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सूरदास और कन्या  [Hindi Story]
आध्यात्मिक कथा - हिन्दी कहानी (आध्यात्मिक कथा)

उस समय मुगलसम्राट् अकबर राज्य कर रहा था। उसके बहुत-सी हिंदू बेगमें भी थीं। उनमेंसे एकका नाम था जोधाबाई ।

एक दिन जोधाबाई नदीमें नहाने गयी। वहाँ उसने देखा कि एक छोटी-सी सुकुमार लड़की पानीमें डूब सी रही है। उसको दया आ गयी। उसने उस लड़कीको उठा लिया और घर ले आयी तथा अपनी गर्भजात कन्याकी भाँति बड़े स्नेहसे उसका लालन-पालन करने लगी। जब लड़की ग्यारह बारह वर्षकी हो गयी, तब एक दिन जोधाबाईने देखा कि वह उसकी पेटी खोल रही है। जोधाबाई छिपकर देखने लगी कि देखूं, वह क्या करती है। लड़कीने पेटी खोलकर एक सुन्दर सी साड़ी पहन ली और अपनेको सजा लिया। सजकर वह ऊपर छतपर जाकर खड़ी हो गयी। वह रोज ऐसे ही करती।

एक दिन जोधाबाईने पूछा- 'बेटी! तू ऐसा क्यों करती है ?"

लड़की चुप रही, पर बार-बार आग्रह करनेपर बोली- 'माँ! उस समय मेरा पति गाय चराकर लौटा करता है। उसके सामने मलिन वेषमें रहना ठीक नहीं, इसीलिये मैं ऐसा करती हूँ।'

जोधाबाई- 'क्या तुम मुझको भी उसे दिखा दोगी ?' लड़कीने कोई उत्तर नहीं दिया, किंतु दूसरे दिन जोधाबाई भी ऊपर चली गयी। कहते हैं कि उस दिन उसे केवल मुरलीकी क्षीण ध्वनि सुनायी पड़ी।एक दिन जोधाबाई कुछ चिन्तित-सी बैठी थी। लड़कीने अपनी धर्ममातासे इसका कारण पूछा। माने कहा – 'बेटी! मैं बूढ़ी हो गयी हूँ, इसलिये तेरा पिता मुझे प्यार नहीं करता ! क्या तू मुझे एक दिन अपने हाथसे सजा देगी ?'

लड़कीने अपने हाथसे माँका शृङ्गार कर दिया। उधरसे अकबर निकला और जोधाबाईका सौन्दर्य देखकर चकित हो गया। उसने पूछा कि 'तुम इतनी सुन्दरी कैसे हो गयी ?' जोधाबाईने टालनेकी बहुत चेष्टा की, पर अकबर पीछे पड़ गया। अन्तमें जोधाबाईने बात बता दी और कहा कि 'मेरी धर्मकी बेटीने मुझे इतना सुन्दर बना दिया है।' अकबरके मनमें आया कि 'मैं उस लड़कीसे विवाह कर लूँ।' किंतु ज्याँ ही यह विचार आया त्यों ही उसके शरीरमें बिजलीका करेंट-सा लगा और बड़ी तीव्र जलन होने लगी। उसने बहुत कोशिश की कि औषधके द्वारा यह जलन मिट जाय। पर पीड़ा बढ़ती ही गयी। अन्तमें उसने वीरबल से उपाय पूछा। उसने कहा कि 'आपके मनमें कोई बुरा विचार आया है। आप सूरदासजीको बुलाइये। वे चाहें तो ठीक कर दे सकते हैं।' अकबरने बड़ी विनय करके सूरदासजीको बुलाया।

उनके आते ही उसकी जलन मिटने लगी। उसी समय वह लड़की वहाँ आयी और सूरदासजीसे बोली 'आप कैसे आ गये, महात्मा ?' सूरदासजीने हँसकर कहा—'जैसे आप आ गय!'इतनेमें वह लड़की फुर्रसे जल गयी। वहाँ केवल थोड़ी-सी राख बच गयी। यह देखकर जोधाबाई रोने लगी।

सूरदासजीने जोधाबाईसे कहा - 'आप रोइये मत । मैं उद्धव हूँ। जब मैं गोपियोंको समझाने गया था, उस समय मैं एक दिन किसी निकुञ्जकी ओर बिना पूछे चल पड़ा। सहसा वहाँ ललिताजी आ गयीं। ललिताजीने कहा—'यह हमारा राज्य है; आप उधर मत जाइये।''मुझे बड़ा दुःख हुआ । मैंने उनको मर्त्यलोकमें जन्म धारण करनेका शाप दे दिया। उन्होंने भी तुरंत वैसा ही शाप मुझे भी दिया। इसीसे मैं एक अंशसे सूरदास हुआ हूँ और ललिताजी एक अंशसे आपके यहाँ आयी थीं।'

सूरदासने वह राख बटोरकर अपने सिरपर चढ़ा ली तथा वे चुप-चाप शाही महलसे बाहरकी ओर चल पड़े। – 'राधा'



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sooradaas aur kanyaa

us samay mugalasamraat akabar raajy kar raha thaa. usake bahuta-see hindoo begamen bhee theen. unamense ekaka naam tha jodhaabaaee .

ek din jodhaabaaee nadeemen nahaane gayee. vahaan usane dekha ki ek chhotee-see sukumaar lada़kee paaneemen doob see rahee hai. usako daya a gayee. usane us lada़keeko utha liya aur ghar le aayee tatha apanee garbhajaat kanyaakee bhaanti bada़e snehase usaka laalana-paalan karane lagee. jab lada़kee gyaarah baarah varshakee ho gayee, tab ek din jodhaabaaeene dekha ki vah usakee petee khol rahee hai. jodhaabaaee chhipakar dekhane lagee ki dekhoon, vah kya karatee hai. lada़keene petee kholakar ek sundar see saada़ee pahan lee aur apaneko saja liyaa. sajakar vah oopar chhatapar jaakar khada़ee ho gayee. vah roj aise hee karatee.

ek din jodhaabaaeene poochhaa- 'betee! too aisa kyon karatee hai ?"

lada़kee chup rahee, par baara-baar aagrah karanepar bolee- 'maan! us samay mera pati gaay charaakar lauta karata hai. usake saamane malin veshamen rahana theek naheen, iseeliye main aisa karatee hoon.'

jodhaabaaee- 'kya tum mujhako bhee use dikha dogee ?' lada़keene koee uttar naheen diya, kintu doosare din jodhaabaaee bhee oopar chalee gayee. kahate hain ki us din use keval muraleekee ksheen dhvani sunaayee pada़ee.ek din jodhaabaaee kuchh chintita-see baithee thee. lada़keene apanee dharmamaataase isaka kaaran poochhaa. maane kaha – 'betee! main boodha़ee ho gayee hoon, isaliye tera pita mujhe pyaar naheen karata ! kya too mujhe ek din apane haathase saja degee ?'

lada़keene apane haathase maanka shringaar kar diyaa. udharase akabar nikala aur jodhaabaaeeka saundary dekhakar chakit ho gayaa. usane poochha ki 'tum itanee sundaree kaise ho gayee ?' jodhaabaaeene taalanekee bahut cheshta kee, par akabar peechhe pada़ gayaa. antamen jodhaabaaeene baat bata dee aur kaha ki 'meree dharmakee beteene mujhe itana sundar bana diya hai.' akabarake manamen aaya ki 'main us lada़keese vivaah kar loon.' kintu jyaan hee yah vichaar aaya tyon hee usake shareeramen bijaleeka karenta-sa laga aur bada़ee teevr jalan hone lagee. usane bahut koshish kee ki aushadhake dvaara yah jalan mit jaaya. par peeda़a badha़tee hee gayee. antamen usane veerabal se upaay poochhaa. usane kaha ki 'aapake manamen koee bura vichaar aaya hai. aap sooradaasajeeko bulaaiye. ve chaahen to theek kar de sakate hain.' akabarane bada़ee vinay karake sooradaasajeeko bulaayaa.

unake aate hee usakee jalan mitane lagee. usee samay vah lada़kee vahaan aayee aur sooradaasajeese bolee 'aap kaise a gaye, mahaatma ?' sooradaasajeene hansakar kahaa—'jaise aap a gaya!'itanemen vah lada़kee phurrase jal gayee. vahaan keval thoda़ee-see raakh bach gayee. yah dekhakar jodhaabaaee rone lagee.

sooradaasajeene jodhaabaaeese kaha - 'aap roiye mat . main uddhav hoon. jab main gopiyonko samajhaane gaya tha, us samay main ek din kisee nikunjakee or bina poochhe chal pada़aa. sahasa vahaan lalitaajee a gayeen. lalitaajeene kahaa—'yah hamaara raajy hai; aap udhar mat jaaiye.''mujhe bada़a duhkh hua . mainne unako martyalokamen janm dhaaran karaneka shaap de diyaa. unhonne bhee turant vaisa hee shaap mujhe bhee diyaa. iseese main ek anshase sooradaas hua hoon aur lalitaajee ek anshase aapake yahaan aayee theen.'

sooradaasane vah raakh batorakar apane sirapar chadha़a lee tatha ve chupa-chaap shaahee mahalase baaharakee or chal pada़e. – 'raadhaa'

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