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प्राणी-सेवासे ब्रह्मानन्दकी प्राप्ति  [Spiritual Story]
आध्यात्मिक कथा - Spiritual Story (Story To Read)

एक महात्मा बड़ी सुन्दर वेदान्तकी कथा कहा करते। बहुत नर-नारी सुनने जाते। उनमें एक गरीब राजपूत भी था जो आश्रमके समीप एक कुएँके पास खोमचा लगाकर उबाले हुए चने-मटर बेचा करता था। वह बड़े ध्यानसे कथा सुनता। उसने एक दिनमहात्माजीसे कहा- 'महाराज ! मैं इतने दिनोंसे मन लगाकर कथा सुनता हूँ; मैंने अन्वय-व्यतिरेकके द्वारा आत्माके स्वरूपको भी समझ लिया है। परंतु मुझे जो आत्मानन्द प्राप्त होना चाहिये, वह नहीं हो रहा है। इसका क्या कारण है।' महात्माने कहा- 'कोई प्रतिबन्धहोगा, उसके हटनेपर आत्मानन्दकी प्राप्ति होगी।' खोमचेवाला चुप हो गया।

एक दिन वह कुएँके पास छायामें खोमचा लगाये बैठा था। गरमीके दिन थे। कड़ाकेकी धूप थी। गरम लू चल रही थी। दोपहरका समय था। इतनेमें एक चमार लकड़ियोंका बोझा उठाये वहाँ आया। वह पसीनेसे तर था। उसकी आँखें लाल हो रही थीं। बहुत थका था। कुएँके पास आते ही वह व्याकुल होकर गिर पड़ा और बेहोश हो गया। खोमचेवाले राजपूतने तुरंत उठकर उसको उठाकर छायामें सुलाया। कुछ देर अपनी चद्दरसे हवा की, फिर शरबत बनाकर थोड़ा-थोड़ा उसके मुँह में डालना शुरू किया। योंकरते-करते एक घंटा बीत गया। तब उसने आँखें खोलीं। खोमचेवालेने बड़े प्यारसे उसे दो मुट्ठी चने खिलाये और फिर ठंडा पानी पिलाया। वह बिलकुल अच्छा हो गया। उसके रोम-रोमसे आशीष निकल रही थी। उसने कृतज्ञताभरी आँखोंसे राजपूतकी ओर देखा और अपना रास्ता पकड़ा।

इसी समय राजपूतको आत्मानन्दकी प्राप्ति हो गयी। मानो उसका हृदय ब्रह्मानन्दमय हो गया। उसने महात्माके पास जाकर अपनी स्थितिका वर्णन किया। महात्माने कहा-' -'तुमने निष्कामभावसे एक प्राणीकी सेवा की, इससे तुम्हारा प्रतिबन्ध कट गया। साधकमात्रको सर्वभूतहितैषी होना चाहिये।'



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praanee-sevaase brahmaanandakee praapti

ek mahaatma bada़ee sundar vedaantakee katha kaha karate. bahut nara-naaree sunane jaate. unamen ek gareeb raajapoot bhee tha jo aashramake sameep ek kuenke paas khomacha lagaakar ubaale hue chane-matar becha karata thaa. vah bada़e dhyaanase katha sunataa. usane ek dinamahaatmaajeese kahaa- 'mahaaraaj ! main itane dinonse man lagaakar katha sunata hoon; mainne anvaya-vyatirekake dvaara aatmaake svaroopako bhee samajh liya hai. parantu mujhe jo aatmaanand praapt hona chaahiye, vah naheen ho raha hai. isaka kya kaaran hai.' mahaatmaane kahaa- 'koee pratibandhahoga, usake hatanepar aatmaanandakee praapti hogee.' khomachevaala chup ho gayaa.

ek din vah kuenke paas chhaayaamen khomacha lagaaye baitha thaa. garameeke din the. kada़aakekee dhoop thee. garam loo chal rahee thee. dopaharaka samay thaa. itanemen ek chamaar lakada़iyonka bojha uthaaye vahaan aayaa. vah paseenese tar thaa. usakee aankhen laal ho rahee theen. bahut thaka thaa. kuenke paas aate hee vah vyaakul hokar gir pada़a aur behosh ho gayaa. khomachevaale raajapootane turant uthakar usako uthaakar chhaayaamen sulaayaa. kuchh der apanee chaddarase hava kee, phir sharabat banaakar thoda़aa-thoda़a usake munh men daalana shuroo kiyaa. yonkarate-karate ek ghanta beet gayaa. tab usane aankhen kholeen. khomachevaalene bada़e pyaarase use do mutthee chane khilaaye aur phir thanda paanee pilaayaa. vah bilakul achchha ho gayaa. usake roma-romase aasheesh nikal rahee thee. usane kritajnataabharee aankhonse raajapootakee or dekha aur apana raasta pakada़aa.

isee samay raajapootako aatmaanandakee praapti ho gayee. maano usaka hriday brahmaanandamay ho gayaa. usane mahaatmaake paas jaakar apanee sthitika varnan kiyaa. mahaatmaane kahaa-' -'tumane nishkaamabhaavase ek praaneekee seva kee, isase tumhaara pratibandh kat gayaa. saadhakamaatrako sarvabhootahitaishee hona chaahiye.'

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