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आदर्श निर्लोभी  [Story To Read]
हिन्दी कथा - Shikshaprad Kahani (Short Story)

परम भक्त तुलाधार शूद्र बड़े ही सत्यवादी, वैराग्यवान् तथा निर्लोभी थे। उनके पास कुछ भी संग्रह नहीं था। तुलाधारजीके कपड़ोंमें एक धोती थी और एक गमछा । दोनों ही बिलकुल फट गये थे। मैले तो थे ही। वे नाममात्रके वस्त्र रह गये थे, उनसे वस्त्रकी जरूरत पूरी नहीं होती थी । तुलाधार नित्य नदी नहाने जाते थे, इसलिये एक दिन भगवान्ने दो बढ़िया वस्त्र नदीके तीरपर ऐसी जगह रख दिये, जहाँ तुलाधारकी नजर उनपर गये बिना न रहे। तुलाधार नित्यके नियमानुसार नहाने गये। उनकी नजर नये वस्त्रोंपर पड़ी। वहाँ उनका कोई भी मालिक नहीं था, परंतु इनके मनमें जरा भी लोभ पैदा नहीं हुआ। उन्होंने दूसरेकी वस्तु समझकर उधरसे सहज ही नजर फिरा ली और स्नान-ध्यान करके चलते बने। दूर छिपकर खड़े हुए प्रभु भक्तका संयम देखकर मुसकरा दिये। दूसरे दिन भगवान्ने गूलरके फल जैसी सोनेकी डली उसी जगह रख दी। तुलाधार आये। उनकी नजर आज भी सोनेकी डलीपर गयी। क्षणभरके लियेअपनी दीनताका ध्यान आया; परंतु उन्होंने सोचा, यदि । मैं इसे ग्रहण कर लूँगा तो मेरा अलोभ-व्रत अभी नष्ट हो जायगा। फिर इससे अहंकार पैदा होगा। लाभसे लोभ, फिर लोभसे लाभ, फिर लाभसे लोभ- इस प्रकार निन्यानबेके चक्कर में मैं पड़ जाऊँगा। लोभी मनुष्यको कभी शान्ति नहीं मिलती। नरकका दरवाजा तो सदा उसके लिये खुला ही रहता है। बड़े-बड़े पापोंकी पैदाइश इस लोभसे ही होती है। घरमें धनकी प्रचुरता होनेसे स्त्री और बालक धनके मदसे मतवाले हो जाते हैं, मतवालेपनसे कामविकार होता है और काम-विकारसे बुद्धि मारी जाती है। बुद्धि नष्ट होते. ही मोह छा जाता है और उस मोहसे नया-नया अहंकार, क्रोध और लोभ उत्पन्न होता है। इनसे तप नष्ट हो | जाता है और मनुष्यकी बुरी गति हो जाती है। अतएव मैं इस सोनेकी डलीको किसी प्रकार भी नहीं लूँगा।' इस प्रकार विचार करके तुलाधार उसे वहीं पड़ी छोड़कर घरकी ओर चल दिये। स्वर्गस्थ देवताओंने साधुवाद दिया और फूल बरसाये ।



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aadarsh nirlobhee

param bhakt tulaadhaar shoodr bada़e hee satyavaadee, vairaagyavaan tatha nirlobhee the. unake paas kuchh bhee sangrah naheen thaa. tulaadhaarajeeke kapada़onmen ek dhotee thee aur ek gamachha . donon hee bilakul phat gaye the. maile to the hee. ve naamamaatrake vastr rah gaye the, unase vastrakee jaroorat pooree naheen hotee thee . tulaadhaar nity nadee nahaane jaate the, isaliye ek din bhagavaanne do badha़iya vastr nadeeke teerapar aisee jagah rakh diye, jahaan tulaadhaarakee najar unapar gaye bina n rahe. tulaadhaar nityake niyamaanusaar nahaane gaye. unakee najar naye vastronpar pada़ee. vahaan unaka koee bhee maalik naheen tha, parantu inake manamen jara bhee lobh paida naheen huaa. unhonne doosarekee vastu samajhakar udharase sahaj hee najar phira lee aur snaana-dhyaan karake chalate bane. door chhipakar khada़e hue prabhu bhaktaka sanyam dekhakar musakara diye. doosare din bhagavaanne goolarake phal jaisee sonekee dalee usee jagah rakh dee. tulaadhaar aaye. unakee najar aaj bhee sonekee daleepar gayee. kshanabharake liyeapanee deenataaka dhyaan aayaa; parantu unhonne socha, yadi . main ise grahan kar loonga to mera alobha-vrat abhee nasht ho jaayagaa. phir isase ahankaar paida hogaa. laabhase lobh, phir lobhase laabh, phir laabhase lobha- is prakaar ninyaanabeke chakkar men main pada़ jaaoongaa. lobhee manushyako kabhee shaanti naheen milatee. narakaka daravaaja to sada usake liye khula hee rahata hai. bada़e-bada़e paaponkee paidaaish is lobhase hee hotee hai. gharamen dhanakee prachurata honese stree aur baalak dhanake madase matavaale ho jaate hain, matavaalepanase kaamavikaar hota hai aur kaama-vikaarase buddhi maaree jaatee hai. buddhi nasht hote. hee moh chha jaata hai aur us mohase nayaa-naya ahankaar, krodh aur lobh utpann hota hai. inase tap nasht ho | jaata hai aur manushyakee buree gati ho jaatee hai. ataev main is sonekee daleeko kisee prakaar bhee naheen loongaa.' is prakaar vichaar karake tulaadhaar use vaheen pada़ee chhoda़kar gharakee or chal diye. svargasth devataaonne saadhuvaad diya aur phool barasaaye .

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