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पराधीनतामें सुख कहाँ  [Spiritual Story]
बोध कथा - शिक्षदायक कहानी (Spiritual Story)

[6]

पराधीनतामें सुख कहाँ?

एक मोटे-ताजे पालतू कुत्तेके साथ एक भूखे दुबले-पतले बाघकी भेंट हुई। प्रथम परिचय हो जानेके -'भाई, एक बात पूछता हूँ, बाद बाघने कुत्तेसे कहा- " जरा बताओ, तुम कैसे इतने सबल तथा मोटे-तगड़े हुए, तुम प्रतिदिन क्या खाते हो और कैसे उसकी प्राप्ति करते हो? मैं तो दिन-रात भोजनकी खोजमें घूमकर भी भरपेट खा नहीं पाता। किसी-किसी दिन तो मुझे
उपवास भी करना पड़ जाता है। भोजनके इस कष्टके कारण ही मैं इतना कमजोर हो गया हूँ।'

कुत्तेने कहा-'मैं जो कुछ करता हूँ, तुम भी यदि वैसा ही कर सको, तो तुम्हें मुझ जैसा ही भोजन मिल जायगा।'
बाघ बोला- 'सचमुच ? अच्छा भाई, तुम्हें क्या करना पड़ता है, जरा बताओ तो।'
बाघ बोला-' इतना तो मैं भी कर सकता हूँ। मैं भोजनकी तलाशमें वन-वन भटकता हुआ धूप तथा वर्षासे बड़ा कष्ट पाता हूँ। अब और यह क्लेश सहा नहीं जाता। यदि धूप और वर्षाके समय घरमें रहनेको मिले और भूखके समय भरपेट खानेको मिले, तब तो मेरे प्राण बच जायेंगे।"
बाघके दुःखकी बातें सुनकर कुत्तेने कहा- 'तो फिर मेरे साथ आओ। मैं मालिकसे कहकर तुम्हारे लिये सारी व्यवस्था करवा देता हूँ।'
बाघ कुत्तेके साथ चल पड़ा। थोड़ी देर चलनेके बाद बाघको कुत्तेकी गरदनपर एक दाग दिखायी पड़ा। उसके विषयमें जिज्ञासा उठनेके कारण उसने व्यग्रतापूर्वक
कुत्तेसे पूछा- 'भाई, तुम्हारी गरदनपर यह कैसा दाग है ? '
कुत्ता बोला-'अरे, यह कुछ भी नहीं है।'
बाघने कहा - 'नहीं भाई, मुझे बताओ। मुझे
जाननेकी बड़ी इच्छा हो रही है।'
कुत्ता बोला- 'मैं कहता हूँ न, वह कुछ नहीं है,
लगता है पट्टेका दाग होगा।'
बाघने कहा- 'पट्टा क्यों ?'
कुत्ता बोला-'पट्टेमें जंजीर फँसाकर दिनके समय मुझे बाँधकर रखा जाता है।'
यह सुनकर बाघ विस्मित होकर कह उठा
'जंजीरसे बाँधकर रखा जाता है ? तब तो तुम जब जहाँ जानेकी इच्छा हो, जा नहीं सकते ?'
कुत्ता बोला-'ऐसी बात नहीं है, दिनके समय भले ही बँधा रहता हूँ, लेकिन रातके समय जब मुझे छोड़ दिया जाता है, तब मैं जहाँ चाहूँ, खुशीसे जा सकता हूँ। इसके अतिरिक्त मालिकके नौकर लोग मेरी कितनी देखभाल करते हैं, अच्छा खाना देते हैं, स्नान कराते हैं और कभी-कभी मालिक भी स्नेहपूर्वक मेरे शरीरपर हाथ फेर दिया करते हैं। जरा सोचो तो, मैं कितने सुखमें रहता हूँ।'
बाघने कहा- 'भाई, तुम्हारा सुख तुम्हींको मुबारक हो, मुझे ऐसे सुखकी जरूरत नहीं है। अत्यन्त पराधीन होकर राजसुख भोगनेकी अपेक्षा स्वाधीन रहकर भूखका कष्ट उठाना हजारोंगुना अच्छा है। मैं अब तुम्हारे साथ नहीं जाऊँगा।'
यह कहकर बाघ फिर जंगलमें लौट गया।



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paraadheenataamen sukh kahaan

[6]

paraadheenataamen sukh kahaan?

ek mote-taaje paalatoo kutteke saath ek bhookhe dubale-patale baaghakee bhent huee. pratham parichay ho jaaneke -'bhaaee, ek baat poochhata hoon, baad baaghane kuttese kahaa- " jara bataao, tum kaise itane sabal tatha mote-tagaड़e hue, tum pratidin kya khaate ho aur kaise usakee praapti karate ho? main to dina-raat bhojanakee khojamen ghoomakar bhee bharapet kha naheen paataa. kisee-kisee din to mujhe
upavaas bhee karana pada़ jaata hai. bhojanake is kashtake kaaran hee main itana kamajor ho gaya hoon.'

kuttene kahaa-'main jo kuchh karata hoon, tum bhee yadi vaisa hee kar sako, to tumhen mujh jaisa hee bhojan mil jaayagaa.'
baagh bolaa- 'sachamuch ? achchha bhaaee, tumhen kya karana pada़ta hai, jara bataao to.'
baagh bolaa-' itana to main bhee kar sakata hoon. main bhojanakee talaashamen vana-van bhatakata hua dhoop tatha varshaase bada़a kasht paata hoon. ab aur yah klesh saha naheen jaataa. yadi dhoop aur varshaake samay gharamen rahaneko mile aur bhookhake samay bharapet khaaneko mile, tab to mere praan bach jaayenge."
baaghake duhkhakee baaten sunakar kuttene kahaa- 'to phir mere saath aao. main maalikase kahakar tumhaare liye saaree vyavastha karava deta hoon.'
baagh kutteke saath chal pada़aa. thoda़ee der chalaneke baad baaghako kuttekee garadanapar ek daag dikhaayee pada़aa. usake vishayamen jijnaasa uthaneke kaaran usane vyagrataapoorvaka
kuttese poochhaa- 'bhaaee, tumhaaree garadanapar yah kaisa daag hai ? '
kutta bolaa-'are, yah kuchh bhee naheen hai.'
baaghane kaha - 'naheen bhaaee, mujhe bataao. mujhe
jaananekee bada़ee ichchha ho rahee hai.'
kutta bolaa- 'main kahata hoon n, vah kuchh naheen hai,
lagata hai patteka daag hogaa.'
baaghane kahaa- 'patta kyon ?'
kutta bolaa-'pattemen janjeer phansaakar dinake samay mujhe baandhakar rakha jaata hai.'
yah sunakar baagh vismit hokar kah uthaa
'janjeerase baandhakar rakha jaata hai ? tab to tum jab jahaan jaanekee ichchha ho, ja naheen sakate ?'
kutta bolaa-'aisee baat naheen hai, dinake samay bhale hee bandha rahata hoon, lekin raatake samay jab mujhe chhoda़ diya jaata hai, tab main jahaan chaahoon, khusheese ja sakata hoon. isake atirikt maalikake naukar log meree kitanee dekhabhaal karate hain, achchha khaana dete hain, snaan karaate hain aur kabhee-kabhee maalik bhee snehapoorvak mere shareerapar haath pher diya karate hain. jara socho to, main kitane sukhamen rahata hoon.'
baaghane kahaa- 'bhaaee, tumhaara sukh tumheenko mubaarak ho, mujhe aise sukhakee jaroorat naheen hai. atyant paraadheen hokar raajasukh bhoganekee apeksha svaadheen rahakar bhookhaka kasht uthaana hajaaronguna achchha hai. main ab tumhaare saath naheen jaaoongaa.'
yah kahakar baagh phir jangalamen laut gayaa.

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