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भगवान्पर मनुष्य- जितना भी विश्वास नहीं  [Moral Story]
प्रेरक कहानी - हिन्दी कथा (छोटी सी कहानी)

एक भजनानन्दी साधु घूमते हुए आये और एक मन्दिरमें ठहर गये। मन्दिरके पुजारीने उनसे कहा *आप यहाँ जितने भी दिन रुकना चाहें, प्रसन्नतापूर्वक रहें; किंतु यहाँ भोजनकी कोई व्यवस्था नहीं है। भोजनकी कोई व्यवस्था आप कर लें।' साधु बोले- 'तुम्हारे पड़ोसीने कहा है कि मुझे दो रोटियाँ प्रतिदिन वह दे दिया करेगा।' पुजारी- 'तब ठीक है। तब तो आप निश्चिन्त रहें,वह सच्चा आदमी है।' साधुने यह सुनकर आसन उठाया- 'भाई! यह स्थान मेरे रहनेयोग्य नहीं है और न तुम देव - सेवा करनेयोग्य हो भगवान् विश्वम्भर हैं, अपने जनोंके भरण-पोषणकी उन्होंने प्रतिज्ञा कर रखी है; किंतु उन सर्व-समर्थ भगवान्पर तो तुम्हें मनुष्य- जितना भी विश्वास नहीं ।'

- सु0 सिं0



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bhagavaanpar manushya- jitana bhee vishvaas naheen

ek bhajanaanandee saadhu ghoomate hue aaye aur ek mandiramen thahar gaye. mandirake pujaareene unase kaha *aap yahaan jitane bhee din rukana chaahen, prasannataapoorvak rahen; kintu yahaan bhojanakee koee vyavastha naheen hai. bhojanakee koee vyavastha aap kar len.' saadhu bole- 'tumhaare pada़oseene kaha hai ki mujhe do rotiyaan pratidin vah de diya karegaa.' pujaaree- 'tab theek hai. tab to aap nishchint rahen,vah sachcha aadamee hai.' saadhune yah sunakar aasan uthaayaa- 'bhaaee! yah sthaan mere rahaneyogy naheen hai aur n tum dev - seva karaneyogy ho bhagavaan vishvambhar hain, apane janonke bharana-poshanakee unhonne pratijna kar rakhee hai; kintu un sarva-samarth bhagavaanpar to tumhen manushya- jitana bhee vishvaas naheen .'

- su0 sin0

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