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शिवाका आदर्श दान  [शिक्षदायक कहानी]
आध्यात्मिक कहानी - Short Story (आध्यात्मिक कहानी)

सन् 1656 की बात है, शिवाजी महाराज रायगढ़ से चलकर सताराके किलेमें आकर निवास कर रहे थे। एक दिन वे वहीं राजवाड़ेमें बैठे थे कि नीचेसे 'जय जय रघुवीर समर्थ!' की आवाज आयी।

शिवाजी तत्काल नीचे उतर आये। देखा, सामने साक्षात् गुरुदेव भिक्षाकी झोली लिये खड़े हैं। उन्होंने प्रणाम किया और भिक्षा लानेके लिये वे भीतर आये।

भिक्षाके लिये अन्न-वस्त्र, सोना-मोती, मणि माणिक्य- जो भी उठाते, उन्हें थोड़ा ही जँचता । एकाएक उन्हें कल्पना सूझी। कलम-दावात ले कागजपर कुछ लिखा और उसको लेकर बाहर आये। समर्थने झोली पसारी और शिवाने उसमें वह चिट्ठी डाल दी।

समर्थने कहा- 'शिवबा ! अरे, हम तुम्हारे यहाँ अच्छे-अच्छे धान्यकी आशासे आये थे। पर तुम कागजका टुकड़ा हमारी झोलीमें डालकर यह क्या मजाक कर रहे हो मुट्ठीभर आटा डालते तो उसकी रोटी भी बनाकर खा सकते थे।'

'महाराज ! झोलीमें मैंने भिक्षा ही डाली और कुछनहीं, क्षमा करें।' शिवाने विनयके साथ कहा। समर्थने उद्धवसे चिट्ठी निकाल पढ़नेके लिये कहा। उद्धव चिट्ठी पढ़ने लगा

'आजतक कमाया हुआ सारा राज्य स्वामीके चरणों में समर्पित । ' - शिवराज और यह राजकीय मुद्रा । समर्थने कहा-' और शिवबा ! अब तुम क्या करोगे ?' 'श्रीकी सेवा, सेवकको क्या आज्ञा है ?"

'झोली उठाओ और चलो मेरे साथ भीख माँगने ।' शिवराज भिक्षुकको ले समर्थने गाँवभर भिक्षा माँगी। फिर नदीके तीरपर आकर रसोई बनायी गयी और सबने भोजन किया।

समर्थने कहा- शिवबा ! हम वैरागियोंको राज्यसे क्या काम। तुम्हीं इसे सँभालो।'

शिवाजी तैयार ही न होते थे। समर्थने अपनी पादुकाएँ और झोलीका भगवा वस्त्र ध्वजके लिये दे अपने प्रतिनिधिरूपमें शिवाको राज्य चलानेका आदेश दिया। शिवाजीने जीवनभर उसे निभाया।

-गो0 न0 बै0 ('समर्थांचे सामर्थ्य')



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Hindi Story सादगी


shivaaka aadarsh daana

san 1656 kee baat hai, shivaajee mahaaraaj raayagadha़ se chalakar sataaraake kilemen aakar nivaas kar rahe the. ek din ve vaheen raajavaada़emen baithe the ki neechese 'jay jay raghuveer samartha!' kee aavaaj aayee.

shivaajee tatkaal neeche utar aaye. dekha, saamane saakshaat gurudev bhikshaakee jholee liye khada़e hain. unhonne pranaam kiya aur bhiksha laaneke liye ve bheetar aaye.

bhikshaake liye anna-vastr, sonaa-motee, mani maanikya- jo bhee uthaate, unhen thoda़a hee janchata . ekaaek unhen kalpana soojhee. kalama-daavaat le kaagajapar kuchh likha aur usako lekar baahar aaye. samarthane jholee pasaaree aur shivaane usamen vah chitthee daal dee.

samarthane kahaa- 'shivaba ! are, ham tumhaare yahaan achchhe-achchhe dhaanyakee aashaase aaye the. par tum kaagajaka tukada़a hamaaree jholeemen daalakar yah kya majaak kar rahe ho muttheebhar aata daalate to usakee rotee bhee banaakar kha sakate the.'

'mahaaraaj ! jholeemen mainne bhiksha hee daalee aur kuchhanaheen, kshama karen.' shivaane vinayake saath kahaa. samarthane uddhavase chitthee nikaal padha़neke liye kahaa. uddhav chitthee paढ़ne lagaa

'aajatak kamaaya hua saara raajy svaameeke charanon men samarpit . ' - shivaraaj aur yah raajakeey mudra . samarthane kahaa-' aur shivaba ! ab tum kya karoge ?' 'shreekee seva, sevakako kya aajna hai ?"

'jholee uthaao aur chalo mere saath bheekh maangane .' shivaraaj bhikshukako le samarthane gaanvabhar bhiksha maangee. phir nadeeke teerapar aakar rasoee banaayee gayee aur sabane bhojan kiyaa.

samarthane kahaa- shivaba ! ham vairaagiyonko raajyase kya kaama. tumheen ise sanbhaalo.'

shivaajee taiyaar hee n hote the. samarthane apanee paadukaaen aur jholeeka bhagava vastr dhvajake liye de apane pratinidhiroopamen shivaako raajy chalaaneka aadesh diyaa. shivaajeene jeevanabhar use nibhaayaa.

-go0 na0 bai0 ('samarthaanche saamarthya')

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