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दो पत्र, तीन बातें  [शिक्षदायक कहानी]
Story To Read - आध्यात्मिक कथा (आध्यात्मिक कथा)

दो पत्र, तीन बातें

ऐसा कौन है, जिसके पास मित्र और रिश्तेदारोंके पत्र नहीं आते? और ऐसा कौन है, जिसे दूसरे काम छोड़कर पत्रोंको पढ़ने में आनन्द नहीं आता ? जो पढ़े लिखे नहीं हैं, उनके पास जब कहींसे कोई पत्र आता है, तो वे किसी पढ़े-लिखेसे पढ़वानेके लिये दौड़े-दौड़े फिरते हैं। जीवनमें ऐसी घड़ियाँ भी आती हैं, जिनमेंमित्रोंसे ज्यादा उनके पत्रका इन्तजार रहता है।
तब क्या पत्रका आनन्द उसे पढ़नेमें ही है? बात तो ऐसी ही है, पर यह नहीं है। सन् 1930 ई0 की बात है। प्रोफेसर तान-युन-शान तिब्बत गये और दलाई लामाके पास ठहरे। उन दिनोंमें बौद्ध धर्मके बारेमें तो बातें हुई ही, गाँधीजीके बारेमें भी काफी बातें हुईं। जब प्रोफेसर तान- युन-शान भारतके लिये चलने लगे तो दलाई लामाने गाँधीजीके नाम एक पत्र अपने हाथसे लिखकर प्रोफेसर तानको दे दिया।
भारत पहुँचकर प्रोफेसर तानने वह पत्र गाँधीजीको दे दिया। वह पत्र भोट भाषामें लिखा हुआ था। गाँधीजी भोट भाषा नहीं जानते थे। उन्होंने प्रोफेसर तानसे उसका अनुवाद करनेको कहा, पर वे भी भोट भाषा नहीं जानते थे। गाँधीजी बोले- 'तब तो इस पत्रकी बात मैं कभी न जान सकूँगा।' यह बात उन्होंने कुछ इस अन्दाजसे कही कि सब हँस पड़े। बिना पढ़ा पत्र गाँधीजीके पास रखा रहा। प्रोफेसर तानको यह देखकर आश्चर्य हुआ कि बिना पढ़े भी गाँधीजीको उस पत्रके आनेसे बहुत खुशी हुई और वे कई दिनतक उसका आनन्द लेते रहे।
एक दिन प्रोफेसर तानने गाँधीजीसे पूछा- 'क्या आप दलाई लामाके पत्रका उत्तर देंगे ?' गाँधीजीने कहा- 'जरूर, मैं दलाई लामाको पत्र लिखूँगा, पर वह इस पत्रका उत्तर नहीं होगा; क्योंकि मैं नहीं जानता कि इस पत्रमें क्या लिखा है। तिब्बती भाषा मैं जानता नहीं, इसलिये मैं अपना पत्र गुजरातीमें लिखूँगा। दलाई लामा भी मेरा पत्र पढ़ न सकेंगे, पर मेरी ही तरह पत्र पानेका आनन्द लेते रहेंगे।'
यह क्या बात हुई? पहली बात तो यह हुई कि आनन्द किसी बातमें नहीं, बल्कि अपने मनमें है। हम जिस बात में आनन्द-खुशी अनुभव करें, वह उसीमें है। दूसरी बात यह कि अच्छा मनुष्य और अच्छा विचार, हम उसे पूरी तरह न पहचानें, न समझें, तब भी उसका सम्पर्क हमपर अपना प्रभाव डालता है, जैसे आग अबोध बालकको भी जलाती है। तीसरी बात यह है कि हमें हमेशा अपनी भाषाको पूरा महत्त्व देना चाहिये और विदेशी भाषाके झूठे मोहमें नहीं पड़ना चाहिये। [ दूधका तालाब ]



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do patr, teen baaten

do patr, teen baaten

aisa kaun hai, jisake paas mitr aur rishtedaaronke patr naheen aate? aur aisa kaun hai, jise doosare kaam chhoda़kar patronko padha़ne men aanand naheen aata ? jo padha़e likhe naheen hain, unake paas jab kaheense koee patr aata hai, to ve kisee padha़e-likhese padha़vaaneke liye dauda़e-dauड़e phirate hain. jeevanamen aisee ghada़iyaan bhee aatee hain, jinamenmitronse jyaada unake patraka intajaar rahata hai.
tab kya patraka aanand use padha़nemen hee hai? baat to aisee hee hai, par yah naheen hai. san 1930 ee0 kee baat hai. prophesar taana-yuna-shaan tibbat gaye aur dalaaee laamaake paas thahare. un dinonmen bauddh dharmake baaremen to baaten huee hee, gaandheejeeke baaremen bhee kaaphee baaten hueen. jab prophesar taana- yuna-shaan bhaaratake liye chalane lage to dalaaee laamaane gaandheejeeke naam ek patr apane haathase likhakar prophesar taanako de diyaa.
bhaarat pahunchakar prophesar taanane vah patr gaandheejeeko de diyaa. vah patr bhot bhaashaamen likha hua thaa. gaandheejee bhot bhaasha naheen jaanate the. unhonne prophesar taanase usaka anuvaad karaneko kaha, par ve bhee bhot bhaasha naheen jaanate the. gaandheejee bole- 'tab to is patrakee baat main kabhee n jaan sakoongaa.' yah baat unhonne kuchh is andaajase kahee ki sab hans pada़e. bina padha़a patr gaandheejeeke paas rakha rahaa. prophesar taanako yah dekhakar aashchary hua ki bina padha़e bhee gaandheejeeko us patrake aanese bahut khushee huee aur ve kaee dinatak usaka aanand lete rahe.
ek din prophesar taanane gaandheejeese poochhaa- 'kya aap dalaaee laamaake patraka uttar denge ?' gaandheejeene kahaa- 'jaroor, main dalaaee laamaako patr likhoonga, par vah is patraka uttar naheen hogaa; kyonki main naheen jaanata ki is patramen kya likha hai. tibbatee bhaasha main jaanata naheen, isaliye main apana patr gujaraateemen likhoongaa. dalaaee laama bhee mera patr padha़ n sakenge, par meree hee tarah patr paaneka aanand lete rahenge.'
yah kya baat huee? pahalee baat to yah huee ki aanand kisee baatamen naheen, balki apane manamen hai. ham jis baat men aananda-khushee anubhav karen, vah useemen hai. doosaree baat yah ki achchha manushy aur achchha vichaar, ham use pooree tarah n pahachaanen, n samajhen, tab bhee usaka sampark hamapar apana prabhaav daalata hai, jaise aag abodh baalakako bhee jalaatee hai. teesaree baat yah hai ki hamen hamesha apanee bhaashaako poora mahattv dena chaahiye aur videshee bhaashaake jhoothe mohamen naheen pada़na chaahiye. [ doodhaka taalaab ]

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