ  [Spiritual Story]
हिन्दी कहानी - प्रेरक कथा (हिन्दी कथा)

'साधन और अनुष्ठान तोथोंमें ही शीघ्र सफल होते हैं और उनका अक्षय फल होता है। इसी विचारसे साधु बाहिय सुप्पारक तीर्थमें वास करने लगे थे।

बाहियका जीवन अत्यन्त सरल एवं सात्त्विक था । उनके मनमें किसी प्राणोके प्रति वैर-विरोध नहीं था। अपने साधनमें उनकी निष्ठा थी और उसमें वे सतत संलग्न थे। उनके तेजके साथ उनकी सम्मान-प्रतिष्ठा भी बढ़ने लगी थी।"

समीपके ही नहीं, दूर-दूरके लोग उनके समीप आते और चरणोंमें सिर झुकाते सभी उनकी पूजा और देवोचित आदर करते। चीवर, पिण्डपात, शयनासन और दवा - बीरो उनको अनायास ही प्रचुर परिमाणमें प्राप्त हो जाते थे।

'संसारमें जो अर्हत् या अर्हत्-मार्गारूढ़ हैं, उनमें एक मैं भी हूँ।' बाहियके मनमें एक दिन विचार उठा।

'बाहिय मेरा अत्यन्त प्रिय है,' बाहियके कुलदेवताने सोचा और सन्मार्गपर चलनेके लिये निरन्तर प्रय है। इसे मुक्तिकी प्रत्येक क्षण कामना है। अतएव इसे सावधान करना चाहिये।'

'बाहिय! तुम अर्हत् नहीं हो।' कृपापूर्वक कुलदेवताने बाहियके सम्मुख उपस्थित होकर कहा 'अर्हत्-मार्गपर आरूद भी नहीं हो अर्हत् या अर्हत् मार्गारूद होनेके पथका दर्शन भी तुम्हें नहीं हो सका है। अभिमान नहीं करना चाहिये। अभिमान निर्वाण पथका सबसे बड़ा बाधक है।'

"कृपामय ।' बाहिय सहम गये। कुलदेवताकी ओर
कृतज्ञताभरी दृष्टिसे देखते हुए उन्होंने अत्यन्त विनीत स्वरमें पूछा इस धरतीपर ऐसे कौन हैं, जो अर्हत् या अर्हतु
मार्गारूढ़ हो चुके हैं। यह बता देनेकी दया कीजिये।' 'बाहिय!' कुलदेवताने उत्तर दिया, 'इसी आर्यधराण
श्रावस्ती नामक पुण्यनगर है वहाँ इस समय भगवान् | बुद्धदेव निवास कर रहे हैं। वे भगवान् तथागत ही स्वयं अर्हत् हो जगत्‌को अर्हत् पद प्राप्त करनेका मार्ग-दर्शन करा रहे हैं। उनके परम पवित्र धर्मोपदेशसे जीव चिरकालिक भवबाधासे त्राण पा रहे हैं, मुक्त होते जा रहे हैं।'

कुलदेवता अदृश्य हो गये और बाहिय भगवान् बुद्धदेवके दर्शनार्थ सुप्पारक तीर्थसे चल पड़े।

बाहिय जेतवन पहुँचे। ये सुप्पारक तीर्थसे यहाँतक अनवरत रूपसे चलते आये थे। यात्राके बीच इन्होंने | केवल एक रात्रि विश्राम किया था इनके नेत्रोंमें सम्यक् सम्बुद्ध भगवान् बुद्ध जैसे समा गये थे। उन्हींके दर्शनार्थ | उक्त पवित्र तीर्थको त्यागकर वे द्रुतगति से चल पड़े थे। जेतवनकी पावन भूमि और वहाँके सघन वृक्षोंको देखकर उन्हें अपूर्व शान्ति मिली। उन्हें लगा, जैसे जेतवनको तरुलता वल्लरियाँ ही नहीं, वहाँका प्रत्येक कण निर्वाण प्राप्त कर चुका है। वे श्रद्धा-विभोर हो गये। उस समय

वहाँ कितने ही भिक्षु इधर-उधर टहल रहे थे। 'भन्ते! एक भिक्षुके समीप जाकर उन्होंने विनीत वाणीमें पूछा मैं अर्हत् सम्यक सम्बुद्ध भगवान् के दर्शनार्थ सुप्पारक तीर्थसे चलकर आया हूँ। इस समय ये कहाँ बिहार कर रहे हैं?"

'बाहिय। भिक्षुने उत्तर दिया, 'आप कुछ देर यहाँ विश्राम करें। भगवान् पिण्डपातके लिये इस समय गाँवमें गये हैं।''मैं भगवान्‌के दर्शन बिना एक क्षण भी विश्राम

नहीं करना चाहता।' उन्होंने भिक्षुको उत्तर दिया। 'मैं अभी भगवान्के समीप जाऊंगा।' और भिक्षुके बताये गाँवकी और ये चल पड़े।

बाहिय जेतवनसे दौड़ पड़े थे। उनके पैरोंमें जैसे पंख उग आये थे। तथागतके दर्शन बिना वे अधीर से हो रहे थे। श्रावस्तीमें पहुँचकर उन्होंने भगवान्को देखा, भगवान् भिक्षापात्र लिये एक साधारण परिवारकी देहरीपर खड़े थे। भगवान्‌का भुवन मोहन सौन्दर्य एवं उनकी आकृतिपर क्रीड़ा करती हुई दिव्य ज्योति देखकर वाहिय चकित हो गये। अत्यन्त संयमी, अत्यन्त शान्त एवं शमथ दमथ को प्राप्त प्रभुको देखकर बाहिय उनके चरणोंमें दण्डकी भाँति पड़ गये अपने हाथोंमें उन्होंने भगवान्के पादपद्मोंको पकड़ लिया और नेत्रोंसे प्रवाहित अनवरत वारिधारासे वे बहुत देरतक उनका प्रक्षालन करते रहे।

'भन्ते!" 'कुछ देर बाद स्वस्थ होकर उन्होंने अत्यन्त श्रद्धापूरित नम्र वाणीमें निवेदन किया, 'भगवान् मुझे धर्मोपदेश करें, जिससे मुझे चिरकालिक अक्षय सुख शान्तिकी प्राप्ति हो। सुगत कृपापूर्वक मुझे धर्मोपदेश करें।'

'बाहिय!' भगवान्ने अत्यन्त शान्तिपूर्वक कहा, 'मैं भिक्षाटनके लिये निकला हूँ। यह समय धर्मोपदेशके उपयुक्त नहीं।'

'भन्ते!' बाहियने तुरंत निवेदन किया-'जीवन अत्यन्त अस्थिर है। पता नहीं अगले क्षण भगवान् या मैं ही रह सकूँगा या नहीं। अतएव भगवान् मुझे वह उपदेश करें, जिससे मुझे चिरकालिक अक्षय सुख शान्ति उपलब्ध हो। भगवान् मुझे शीघ्र उपदेश करें।' 'बाहिय!' दूसरी बार भी भगवान्ने अत्यन्त शान्तिसे उत्तर दिया, 'मैं भिक्षार्थ गाँवमें हूँ। गृहस्थ परिवारको देहरीपर खड़े हो भिक्षापात्रमें भिक्षा लेनेकी प्रतीक्षा कर रहा हूँ। धर्मोपदेशके लिये यह उचित समय नहीं।'

'भन्ते!' बाहियने तीसरी बार पुनः अनुरोध किया, ""जीवनका ठिकाना नहीं। आम्रपल्लवकी नोकपर लटके जल- सोकरका ठिकाना है, पर जीवनके सम्बन्धमें यह भी निश्चय नहीं। अगले क्षण भगवान् या मैं ही रहचाऊँगा या नहीं, कुछ भी निश्चित नहीं। अतएव जिससे रेविकालिक अक्षर सुख-शान्तिको उपलब्धि हो, इस भाव में सदाके लिये मुक्ति प्राप्त कर लूँ, मुझे वैसा हो उपदेश दें।'

"अच्छा बाहिय!" भगवान् उसी अवस्थामें गृहस्थकी देह अपना रिक्त पात्र लिये अत्यन्त शान्त स्वरमें बोले, 'तुम्हें अभ्यास करना चाहिये, तुम्हें देखनेमें केवल देखना ही चाहिये, सुननेमें केवल सुनना ही चाहिये। सूने चखने और स्पर्श करनेमें केवल सूचना, चखना, स्पर्शही करना चाहिये। जाननेमें केवल जानना ही चाहिये। बाहिय! यदि तुमने ऐसा सीख लिया अर्थात् देखकर सूरकर, चखकर स्पर्शकर और जानकर उसमें लिस नहीं हो सके, आसक्ति तुम्हें स्पर्श नहीं कर की तो तुम्हारे दुःखोंका अन्त हो जायगा। जागतिक आस ही जगत्में आवद्ध करनेवाली है एवं इससे त्राण पाना हो निर्वाण है।'

'भन्ते!' वाहिय पुनः भगवान्‌के चरणोंमें गिर पड़े। उन्होंने अनुभव किया, भगवान्‌के उपदेशमात्रसे उनका चित्त उपादान (प्रापञ्चिक जगत्‌की आसक्ति) से रहित तथा आश्रवोंसे मुक्त हो गया। वे बोले मैं आपका आजीवन ऋणी रहूँगा। भगवान्ने मुझे मुक्तिके मूल तत्त्वका साक्षात्कार करा दिया।'

मधुर स्मितके साथ भगवान् भिक्षाटनके लिये आगे बढ़े। बाहिय उनकी ओर ललकभरे अपलक नेत्रोंसे तबतक
देखते रहे, जबतक वे दृष्टिसे ओझल नहीं हो गये। 'भन्ते!' एक भिक्षुने दौड़कर भिक्षाटनसे नगरके बाहर लौटते हुए भगवान् से कहा। वह हाँफ रहा था।

आगे वह नहीं बोल पाया।

'क्या बात है ?' भगवान्ने प्रश्न किया।

'भन्ते ।' कुछ स्थिर होकर उसने निवेदन किया, 'भगवान्के धर्मोपदेशके अनन्तर लौटते हुए बाहियको एक साँड़ने अपने सॉगोंपर उठाकर जोरसे पटक दिया। बाहियका ऐहिक जीवन तत्काल समाप्त हो गया। उनका शव कुछ ही दूरपर पड़ा है।'

भगवान् उठे और दौड़ पड़े। उन्होंने बाहियके शवको देखकर एकत्र हुए भिक्षुओंसे कहा – 'भिक्षुओंयह तुम्हारा एक सब्रह्मचारी (गुरुभाई) था। इसकी निर्जीव देहकी रथी बनाकर अग्रिमें जला दो और इसके भस्मोंपर स्तूप निर्मित कर दो।'

'जैसी आज्ञा !' भिक्षुओंने उत्तर दिया और बाहियके शवके अन्तिम संस्कारमें लग गये।

'भन्ते!' भगवान्के चरणोंके समीप बैठकर भिक्षुओंमेंसे एकने विनम्र निवेदन किया। 'भगवान्‌के आदेशानुसार बाहियकी निर्जीव देह प्रज्वलित अग्रिमें भस्म कर दी गयी। उनके भस्मोंपर स्तूप उठवा दिया गया।' कुछ क्षण रुककर उसी भिक्षुने पुनः निवेदनकिया – भगवान्से हमलोग जानना चाहते हैं कि-

बाहियकी क्या गति होगी।' अत्यन्त शान्त एवं गम्भीर वाणीमें उन्होंने धीरे-धीरे उत्तर दिया, 'भिक्षुओ! जब क्षीणाश्रव भिक्षु आत्म साक्षात्कार कर लेता है, तब वह रूप-अरूप तथा सुख-दुःखसे छूट जाता है। बाहियने मेरे बताये धर्मोपदेशको ठीकसे ग्रहण कर लिया था, वह निर्वाणके मार्गपर आरूढ़ हो गया था।'

भिक्षुओंकी आकृतिपर हर्ष नृत्य कर उठा। भगवान् मौन हो गये। शीतल - मन्द समीर भगवान्के चरणोंका स्पर्श करके प्रसन्नतासे नृत्य करने लगा। - शि0 दु0



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nirvaan - patha

'saadhan aur anushthaan tothonmen hee sheeghr saphal hote hain aur unaka akshay phal hota hai. isee vichaarase saadhu baahiy suppaarak teerthamen vaas karane lage the.

baahiyaka jeevan atyant saral evan saattvik tha . unake manamen kisee praanoke prati vaira-virodh naheen thaa. apane saadhanamen unakee nishtha thee aur usamen ve satat sanlagn the. unake tejake saath unakee sammaana-pratishtha bhee badha़ne lagee thee."

sameepake hee naheen, doora-doorake log unake sameep aate aur charanonmen sir jhukaate sabhee unakee pooja aur devochit aadar karate. cheevar, pindapaat, shayanaasan aur dava - beero unako anaayaas hee prachur parimaanamen praapt ho jaate the.

'sansaaramen jo arhat ya arhat-maargaaroodha़ hain, unamen ek main bhee hoon.' baahiyake manamen ek din vichaar uthaa.

'baahiy mera atyant priy hai,' baahiyake kuladevataane socha aur sanmaargapar chalaneke liye nirantar pray hai. ise muktikee pratyek kshan kaamana hai. ataev ise saavadhaan karana chaahiye.'

'baahiya! tum arhat naheen ho.' kripaapoorvak kuladevataane baahiyake sammukh upasthit hokar kaha 'arhat-maargapar aarood bhee naheen ho arhat ya arhat maargaarood honeke pathaka darshan bhee tumhen naheen ho saka hai. abhimaan naheen karana chaahiye. abhimaan nirvaan pathaka sabase bada़a baadhak hai.'

"kripaamay .' baahiy saham gaye. kuladevataakee ora
kritajnataabharee drishtise dekhate hue unhonne atyant vineet svaramen poochha is dharateepar aise kaun hain, jo arhat ya arhatu
maargaaroodha़ ho chuke hain. yah bata denekee daya keejiye.' 'baahiya!' kuladevataane uttar diya, 'isee aaryadharaana
shraavastee naamak punyanagar hai vahaan is samay bhagavaan | buddhadev nivaas kar rahe hain. ve bhagavaan tathaagat hee svayan arhat ho jagat‌ko arhat pad praapt karaneka maarga-darshan kara rahe hain. unake param pavitr dharmopadeshase jeev chirakaalik bhavabaadhaase traan pa rahe hain, mukt hote ja rahe hain.'

kuladevata adrishy ho gaye aur baahiy bhagavaan buddhadevake darshanaarth suppaarak teerthase chal pada़e.

baahiy jetavan pahunche. ye suppaarak teerthase yahaantak anavarat roopase chalate aaye the. yaatraake beech inhonne | keval ek raatri vishraam kiya tha inake netronmen samyak sambuddh bhagavaan buddh jaise sama gaye the. unheenke darshanaarth | ukt pavitr teerthako tyaagakar ve drutagati se chal pada़e the. jetavanakee paavan bhoomi aur vahaanke saghan vrikshonko dekhakar unhen apoorv shaanti milee. unhen laga, jaise jetavanako tarulata vallariyaan hee naheen, vahaanka pratyek kan nirvaan praapt kar chuka hai. ve shraddhaa-vibhor ho gaye. us samaya

vahaan kitane hee bhikshu idhara-udhar tahal rahe the. 'bhante! ek bhikshuke sameep jaakar unhonne vineet vaaneemen poochha main arhat samyak sambuddh bhagavaan ke darshanaarth suppaarak teerthase chalakar aaya hoon. is samay ye kahaan bihaar kar rahe hain?"

'baahiya. bhikshune uttar diya, 'aap kuchh der yahaan vishraam karen. bhagavaan pindapaatake liye is samay gaanvamen gaye hain.''main bhagavaan‌ke darshan bina ek kshan bhee vishraama

naheen karana chaahataa.' unhonne bhikshuko uttar diyaa. 'main abhee bhagavaanke sameep jaaoongaa.' aur bhikshuke bataaye gaanvakee aur ye chal pada़e.

baahiy jetavanase dauda़ pada़e the. unake paironmen jaise pankh ug aaye the. tathaagatake darshan bina ve adheer se ho rahe the. shraavasteemen pahunchakar unhonne bhagavaanko dekha, bhagavaan bhikshaapaatr liye ek saadhaaran parivaarakee dehareepar khada़e the. bhagavaan‌ka bhuvan mohan saundary evan unakee aakritipar kreeda़a karatee huee divy jyoti dekhakar vaahiy chakit ho gaye. atyant sanyamee, atyant shaant evan shamath damath ko praapt prabhuko dekhakar baahiy unake charanonmen dandakee bhaanti pada़ gaye apane haathonmen unhonne bhagavaanke paadapadmonko pakada़ liya aur netronse pravaahit anavarat vaaridhaaraase ve bahut deratak unaka prakshaalan karate rahe.

'bhante!" 'kuchh der baad svasth hokar unhonne atyant shraddhaapoorit namr vaaneemen nivedan kiya, 'bhagavaan mujhe dharmopadesh karen, jisase mujhe chirakaalik akshay sukh shaantikee praapti ho. sugat kripaapoorvak mujhe dharmopadesh karen.'

'baahiya!' bhagavaanne atyant shaantipoorvak kaha, 'main bhikshaatanake liye nikala hoon. yah samay dharmopadeshake upayukt naheen.'

'bhante!' baahiyane turant nivedan kiyaa-'jeevan atyant asthir hai. pata naheen agale kshan bhagavaan ya main hee rah sakoonga ya naheen. ataev bhagavaan mujhe vah upadesh karen, jisase mujhe chirakaalik akshay sukh shaanti upalabdh ho. bhagavaan mujhe sheeghr upadesh karen.' 'baahiya!' doosaree baar bhee bhagavaanne atyant shaantise uttar diya, 'main bhikshaarth gaanvamen hoon. grihasth parivaarako dehareepar khada़e ho bhikshaapaatramen bhiksha lenekee prateeksha kar raha hoon. dharmopadeshake liye yah uchit samay naheen.'

'bhante!' baahiyane teesaree baar punah anurodh kiya, ""jeevanaka thikaana naheen. aamrapallavakee nokapar latake jala- sokaraka thikaana hai, par jeevanake sambandhamen yah bhee nishchay naheen. agale kshan bhagavaan ya main hee rahachaaoonga ya naheen, kuchh bhee nishchit naheen. ataev jisase revikaalik akshar sukha-shaantiko upalabdhi ho, is bhaav men sadaake liye mukti praapt kar loon, mujhe vaisa ho upadesh den.'

"achchha baahiya!" bhagavaan usee avasthaamen grihasthakee deh apana rikt paatr liye atyant shaant svaramen bole, 'tumhen abhyaas karana chaahiye, tumhen dekhanemen keval dekhana hee chaahiye, sunanemen keval sunana hee chaahiye. soone chakhane aur sparsh karanemen keval soochana, chakhana, sparshahee karana chaahiye. jaananemen keval jaanana hee chaahiye. baahiya! yadi tumane aisa seekh liya arthaat dekhakar soorakar, chakhakar sparshakar aur jaanakar usamen lis naheen ho sake, aasakti tumhen sparsh naheen kar kee to tumhaare duhkhonka ant ho jaayagaa. jaagatik aas hee jagatmen aavaddh karanevaalee hai evan isase traan paana ho nirvaan hai.'

'bhante!' vaahiy punah bhagavaan‌ke charanonmen gir pada़e. unhonne anubhav kiya, bhagavaan‌ke upadeshamaatrase unaka chitt upaadaan (praapanchik jagat‌kee aasakti) se rahit tatha aashravonse mukt ho gayaa. ve bole main aapaka aajeevan rinee rahoongaa. bhagavaanne mujhe muktike mool tattvaka saakshaatkaar kara diyaa.'

madhur smitake saath bhagavaan bhikshaatanake liye aage badha़e. baahiy unakee or lalakabhare apalak netronse tabataka
dekhate rahe, jabatak ve drishtise ojhal naheen ho gaye. 'bhante!' ek bhikshune dauda़kar bhikshaatanase nagarake baahar lautate hue bhagavaan se kahaa. vah haanph raha thaa.

aage vah naheen bol paayaa.

'kya baat hai ?' bhagavaanne prashn kiyaa.

'bhante .' kuchh sthir hokar usane nivedan kiya, 'bhagavaanke dharmopadeshake anantar lautate hue baahiyako ek saanda़ne apane saॉgonpar uthaakar jorase patak diyaa. baahiyaka aihik jeevan tatkaal samaapt ho gayaa. unaka shav kuchh hee doorapar pada़a hai.'

bhagavaan uthe aur dauda़ pada़e. unhonne baahiyake shavako dekhakar ekatr hue bhikshuonse kaha – 'bhikshuonyah tumhaara ek sabrahmachaaree (gurubhaaee) thaa. isakee nirjeev dehakee rathee banaakar agrimen jala do aur isake bhasmonpar stoop nirmit kar do.'

'jaisee aajna !' bhikshuonne uttar diya aur baahiyake shavake antim sanskaaramen lag gaye.

'bhante!' bhagavaanke charanonke sameep baithakar bhikshuonmense ekane vinamr nivedan kiyaa. 'bhagavaan‌ke aadeshaanusaar baahiyakee nirjeev deh prajvalit agrimen bhasm kar dee gayee. unake bhasmonpar stoop uthava diya gayaa.' kuchh kshan rukakar usee bhikshune punah nivedanakiya – bhagavaanse hamalog jaanana chaahate hain ki-

baahiyakee kya gati hogee.' atyant shaant evan gambheer vaaneemen unhonne dheere-dheere uttar diya, 'bhikshuo! jab ksheenaashrav bhikshu aatm saakshaatkaar kar leta hai, tab vah roopa-aroop tatha sukha-duhkhase chhoot jaata hai. baahiyane mere bataaye dharmopadeshako theekase grahan kar liya tha, vah nirvaanake maargapar aaroodha़ ho gaya thaa.'

bhikshuonkee aakritipar harsh nrity kar uthaa. bhagavaan maun ho gaye. sheetal - mand sameer bhagavaanke charanonka sparsh karake prasannataase nrity karane lagaa. - shi0 du0

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हर साँस में हो सुमिरन तेरा,
यूँ बीत जाये जीवन मेरा
बोल कान्हा बोल गलत काम कैसे हो गया,
बिना शादी के तू राधे श्याम कैसे हो गया
प्रीतम बोलो कब आओगे॥
बालम बोलो कब आओगे॥
यशोमती मैया से बोले नंदलाला,
राधा क्यूँ गोरी, मैं क्यूँ काला
जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी
अपने दिल का दरवाजा हम खोल के सोते है
सपने में आ जाना मईया,ये बोल के सोते है
किशोरी कुछ ऐसा इंतजाम हो जाए।
जुबा पे राधा राधा राधा नाम हो जाए॥
राधे तु कितनी प्यारी है ॥
तेरे संग में बांके बिहारी कृष्ण
अच्युतम केशवं राम नारायणं,
कृष्ण दमोधराम वासुदेवं हरिं,
मेरे जीवन की जुड़ गयी डोर, किशोरी तेरे
किशोरी तेरे चरणन में, महारानी तेरे
तुम रूठे रहो मोहन,
हम तुमको मन लेंगे
ज़िंदगी मे हज़ारो का मेला जुड़ा
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा
यह मेरी अर्जी है,
मैं वैसी बन जाऊं जो तेरी मर्ज़ी है
वृंदावन में हुकुम चले बरसाने वाली का,
कान्हा भी दीवाना है श्री श्यामा
कहना कहना आन पड़ी मैं तेरे द्वार ।
मुझे चाकर समझ निहार ॥
तेरे दर की भीख से है,
मेरा आज तक गुज़ारा
वृदावन जाने को जी चाहता है,
राधे राधे गाने को जी चाहता है,
तेरे बगैर सांवरिया जिया नही जाये
तुम आके बांह पकड लो तो कोई बात बने‌॥
तेरी मुरली की धुन सुनने मैं बरसाने से
मैं बरसाने से आयी हूँ, मैं वृषभानु की
दुनिया से मैं हारा तो आया तेरे दवार,
यहाँ से जो मैं हारा तो कहा जाऊंगा मैं
फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद
फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद
श्याम बुलाये राधा नहीं आये,
आजा मेरी प्यारी राधे बागो में झूला
नगरी हो अयोध्या सी,रघुकुल सा घराना हो
चरन हो राघव के,जहा मेरा ठिकाना हो
मेरा आपकी कृपा से,
सब काम हो रहा है
साँवरिया ऐसी तान सुना,
ऐसी तान सुना मेरे मोहन, मैं नाचू तू गा ।
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सभी दुःख दूर हुए, जब तेरा नाम लिया।
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कितना सुंदर लागे बिहारी कितना लागे
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जेब मेरी विच पैसा ना तेला दस किवे आवा