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बोधप्रदायक यक्ष-युधिष्ठिर संवाद  [Story To Read]
आध्यात्मिक कथा - आध्यात्मिक कहानी (हिन्दी कथा)

बोधप्रदायक यक्ष-युधिष्ठिर संवाद

द्यूतक्रीड़ामें दुर्योधनके हाथों अपना सर्वस्व गवानेके बाद पाण्डवोंको बारह वर्षका वनवास एवं एक वर्षका अज्ञातवास भोगनेको बाध्य होना पड़ा। इस अवधि में रहते हुए एक बार जल न मिलनेके कारण सभी बहुत प्यासे हो गये, तब धर्मराज युधिष्ठिरने नकुलको जल लानेहेतु भेजा, पर वे वापस न लौटे। तत्पश्चात् क्रमशः सहदेव, अर्जुन एवं भीम को भेजा गया, परंतु जब कोई भी वापस नहीं आया, तब युधिष्ठिर स्वयं उस जलाशयके निकट पहुँचे, जहाँ सभी मूच्छित पड़े थे। युधिष्ठिरको किसी षड्यन्त्रकी शंका होने लगी, तभी वहाँ उपस्थित बकरूपधारी एक यक्षकी ध्वनि उनके कानोंमें पड़ी कि यदि जल लेना है तो पहले मेरे प्रश्नोंके उत्तर दो, अन्यथा तुम्हारी भी यही गति होगी। जब युधिष्ठिरने सहमति व्यक्त की, तब उस बकरूपधारी यक्षने उनसे अनेक प्रश्न किये, जिनके धर्मराज युधिष्ठिरने अत्यन्त बुद्धिमत्तापूर्ण रीतिसे सटीक उत्तर दिये। सन्तुष्ट यक्षने प्रसन्न होकर उन्हें न केवल जल लेने की अनुमति दे दी, अपितु उनके भाइयोंको भी नवजीवन प्रदान किया।
महाभारतके वनपर्वमें यक्ष-युधिष्ठिर संवादरूपमें प्राप्त संस्कृतके श्लोकोंमें उपनिबद्ध इस प्रख्यात प्रसंगको, जो चिन्तन-मननपूर्वक बोधकी उपलब्धिमें सहायक है, सुबोध शैलीमें हिन्दी भाषामें यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है- सम्पादक ]
यक्षने पूछा- सूर्यको कौन ऊपर उठाता (उदित करता) है? उसके चारों ओर कौन चलते हैं? उसे अस्त कौन करता है? और वह किसमें प्रतिष्ठित है ?

युधिष्ठिरने कहा- ब्रह्म सूर्यको ऊपर उठाता (उदित करता) है. देवता उसके चारों ओर चलते हैं. धर्म उसे अस्त करता है और वह सत्यमें प्रतिष्ठित है।

यक्षने पूछा- राजन् मनुष्य श्रोत्रिय किससे होता
है ? महत्पदको किसके द्वारा प्राप्त करता है? वह किसकेद्वारा द्वितीयवान् होता है ? और किससे बुद्धिमान् होता है?

युधिष्ठिरने कहा - वेदाध्ययनके द्वारा मनुष्य श्रोत्रिय होता है. तपसे महत्पद प्राप्त करता है, धैर्यसे द्वितीयवान् (दूसरे साथीसे युक्त) होता है और वृद्ध पुरुषोंकी सेवासे बुद्धिमान् होता है। *

यक्षने पूछा- ब्राह्मणोंमें देवत्व क्या है? उनमें सत्-पुरुषोंका-सा धर्म क्या है? उनका मनुष्यभाव क्या है ? और उनमें असत्पुरुषोंका-सा आचरण क्या है ?

युधिष्ठिरने कहा- वेदोंका स्वाध्याय ही ब्राह्मणोंमें देवत्व है, तप सत्पुरुषोंका-सा धर्म है, मरना मनुष्य-भावहै और निन्दा करना असत्पुरुषोंका-सा आचरण है।
यक्षने पूछा - क्षत्रियोंमें देवत्व क्या है? उनमें सत्पुरुषोंका-सा धर्म क्या है? उनका मनुष्य-भाव क्या है? और उनमें असत्पुरुषोंका सा आचरण क्या है?
युधिष्ठिरने कहा- बाणविद्या क्षत्रियोंका देवत्व है, यज्ञ उनका सत्पुरुषोंका-सा धर्म है, भय मानवीय भाव है और शरणमें आये हुए दुखियोंका परित्याग कर देना उनमें असत्पुरुषोंका-सा आचरण है।

यक्षने पूछा- कौन एक वस्तु यज्ञिय साम है? कौन एक यज्ञिय यजु है ? कौन एक वस्तु यज्ञका वरण करती है? और किस एकका यज्ञ अतिक्रमण नहीं करता ?

युधिष्ठिरने कहा- प्राण ही यज्ञिय साम है, मन ही यज्ञसम्बन्धी यजु है, एकमात्र ऋचा ही यज्ञका वरण करती है और उसीका यज्ञ अतिक्रमण नहीं करता।

यक्षने पूछा- खेती करनेवालोंके लिये कौन-सी वस्तु श्रेष्ठ है ? बिखेरने (बोने) -वालोंके लिये क्या श्रेष्ठ है ? प्रतिष्ठाप्राप्त धनियोंके लिये कौन-सी वस्तु श्रेष्ठ है? तथा सन्तानोत्पादन करनेवालोंके लिये क्या श्रेष्ठ है?

युधिष्ठिरने कहा- खेती करनेवालोंके लिये वर्षा श्रेष्ठ है। बिखेरने (बोने) -वालोंके लिये बीज श्रेष्ठ है। प्रतिष्ठाप्राप्त धनियोंके लिये गौ (-का पालन-पोषण और संग्रह) श्रेष्ठ है और सन्तानोत्पादन करनेवालोंके लिये पुत्र श्रेष्ठ है।

यक्षने पूछा- ऐसा कौन पुरुष है, जो बुद्धिमान्, लोकमें सम्मानित और सब प्राणियोंका माननीय होकर एवं इन्द्रियोंके विषयोंको अनुभव करते तथा श्वास लेते भी वास्तवमें जीवित नहीं है ?

युधिष्ठिरने कहा- जो देवता, अतिथि, भरणीय कुटुम्बीजन, पितर और आत्मा-इन पाँचोंका पोषण नहीं। करता, वह श्वास लेनेपर भी जीवित नहीं है।

यक्षने पूछा- पृथ्वीसे भी भारी क्या है? आकाशसे भी ऊँचा क्या है? वायुसे भी तेज चलनेवाला क्या है? और तिनकोंसे भी अधिक (असंख्य) क्या है ?

युधिष्ठिरने कहा- माताका गौरव पृथ्वीसे भी अधिक है। पिता आकाशसे भी ऊँचा है। मन वायुसे भी तेज चलनेवाला है और चिन्ता तिनकोंसे भी अधिक असंख्य एवं अनन्त है।

यक्षने पूछा- कौन सोनेपर भी आँखें नहीं मूँदता ? उत्पन्न होकर भी कौन चेष्टा नहीं करता ? किसमें हृदय नहीं है? और कौन वेगसे बढ़ता है ?

युधिष्ठिरने कहा- मछली सोनेपर भी आँखें नहीं मूँदती, अण्डा उत्पन्न होकर भी चेष्टा नहीं करता, पत्थरमें हृदय नहीं है और नदी वेगसे बढ़ती है।

यक्षने पूछा- प्रवासी (परदेशके यात्री) का मित्र
कौन है ? गृहवासी (गृहस्थ) का मित्र कौन है ? रोगीका मित्र कौन है? और मृत्युके समीप पहुँचे हुए पुरुषका मित्र कौन है ?

युधिष्ठिरने कहा-सहयात्रियोंका समुदाय अथवा साथमें यात्रा करनेवाला साथी ही प्रवासीका मित्र है, पत्नी गृहवासीका मित्र है, वैद्य रोगीका मित्र है और दान मुमूर्षु अर्थात् मरनेवाले मनुष्यका मित्र है।

यक्षने पूछा- राजेन्द्र ! समस्त प्राणियोंका अतिथिकौन है ? सनातन धर्म क्या है ? अमृत क्या है? औरयह सारा जगत् क्या है ?

युधिष्ठिरने कहा- अग्नि समस्त प्राणियाँका अतिथि है, गौका दूध अमृत है, अविनाशी नित्य धर्म ही सनातन धर्म है और वायु यह सारा जगत् है ।"
यक्षने पूछा- अकेला कौन विचरता है। एक
बार उत्पन्न होकर पुनः कौन उत्पन्न होता है? शीतकीऔषधि क्या है? और महान आवपन (क्षेत्र) क्या है?
युधिष्ठिरने कहा- सूर्य अकेला विचरता है. चन्द्रमा एक बार जन्म लेकर पुनः जन्म लेता है. अग्नि शीतकी ओषधि है और पृथ्वी बड़ा भारी आवपन है।

यक्षने पूछा- धर्मका मुख्य स्थान क्या है
यशका मुख्य स्थान क्या है? स्वर्गका मुख्य स्थान क्या हैं? और सुखका मुख्य स्थान क्या है?

युधिष्ठिरने कहा धर्मका मुख्य स्थान दक्षता है. यशका मुख्य स्थान दान है स्वर्गका मुख्य स्थान सत्य है और सुखका मुख्य स्थान शील है।

यक्षने पूछा- मनुष्यकी आत्मा क्या है? इसका
दैवकृत संखा कौन है? इसका उपजीवन (जीवनकासहारा) क्या है? और इसका परम आश्रय क्या है?
युधिष्ठिरने कहा- पुत्र मनुष्यकी आत्मा है, स्त्री इसकी देवकृत सहचरी है. मेघ उपजीवन है और दान इसका परम आश्रय है।

यक्षने पूछा- धन्यवादके योग्य पुरुषोंमें उनम
गुण क्या है? धनोंमें उत्तम धन क्या है? लाभों में प्रधानलाभ क्या है? और सुखोंमें उत्तम सुख क्या है?
युधिष्ठिरने कहा- - धन्य पुरुषों में दक्षता ही उत्तम गुण है. धनोंमें शास्त्रज्ञान प्रधान है लाभोंमें आरोग्य श्रेष्ठ है और सुखोंमें सन्तोष ही उत्तम सुख है।"

यक्षने पूछा- लोकमें श्रेष्ठ धर्म क्या है? नित्य फलवाला धर्म क्या है ? किसको वशमें रखनेसे मनुष्य शोक नहीं करते? और किनके साथ को हुई मित्रता नष्ट नहीं होती?

युधिष्ठिरने कहा- लोकमें दया श्रेष्ठ धर्म है, वेदोक्त धर्म नित्य फलवाला है मनको वशमें रखनेसे मनुष्य शोक नहीं करते और सत्पुरुषोंके साथ की हुई मित्रता नष्ट नहीं होती ।"
यक्षने पूछा- किस वस्तुको त्यागकर मनुष्य प्रिय होता है ? किसको त्यागकर शोक नहीं करता ? किसको त्यागकर वह अर्थवान होता है? और किसको त्यागकर सुखी होता है?

युधिष्ठिरने कहा- मानको त्याग देनेपर मनुष्य प्रिय होता है. क्रोधको त्यागकर शोक नहीं करता, कामको त्यागकर वह अर्थवान् होता है और लोभको त्यागकर सुखी होता है।

यक्षने पूछा- ब्राह्मणको किसलिये दान दिया जाता है ? नट और नर्तकोंको क्यों दान देते हैं ? सेवकोंको दान देनेका क्या प्रयोजन है? और राजाओंको क्यों दान दिया जाता है ?

युधिष्ठिरने कहा- ब्राह्मणको धर्मके लिये दान दिया जाता है, नट नर्तकोंको यशके लिये दान (धन) देते हैं, सेवकोंको उनके भरण-पोषणके लिये दान (वेतन) दिया जाता है और राजाओंको भयके कारण दान (कर) देते हैं।

यक्षने पूछा- जगत् किस वस्तुसे ढका हुआ है? किसके कारण वह प्रकाशित नहीं होता? मनुष्य मित्रोंको किसलिये त्याग देता है? और स्वर्गमें किस कारण नहीं जाता ?

युधिष्ठिरने कहा- जगत् अज्ञानसे ढका हुआ है, तमोगुणके कारण वह प्रकाशित नहीं होता, लोभके कारण मनुष्य मित्रोंको त्याग देता है और आसक्तिके कारण स्वर्गमें नहीं जाता।

यक्षने पूछा-पुरुष किस प्रकार मरा हुआ कहा जाता है? राष्ट्र किस प्रकार मर जाता है? श्राद्ध किस प्रकार मृत हो जाता है? और यज्ञ कैसे नष्ट हो जाता है?
युधिष्ठिरने कहा- दरिद्र पुरुष मरा हुआ है यानी मरे हुएके समान है, बिना राजाका राज्य मर जाता है यानी नष्ट हो जाता है, श्रोत्रिय ब्राह्मणके बिना श्राद्ध मृत हो जाता है और बिना दक्षिणाका यज्ञ नष्ट हो जाता है।"

यक्षने पूछा-दिशा क्या है? जल क्या है ? अन्न क्या है ? विष क्या है? और श्राद्धका समय क्या है ? यह बताओ। इसके बाद जल पीओ और ले भी जाओ।

युधिष्ठिरने कहा- सत्पुरुष दिशा हैं, आकाश जल है, पृथ्वी अन्न है, प्रार्थना (कामना) विष है और ब्राह्मण ही श्राद्धका समय है अथवा यक्ष। इस विषयमें तुम्हारी क्या मान्यता है 11

यक्षने पूछा- तपका क्या लक्षण बताया गया है?
दम किसे कहा गया है? उत्तम क्षमा क्या बतायी गयी है? और लज्जा किसको कहा गया है ?

युधिष्ठिरने कहा- अपने धर्ममें तत्पर रहना तप है, मनके दमनका ही नाम दम है, सर्दी-गर्मी आदि द्वन्द्वोंको सहन करना क्षमा है तथा न करनेयोग्य कामसे दूर रहना लज्जा है। 12

यक्षने पूछा- राजन् ! ज्ञान किसे कहते हैं? शम क्या कहलाता है ? उत्तम दया किसका नाम है ? और आर्जव (सरलता) किसे कहते हैं ?

युधिष्ठिरने कहा- परमात्मतत्त्वका यथार्थ बोध ही ज्ञान है, चित्तकी शान्ति ही शम है, सबके सुखकी इच्छा रखना ही उत्तम दया है और समचित्त होना ही आर्जव (सरलता) है। 13

यक्षने पूछा – मनुष्योंका दुर्जय शत्रु कौन है?
अनन्त व्याधि क्या है? साधु कौन माना जाता है ?और असाधु किसे कहते हैं?

युधिष्ठिरने कहा- क्रोध दुर्जय शत्रु हैं, लोभ अनन्त व्याधि है तथा जो समस्त प्राणियोंका हित करनेवाला हो, वही साधु है और निर्दयी पुरुषको ही असाधु माना गया है। 14
यक्षने पूछा- राजन् ! मोह किसे कहते हैं? मान क्या कहलाता है ? आलस्य किसे जानना चाहिये ? और शोक किसे कहते हैं ?

युधिष्ठिरने कहा- धर्ममूढता हो मोह है. आत्माभिमान ही मान है, धर्मका पालन न करना आलस्य है और अज्ञानको ही शोक कहते हैं

यक्षने पूछा- ऋषियोंने स्थिरता किसे कहा है? धैर्य क्या कहलाता है? परम स्नान किसे कहते हैं ? और दान किसका नाम है ?

युधिष्ठिरने कहा अपने धर्ममें स्थिर रहना ही स्थिरता है. इन्द्रियनिग्रह धैर्य है. मानसिक मलोंका त्याग करना परम स्नान है और प्राणियोंकी रक्षा करना हो दान है।

यक्षने पूछा- किस पुरुषको पण्डित समझना चाहिये, नास्तिक कौन कहलाता है? मूर्ख कौन है?काम क्या है? तथा मत्सर किसे कहते हैं?

युधिष्ठिरने कहा— धर्मज्ञको पण्डित समझना चाहिये मूर्ख नास्तिक कहलाता है तथा जो जन्म मरणरूप संसारका कारण है. वह वासना ही काम है और हृदयकी जलन ही मत्सर है।

यक्षने पूछा- अहंकार किसे कहते हैं? दम्भ क्या कहलाता है? जिसे परम दैव कहते हैं, वह क्या है? और पैशुन्य किसका नाम है ?

युधिष्ठिरने कहा- महान् अज्ञान अहंकार है. अपनेको झूठ-मूठ बड़ा धर्मात्मा प्रसिद्ध करना दम्भ है. दानका फल दैव कहलाता है और दूसरोंको दोष लगाना पैशुन्य (चुगली) है।

यक्षने पूछा- धर्म, अर्थ और कामये सब
परस्पर विरोधी हैं। इन नित्य विरुद्ध पुरुषार्थीका एक.स्थानपर कैसे संयोग हो सकता है?

युधिष्ठिरने कहा- जब धर्म और भार्या- ये दोनों परस्पर अविरोधी होकर मनुष्यके वशमें हो जाते है उस समय धर्म, अर्थ और काम-इन तीनों परस्पर विरोधियों का भी एक साथ रहना सहज हो जाता है।
यक्षने पूछा- भरतश्रेष्ठ ! अक्षय नरक किस पुरुषकोप्राप्त होता है ? मेरे इस प्रश्नका शीघ्र ही उत्तर दो।

युधिष्ठिरने कहा- जो पुरुष भिक्षा माँगनेवाले किसी अकिंचन ब्राह्मणको स्वयं बुलाकर फिर उसे 'नाहीं' कर देता है, वह अक्षय नरकमें जाता है।
जो पुरुष वेद, धर्मशास्त्र, ब्राह्मण देवता और पितृधर्मो में मिथ्याबुद्धि रखता है, वह अक्षय नरकको प्राप्त होता है।
धन पास रहते हुए भी जो लोभवश दान और भोगसे रहित हैं तथा (माँगनेवाले ब्राह्मणादिको एवं न्याययुक्त भोगके लिये स्त्री-पुत्रादिको) पीछेसे यह कह देिता है कि मेरे पास कुछ नहीं है, वह अक्षय नरकमें जाता है।

यक्षने पूछा- राजन्! कुल, आचार, स्वाध्याय और शास्त्र श्रवण- इनमेंसे किसके द्वारा ब्राह्मणत्व सिद्ध होता है? यह बात निश्चय करके बताओ।

युधिष्ठिरने कहा - तात यक्ष ! सुनो, न तो कुल ब्राह्मणत्वमें कारण है, न स्वाध्याय और न शास्त्र श्रवण । ब्राह्मणत्वका हेतु आचार ही है, इसमें संशय नहीं है।

इसलिये प्रयत्नपूर्वक सदाचारकी ही रक्षा करनी चाहिये। ब्राह्मणको तो उसपर विशेषरूपसे दृष्टि रखनी जरूरी है, क्योंकि जिसका सदाचार अक्षुण्ण है, उसका ब्राह्मणत्व भी बना हुआ है और जिसका आचार नष्ट हो गया, वह तो स्वयं भी नष्ट हो गया। 18
Xaपढनेवाले, पढ़ानेवाले तथा शास्त्रका विचार करने वाले ये सब तो व्यसनी और मूर्ख ही हैं। पण्डित तो वही है. जो अपने (शास्त्रोक्त) कर्तव्यका पालन करता है।
चारों वेद पढ़ा होनेपर भी जो दुराचारी है, वह अधमतामें शूद्रसे भी बढ़कर है। जो (नित्य) अग्निहोत्रमें तत्पर और जितेन्द्रिय है. वही 'ब्राह्मण' कहा जाता है।
यक्षने पूछा- बताओ मधुर वचन बोलनेवालेको क्या मिलता है? सोच विचारकर काम करनेवाला क्या पा लेता है? जो बहुत से मित्र बना लेता है, उसे क्या लाभ होता है ? और जो धर्मनिष्ठ है उसे क्या मिलता है?

युधिष्ठिरने कहा- मधुर वचन बोलनेवाला सबको प्रिय होता है सोच-विचारकर काम करनेवालेको अधिकतर सफलता मिलती है एवं जो बहुत-से मित्र बना लेता है, वह सुखसे रहता है और जो धर्मनिष्ठ है वह सद्गति पाता है

यक्षने पूछा- सुखो कौन है? आश्चर्य क्या है? मार्ग क्या है और बातों क्या है? मेरे इन चार प्रश्नोंका उत्तर देकर जल पोओ।

युधिष्ठिरने कहा जलचर यक्ष जिस पुरुषपर
ऋण नहीं है और जो परदेशमें नहीं है, वह भले हीपाँचवें या छठे दिन अपने घरके भीतर सागपात हो पकाकर खाता हो, तो भी वही सुखी है।

संसारसे रोज-रोज प्राणी यमलोकमें जा रहे हैं.
किंतु जो बचे हुए हैं. वे सर्वदा जोते रहने की इच्छा करते हैं इससे बढ़कर आश्चर्य और क्या होगा

तर्ककी कहीं स्थिति नहीं है. श्रुतियाँ भी भिन्न-भिन्न हैं एक ही ऋषि नहीं है कि जिसका मत प्रमाण माना जाय तथा धर्मका तत्त्व गुहामें निहित है अर्थात् अत्यन्त गूढ़ है. अतः जिससे महापुरुष जाते रहे हैं वही मार्ग है।
इस महामोहरूपी कडाहेमें भगवान् काल समस्त प्राणियाँको मास और ऋतुरूप करछीसे उलट-पलटकर सूर्यरूप अग्नि और रात दिनरूप ईंधनके द्वारा राँध रहे हैं यही वार्ता है।

यक्षने पूछा- परंतप तुमने मेरे सब प्रश्नोंके उत्तर ठीक-ठीक दे दिये अब तुम पुरुषकी भी व्याख्या कर दो और यह बताओ कि सबसे बड़ा धनी कौन है?

युधिष्ठिरने कहा- जिस व्यक्तिके पुण्यकर्मोकी कीर्तिका शब्द जबतक स्वर्ग और भूमिको स्पर्श करता है, तबतक वह पुरुष कहलाता है।
जो मनुष्य प्रिय अप्रिय, सुख-दुःख और भूत भविष्यत्-इन द्वन्द्वोंमें सम है, वही सबसे बड़ा धनी है। 21
जो भूत वर्तमान और भविष्य सभी विषयोंकी ओरसे निःस्पृह, शान्तचित्त, सुप्रसन्न और सदा योगयुक्त है. वही सब धनियोंका स्वामी है। 22
यक्षने पूछा- राजन्! जो सबसे बढ़कर धनी पुरुष है, उसकी तुमने ठीक-ठीक व्याख्या कर दी, इसलिये अपने भाइयोंमेंसे जिस एकको तुम चाहो, वही जीवित हो सकता है।
यक्षके द्वारा ऐसा कहे जानेपर युधिष्ठिरने महाबाहु नकुलको जीवित करनेके लिये कहा, इसपर यक्षने जब पूछा कि आप अन्य भाइयोंको छोड़कर नकुलको ही जीवित होनेके लिये क्यों कहते हैं, तब युधिष्ठिर बोले यदि धर्मका नाश किया जाय तो वह नष्ट हुआ धर्म ही कर्ताको भी नष्ट कर देता है और यदि उसकी रक्षा की जाय तो वही कर्ताकी भी रक्षा कर लेता है। इसीसे मैं धर्मका त्याग नहीं करता कि कहीं नष्ट होकर वह धर्म मेरा ही नाश न कर दे -' धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः । तस्माद् धर्मं न त्यजामि मा नो धर्मो हतोऽवधीत् ॥' (महा0वन0 313 । 128)

हे यक्ष मेरे विषयमें लोग ऐसा समझते हैं कि राजा युधिष्ठिर धर्मात्मा हैं, अतएव मैं धर्मसे विचलित नहीं होऊँगा। मेरे पिताकी कुन्ती और माद्री नामकी दो भार्याएँ रहीं। वे दोनों ही पुत्रवती बनी रहें, ऐसा मेरा विचार है। मैं माता कुन्तीका पुत्र हूँ और माद्री नकुलकी माता हैं।
इस उत्तरसे यक्ष अत्यन्त प्रसन्न हो गया और उसने कहा- हे भरतश्रेष्ठ । तुमने अर्थ और कामसे भी अधिक दया और समताका आदर किया है, इसलिये तुम्हारे सभी भाई जीवित हो जायँ–'तस्मात् ते भ्रातरः सर्वे जीवन्तु भरतर्षभ ॥' इसीके साथ ही युधिष्ठिरको वरदान प्राप्त हुए। अन्य भी कई



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bodhapradaayak yaksha-yudhishthir sanvaada

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yudhishthirane kahaa- agni samast praaniyaanka atithi hai, gauka doodh amrit hai, avinaashee nity dharm hee sanaatan dharm hai aur vaayu yah saara jagat hai ."
yakshane poochhaa- akela kaun vicharata hai. eka
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yudhishthirane kahaa- soory akela vicharata hai. chandrama ek baar janm lekar punah janm leta hai. agni sheetakee oshadhi hai aur prithvee bada़a bhaaree aavapan hai.

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yudhishthirane kaha dharmaka mukhy sthaan dakshata hai. yashaka mukhy sthaan daan hai svargaka mukhy sthaan saty hai aur sukhaka mukhy sthaan sheel hai.

yakshane poochhaa- manushyakee aatma kya hai? isakaa
daivakrit sankha kaun hai? isaka upajeevan (jeevanakaasahaaraa) kya hai? aur isaka param aashray kya hai?
yudhishthirane kahaa- putr manushyakee aatma hai, stree isakee devakrit sahacharee hai. megh upajeevan hai aur daan isaka param aashray hai.

yakshane poochhaa- dhanyavaadake yogy purushonmen unama
gun kya hai? dhanonmen uttam dhan kya hai? laabhon men pradhaanalaabh kya hai? aur sukhonmen uttam sukh kya hai?
yudhishthirane kahaa- - dhany purushon men dakshata hee uttam gun hai. dhanonmen shaastrajnaan pradhaan hai laabhonmen aarogy shreshth hai aur sukhonmen santosh hee uttam sukh hai."

yakshane poochhaa- lokamen shreshth dharm kya hai? nity phalavaala dharm kya hai ? kisako vashamen rakhanese manushy shok naheen karate? aur kinake saath ko huee mitrata nasht naheen hotee?

yudhishthirane kahaa- lokamen daya shreshth dharm hai, vedokt dharm nity phalavaala hai manako vashamen rakhanese manushy shok naheen karate aur satpurushonke saath kee huee mitrata nasht naheen hotee ."
yakshane poochhaa- kis vastuko tyaagakar manushy priy hota hai ? kisako tyaagakar shok naheen karata ? kisako tyaagakar vah arthavaan hota hai? aur kisako tyaagakar sukhee hota hai?

yudhishthirane kahaa- maanako tyaag denepar manushy priy hota hai. krodhako tyaagakar shok naheen karata, kaamako tyaagakar vah arthavaan hota hai aur lobhako tyaagakar sukhee hota hai.

yakshane poochhaa- braahmanako kisaliye daan diya jaata hai ? nat aur nartakonko kyon daan dete hain ? sevakonko daan deneka kya prayojan hai? aur raajaaonko kyon daan diya jaata hai ?

yudhishthirane kahaa- braahmanako dharmake liye daan diya jaata hai, nat nartakonko yashake liye daan (dhana) dete hain, sevakonko unake bharana-poshanake liye daan (vetana) diya jaata hai aur raajaaonko bhayake kaaran daan (kara) dete hain.

yakshane poochhaa- jagat kis vastuse dhaka hua hai? kisake kaaran vah prakaashit naheen hotaa? manushy mitronko kisaliye tyaag deta hai? aur svargamen kis kaaran naheen jaata ?

yudhishthirane kahaa- jagat ajnaanase dhaka hua hai, tamogunake kaaran vah prakaashit naheen hota, lobhake kaaran manushy mitronko tyaag deta hai aur aasaktike kaaran svargamen naheen jaataa.

yakshane poochhaa-purush kis prakaar mara hua kaha jaata hai? raashtr kis prakaar mar jaata hai? shraaddh kis prakaar mrit ho jaata hai? aur yajn kaise nasht ho jaata hai?
yudhishthirane kahaa- daridr purush mara hua hai yaanee mare hueke samaan hai, bina raajaaka raajy mar jaata hai yaanee nasht ho jaata hai, shrotriy braahmanake bina shraaddh mrit ho jaata hai aur bina dakshinaaka yajn nasht ho jaata hai."

yakshane poochhaa-disha kya hai? jal kya hai ? ann kya hai ? vish kya hai? aur shraaddhaka samay kya hai ? yah bataao. isake baad jal peeo aur le bhee jaao.

yudhishthirane kahaa- satpurush disha hain, aakaash jal hai, prithvee ann hai, praarthana (kaamanaa) vish hai aur braahman hee shraaddhaka samay hai athava yaksha. is vishayamen tumhaaree kya maanyata hai 11

yakshane poochhaa- tapaka kya lakshan bataaya gaya hai?
dam kise kaha gaya hai? uttam kshama kya bataayee gayee hai? aur lajja kisako kaha gaya hai ?

yudhishthirane kahaa- apane dharmamen tatpar rahana tap hai, manake damanaka hee naam dam hai, sardee-garmee aadi dvandvonko sahan karana kshama hai tatha n karaneyogy kaamase door rahana lajja hai. 12

yakshane poochhaa- raajan ! jnaan kise kahate hain? sham kya kahalaata hai ? uttam daya kisaka naam hai ? aur aarjav (saralataa) kise kahate hain ?

yudhishthirane kahaa- paramaatmatattvaka yathaarth bodh hee jnaan hai, chittakee shaanti hee sham hai, sabake sukhakee ichchha rakhana hee uttam daya hai aur samachitt hona hee aarjav (saralataa) hai. 13

yakshane poochha – manushyonka durjay shatru kaun hai?
anant vyaadhi kya hai? saadhu kaun maana jaata hai ?aur asaadhu kise kahate hain?

yudhishthirane kahaa- krodh durjay shatru hain, lobh anant vyaadhi hai tatha jo samast praaniyonka hit karanevaala ho, vahee saadhu hai aur nirdayee purushako hee asaadhu maana gaya hai. 14
yakshane poochhaa- raajan ! moh kise kahate hain? maan kya kahalaata hai ? aalasy kise jaanana chaahiye ? aur shok kise kahate hain ?

yudhishthirane kahaa- dharmamoodhata ho moh hai. aatmaabhimaan hee maan hai, dharmaka paalan n karana aalasy hai aur ajnaanako hee shok kahate hain

yakshane poochhaa- rishiyonne sthirata kise kaha hai? dhairy kya kahalaata hai? param snaan kise kahate hain ? aur daan kisaka naam hai ?

yudhishthirane kaha apane dharmamen sthir rahana hee sthirata hai. indriyanigrah dhairy hai. maanasik malonka tyaag karana param snaan hai aur praaniyonkee raksha karana ho daan hai.

yakshane poochhaa- kis purushako pandit samajhana chaahiye, naastik kaun kahalaata hai? moorkh kaun hai?kaam kya hai? tatha matsar kise kahate hain?

yudhishthirane kahaa— dharmajnako pandit samajhana chaahiye moorkh naastik kahalaata hai tatha jo janm maranaroop sansaaraka kaaran hai. vah vaasana hee kaam hai aur hridayakee jalan hee matsar hai.

yakshane poochhaa- ahankaar kise kahate hain? dambh kya kahalaata hai? jise param daiv kahate hain, vah kya hai? aur paishuny kisaka naam hai ?

yudhishthirane kahaa- mahaan ajnaan ahankaar hai. apaneko jhootha-mooth bada़a dharmaatma prasiddh karana dambh hai. daanaka phal daiv kahalaata hai aur doosaronko dosh lagaana paishuny (chugalee) hai.

yakshane poochhaa- dharm, arth aur kaamaye saba
paraspar virodhee hain. in nity viruddh purushaartheeka eka.sthaanapar kaise sanyog ho sakata hai?

yudhishthirane kahaa- jab dharm aur bhaaryaa- ye donon paraspar avirodhee hokar manushyake vashamen ho jaate hai us samay dharm, arth aur kaama-in teenon paraspar virodhiyon ka bhee ek saath rahana sahaj ho jaata hai.
yakshane poochhaa- bharatashreshth ! akshay narak kis purushakopraapt hota hai ? mere is prashnaka sheeghr hee uttar do.

yudhishthirane kahaa- jo purush bhiksha maanganevaale kisee akinchan braahmanako svayan bulaakar phir use 'naaheen' kar deta hai, vah akshay narakamen jaata hai.
jo purush ved, dharmashaastr, braahman devata aur pitridharmo men mithyaabuddhi rakhata hai, vah akshay narakako praapt hota hai.
dhan paas rahate hue bhee jo lobhavash daan aur bhogase rahit hain tatha (maanganevaale braahmanaadiko evan nyaayayukt bhogake liye stree-putraadiko) peechhese yah kah deita hai ki mere paas kuchh naheen hai, vah akshay narakamen jaata hai.

yakshane poochhaa- raajan! kul, aachaar, svaadhyaay aur shaastr shravana- inamense kisake dvaara braahmanatv siddh hota hai? yah baat nishchay karake bataao.

yudhishthirane kaha - taat yaksh ! suno, n to kul braahmanatvamen kaaran hai, n svaadhyaay aur n shaastr shravan . braahmanatvaka hetu aachaar hee hai, isamen sanshay naheen hai.

isaliye prayatnapoorvak sadaachaarakee hee raksha karanee chaahiye. braahmanako to usapar vishesharoopase drishti rakhanee jarooree hai, kyonki jisaka sadaachaar akshunn hai, usaka braahmanatv bhee bana hua hai aur jisaka aachaar nasht ho gaya, vah to svayan bhee nasht ho gayaa. 18
Xapadhanevaale, padha़aanevaale tatha shaastraka vichaar karane vaale ye sab to vyasanee aur moorkh hee hain. pandit to vahee hai. jo apane (shaastrokta) kartavyaka paalan karata hai.
chaaron ved padha़a honepar bhee jo duraachaaree hai, vah adhamataamen shoodrase bhee badha़kar hai. jo (nitya) agnihotramen tatpar aur jitendriy hai. vahee 'braahmana' kaha jaata hai.
yakshane poochhaa- bataao madhur vachan bolanevaaleko kya milata hai? soch vichaarakar kaam karanevaala kya pa leta hai? jo bahut se mitr bana leta hai, use kya laabh hota hai ? aur jo dharmanishth hai use kya milata hai?

yudhishthirane kahaa- madhur vachan bolanevaala sabako priy hota hai socha-vichaarakar kaam karanevaaleko adhikatar saphalata milatee hai evan jo bahuta-se mitr bana leta hai, vah sukhase rahata hai aur jo dharmanishth hai vah sadgati paata hai

yakshane poochhaa- sukho kaun hai? aashchary kya hai? maarg kya hai aur baaton kya hai? mere in chaar prashnonka uttar dekar jal poo.

yudhishthirane kaha jalachar yaksh jis purushapara
rin naheen hai aur jo paradeshamen naheen hai, vah bhale heepaanchaven ya chhathe din apane gharake bheetar saagapaat ho pakaakar khaata ho, to bhee vahee sukhee hai.

sansaarase roja-roj praanee yamalokamen ja rahe hain.
kintu jo bache hue hain. ve sarvada jote rahane kee ichchha karate hain isase badha़kar aashchary aur kya hogaa

tarkakee kaheen sthiti naheen hai. shrutiyaan bhee bhinna-bhinn hain ek hee rishi naheen hai ki jisaka mat pramaan maana jaay tatha dharmaka tattv guhaamen nihit hai arthaat atyant goodha़ hai. atah jisase mahaapurush jaate rahe hain vahee maarg hai.
is mahaamoharoopee kadaahemen bhagavaan kaal samast praaniyaanko maas aur rituroop karachheese ulata-palatakar sooryaroop agni aur raat dinaroop eendhanake dvaara raandh rahe hain yahee vaarta hai.

yakshane poochhaa- parantap tumane mere sab prashnonke uttar theeka-theek de diye ab tum purushakee bhee vyaakhya kar do aur yah bataao ki sabase bada़a dhanee kaun hai?

yudhishthirane kahaa- jis vyaktike punyakarmokee keertika shabd jabatak svarg aur bhoomiko sparsh karata hai, tabatak vah purush kahalaata hai.
jo manushy priy apriy, sukha-duhkh aur bhoot bhavishyat-in dvandvonmen sam hai, vahee sabase bada़a dhanee hai. 21
jo bhoot vartamaan aur bhavishy sabhee vishayonkee orase nihsprih, shaantachitt, suprasann aur sada yogayukt hai. vahee sab dhaniyonka svaamee hai. 22
yakshane poochhaa- raajan! jo sabase badha़kar dhanee purush hai, usakee tumane theeka-theek vyaakhya kar dee, isaliye apane bhaaiyonmense jis ekako tum chaaho, vahee jeevit ho sakata hai.
yakshake dvaara aisa kahe jaanepar yudhishthirane mahaabaahu nakulako jeevit karaneke liye kaha, isapar yakshane jab poochha ki aap any bhaaiyonko chhoda़kar nakulako hee jeevit honeke liye kyon kahate hain, tab yudhishthir bole yadi dharmaka naash kiya jaay to vah nasht hua dharm hee kartaako bhee nasht kar deta hai aur yadi usakee raksha kee jaay to vahee kartaakee bhee raksha kar leta hai. iseese main dharmaka tyaag naheen karata ki kaheen nasht hokar vah dharm mera hee naash n kar de -' dharm ev hato hanti dharmo rakshati rakshitah . tasmaad dharman n tyajaami ma no dharmo hato'vadheet ..' (mahaa0vana0 313 . 128)

he yaksh mere vishayamen log aisa samajhate hain ki raaja yudhishthir dharmaatma hain, ataev main dharmase vichalit naheen hooongaa. mere pitaakee kuntee aur maadree naamakee do bhaaryaaen raheen. ve donon hee putravatee banee rahen, aisa mera vichaar hai. main maata kunteeka putr hoon aur maadree nakulakee maata hain.
is uttarase yaksh atyant prasann ho gaya aur usane kahaa- he bharatashreshth . tumane arth aur kaamase bhee adhik daya aur samataaka aadar kiya hai, isaliye tumhaare sabhee bhaaee jeevit ho jaayan–'tasmaat te bhraatarah sarve jeevantu bharatarshabh ..' iseeke saath hee yudhishthirako varadaan praapt hue. any bhee kaee

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