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भगवान् से विवाह  [प्रेरक कहानी]
Moral Story - हिन्दी कहानी (Hindi Story)

कर्कटे पूर्वफाल्गुन्या तुलसीकाननोद्भवम्। ।

पाण्ड्ये विश्ववरां कोदां वन्दे श्रीरङ्गनायकीम् ॥

पुष्प - चयन करते समय प्रातः काल श्रीविष्णुचित्तने तुलसीकाननमें एक नवजात कन्या देखी। उसे उठाकर उन्होंने श्रीनारायण के चरणोंमें रखकर निवेदन किया, 'दयामय यह तुम्हारी सम्पति है और तुम्हारी हो सेवाके लिये आयी है, इसे अपने चरणकमलोंमें आश्रय दो ।' श्रीविग्रहसे उत्तर मिला-'इस बालिकाका नाम कोदयी रखो और अपनी ही पुत्रीकी भाँति इसका लालन पालन करो।'

'कोदयी' का अर्थ होता है 'पुष्पतुल्य कमनीय'। सयानी होनेपर जब इस बालिकाने भगवान्‌का प्रेम प्राप्त कर लिया, तब इसका नाम 'आण्डाल' हो गया।

भगवान्‌ के आदेशानुसार श्रीविष्णुचित्त कन्याका लालन पालन करने लगे। लड़कोकी गाणी खुली तो यह 'विष्णु' के अतिरिक्त कुछ बोल ही नहीं सकती थी। वह वाटिकासे सुगन्धित पुष्प तोड़ती और हार गूँथकर भगवान्को अर्पण करती। बड़ी होनेपर भगवान् श्रीरङ्गनाथको वह पतिके रूपमें भजने लगी। अत्यन्त सुन्दर हार गूँथकर वह स्वयं पहन लेती और दर्पणके सामने खड़ी होकर अपना रूप देख-देखकर कहती, 'क्या मेरासौन्दर्य मेरे प्रियतमको आकर्षित नहीं कर सकेगा?" और फिर वही माला वह भगवान्‌को धारण करानेके लिये भेज देती। एक दिन पुजारीने देखा-मालाके साथ बाल लगा हुआ है। इस कारण उसने माला वापस कर । दूसरे दिन भी पुजारीकी शिकायत रही कि माला मुर्झायी हुई है। विष्णुचित्तने सोचा कि अवश्य ही इसमें कोई कारण होना चाहिये। वे पता लगाने | लगे। एक दिन उन्होंने अपनी लड़कीको प्रभुको अर्पित की जानेवाली माला पहने दर्पणके सामने खड़ी देखा और सुना कि वह मन-ही-मन प्रभुसे बात कर रही है। वे दौड़कर समीप गये और बोले, 'बेटी ! तुमने यह क्या किया। भगवान्‌को अर्पित की जानेवाली वस्तुका स्वयं किसी प्रकार भी पहले उपयोग नहीं करना चाहिये।' और उस दिन उन्होंने नयी माला बनाकर भगवान्‌को पहनायी। किंतु उसी रात्रिमें भगवान्ने विष्णुचित्तको स्वप्रमें कहा, 'मुझे आण्डालकी धारण की हुई माला धारण करनेमें विशेष आनन्द मिलता है। इसलिये मुझे वही चढ़ाया करो।' अब विष्णुचित्तको निश्चय हो गया कि यह कोई अद्भुत बालिका है और वे उसकी पहनी हुई माला भगवान्‌को पहनाने लगे। आण्डालकी मधुरभावकी उपासना चरम सीमापरपहुँच गयी थी। वह शरीरसे ऊपर उठी हुई थी। उसे बाहर-भीतर, आगे-पीछे, सर्वत्र उसके प्राणवल्लभ ही दीखते रहते थे। शरीरसे वह विष्णुचित्तकी वाटिका में रहती, पर मनसे वह वृन्दावनमें भगवान् श्रीकृष्णकी लीलाओंका दर्शन करती रहती। कभी-कभी वियोगमें बड़बड़ा उठती।

एक दिन वह अपने प्रियतम श्रीरङ्गनाथके विरहमें अत्यन्त व्याकुल हो गयी। श्रीरङ्गनाथसे मिलनेके लिये वह अधीर थी, भगवान् श्रीरङ्गनाथने मन्दिरके अधिकारियोंको दर्शन देकर कहा - 'मेरी प्राणप्रिया आण्डालको मेरे पास ले आओ।' और विष्णुचित्तको स्वप्रमें दर्शन देकर प्रभुने कहा- 'आण्डालको शीघ्र मेरे पास पहुँचा दो । मैं उसका पाणिग्रहण करूँगा।' भगवान्ने आण्डालकोभी स्वप्रमें दर्शन दिया। उसे लगा कि 'बड़ी ही धूमधामसे मेरा विवाह भगवान् श्रीरङ्गनाथके साथ सम्पन्न हो रहा है।'

दूसरे ही दिन श्रीरङ्गनाथजीके मन्दिरसे आण्डाल और उसके धर्मपिता विष्णुचित्तको लेनेके लिये कई पालकियाँ और सामग्रियाँ आयीं। ढोल बजने लगे, वेदपाठी ब्राह्मण वेद पढ़ने लगे, शङ्ख-ध्वनि हुई । भक्तलोग श्रीरङ्गनाथ और आण्डालकी जय बोलने लगे। प्रेमोन्मत्त आण्डाल मन्दिरमें प्रवेश करते ही भगवान्‌की शेषशय्यापर चढ़ गयी। लोगोंने देखा, उस समय एक दिव्य प्रकाश छा गया और आण्डाल सदाके लिये अपने प्राणनाथमें लीन हो गयी। प्रेमी और प्रेमास्पद एक हो गये। वह भगवान् श्रीरङ्गनाथमें मिल गयी । – शि0 दु0



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bhagavaan se vivaaha

karkate poorvaphaalgunya tulaseekaananodbhavam. .

paandye vishvavaraan kodaan vande shreeranganaayakeem ..

pushp - chayan karate samay praatah kaal shreevishnuchittane tulaseekaananamen ek navajaat kanya dekhee. use uthaakar unhonne shreenaaraayan ke charanonmen rakhakar nivedan kiya, 'dayaamay yah tumhaaree sampati hai aur tumhaaree ho sevaake liye aayee hai, ise apane charanakamalonmen aashray do .' shreevigrahase uttar milaa-'is baalikaaka naam kodayee rakho aur apanee hee putreekee bhaanti isaka laalan paalan karo.'

'kodayee' ka arth hota hai 'pushpatuly kamaneeya'. sayaanee honepar jab is baalikaane bhagavaan‌ka prem praapt kar liya, tab isaka naam 'aandaala' ho gayaa.

bhagavaan‌ ke aadeshaanusaar shreevishnuchitt kanyaaka laalan paalan karane lage. lada़kokee gaanee khulee to yah 'vishnu' ke atirikt kuchh bol hee naheen sakatee thee. vah vaatikaase sugandhit pushp toda़tee aur haar goonthakar bhagavaanko arpan karatee. bada़ee honepar bhagavaan shreeranganaathako vah patike roopamen bhajane lagee. atyant sundar haar goonthakar vah svayan pahan letee aur darpanake saamane khada़ee hokar apana roop dekha-dekhakar kahatee, 'kya meraasaundary mere priyatamako aakarshit naheen kar sakegaa?" aur phir vahee maala vah bhagavaan‌ko dhaaran karaaneke liye bhej detee. ek din pujaareene dekhaa-maalaake saath baal laga hua hai. is kaaran usane maala vaapas kar . doosare din bhee pujaareekee shikaayat rahee ki maala murjhaayee huee hai. vishnuchittane socha ki avashy hee isamen koee kaaran hona chaahiye. ve pata lagaane | lage. ek din unhonne apanee lada़keeko prabhuko arpit kee jaanevaalee maala pahane darpanake saamane khada़ee dekha aur suna ki vah mana-hee-man prabhuse baat kar rahee hai. ve dauda़kar sameep gaye aur bole, 'betee ! tumane yah kya kiyaa. bhagavaan‌ko arpit kee jaanevaalee vastuka svayan kisee prakaar bhee pahale upayog naheen karana chaahiye.' aur us din unhonne nayee maala banaakar bhagavaan‌ko pahanaayee. kintu usee raatrimen bhagavaanne vishnuchittako svapramen kaha, 'mujhe aandaalakee dhaaran kee huee maala dhaaran karanemen vishesh aanand milata hai. isaliye mujhe vahee chadha़aaya karo.' ab vishnuchittako nishchay ho gaya ki yah koee adbhut baalika hai aur ve usakee pahanee huee maala bhagavaan‌ko pahanaane lage. aandaalakee madhurabhaavakee upaasana charam seemaaparapahunch gayee thee. vah shareerase oopar uthee huee thee. use baahara-bheetar, aage-peechhe, sarvatr usake praanavallabh hee deekhate rahate the. shareerase vah vishnuchittakee vaatika men rahatee, par manase vah vrindaavanamen bhagavaan shreekrishnakee leelaaonka darshan karatee rahatee. kabhee-kabhee viyogamen bada़bada़a uthatee.

ek din vah apane priyatam shreeranganaathake virahamen atyant vyaakul ho gayee. shreeranganaathase milaneke liye vah adheer thee, bhagavaan shreeranganaathane mandirake adhikaariyonko darshan dekar kaha - 'meree praanapriya aandaalako mere paas le aao.' aur vishnuchittako svapramen darshan dekar prabhune kahaa- 'aandaalako sheeghr mere paas pahuncha do . main usaka paanigrahan karoongaa.' bhagavaanne aandaalakobhee svapramen darshan diyaa. use laga ki 'bada़ee hee dhoomadhaamase mera vivaah bhagavaan shreeranganaathake saath sampann ho raha hai.'

doosare hee din shreeranganaathajeeke mandirase aandaal aur usake dharmapita vishnuchittako leneke liye kaee paalakiyaan aur saamagriyaan aayeen. dhol bajane lage, vedapaathee braahman ved padha़ne lage, shankha-dhvani huee . bhaktalog shreeranganaath aur aandaalakee jay bolane lage. premonmatt aandaal mandiramen pravesh karate hee bhagavaan‌kee sheshashayyaapar chadha़ gayee. logonne dekha, us samay ek divy prakaash chha gaya aur aandaal sadaake liye apane praananaathamen leen ho gayee. premee aur premaaspad ek ho gaye. vah bhagavaan shreeranganaathamen mil gayee . – shi0 du0

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