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सद्भावना- रक्षा  [Shikshaprad Kahani]
प्रेरक कहानी - Hindi Story (Shikshaprad Kahani)

अद्भुत डाकू था वह फकीरोंके वेशमें रहता, हाथमें उसके तसबीह रहती। वह डाका डालता, पर अधिकांश धन गरीबोंमें बाँट देता। इतना ही नहीं, प्रत्येकशुक्रवारको वह नमाज पढ़ता था। उसके दलके प्रत्येक सदस्यको शुक्रवारकी नमाज आवश्यक थी। आज्ञोल्लङ्घन करनेवाला दलसे पृथक् कर दिया जाता था ।एक बार व्यापारियोंका समुदाय उसी पथसे जा रहा था, जिधर डाकुओंका यह दल रहता था। डाकुओंने लूटना शुरू कर दिया। एक व्यापारी अपने धनको लेकर छिपानेके लिये भागता हुआ उस तंबूमें जा पहुँचा, जहाँ डाकुओंका सरदार फकीरके वेशमें तसबीह लिये बैठा था व्यापारीने कहा- 'मैं बड़ी विपत्तिमें पड़ गया हूँ। सारा धन डाकू लूट रहे हैं। कृपापूर्वक आप इसे अपने पास रख लें। बादमें मैं इसे ले जाऊँगा ।' सरदारने कहा- 'उस कोनेमें रख दो।' धनकी थैली रखकर व्यापारी चला गया।

कुछ देर बाद जब डाकू समस्त व्यापारियोंको लूटकर चले गये, तब वह व्यापारी अपना धन लेनेके लिये उस तंबूमें आया। किंतु तंबूके भीतर उसने जो कुछ देखा, उससे उसका शरीर काँपने लगा। आकृतिपर स्वेद-कण झलकने लगे। वहाँ डाकू लूटके धनको बाँट रहे थे। व्यापारी डाकूके ही पास धन रखनेकी अपनी भूलपर मन-ही-मन पछता रहा था। वह धीरेसे वहाँसे जाने लगा। सरदारने पुकारा-'यहाँ कैसे आया था ?' व्यापारीने काँपते हुए कहा- 'मैं अपनी धरोहरवापस लेने आया था, पर मुझसे भूल हो गयी, मैं अभी यहाँसे जा रहा हूँ।'

'रुको।' सरदारने उत्तरमें कहा- 'अपनी धरोहर लेते जाओ। वह उसी जगह पड़ी है।'

व्यापारीको विश्वास नहीं हो रहा था। उसने तिरछे नेत्रोंसे देखा, सचमुच उसकी थैली जहाँ-की-तहाँ रखी हुई थी। उसने थैली उठा ली और प्रसन्नतापूर्वक चला गया।

'यह क्या किया आपने ?' डाकुओंने सरदारसे पूछा- 'इस प्रकार हाथका माल वापस करना कहाँतक उचित है ?'

'तुमलोग ठीक कहते हो ।' सरदारने हँसते हुए शान्त-स्वरमें उत्तर दिया। 'किंतु वह आदमी मुझे ईश्वरका भक्त, फकीर, सच्चा और ईमानदार समझकर धन मेरे पास रख गया था। ईश्वरको प्रसन्न करनेवाले इस वेशके प्रति जो सद्भावना है उसकी रक्षा करना मेरा परम कर्तव्य
है। ईश्वर करे मेरा यह स्वभाव आजीवन बना रहे।' डाकुओं का यही सरदार आगे चलकर फजल अयाज नामक प्रसिद्ध महात्मा हुआ। - शि0 दु0



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sadbhaavanaa- rakshaa

adbhut daakoo tha vah phakeeronke veshamen rahata, haathamen usake tasabeeh rahatee. vah daaka daalata, par adhikaansh dhan gareebonmen baant detaa. itana hee naheen, pratyekashukravaarako vah namaaj padha़ta thaa. usake dalake pratyek sadasyako shukravaarakee namaaj aavashyak thee. aajnollanghan karanevaala dalase prithak kar diya jaata tha .ek baar vyaapaariyonka samudaay usee pathase ja raha tha, jidhar daakuonka yah dal rahata thaa. daakuonne lootana shuroo kar diyaa. ek vyaapaaree apane dhanako lekar chhipaaneke liye bhaagata hua us tanboomen ja pahuncha, jahaan daakuonka saradaar phakeerake veshamen tasabeeh liye baitha tha vyaapaareene kahaa- 'main bada़ee vipattimen pada़ gaya hoon. saara dhan daakoo loot rahe hain. kripaapoorvak aap ise apane paas rakh len. baadamen main ise le jaaoonga .' saradaarane kahaa- 'us konemen rakh do.' dhanakee thailee rakhakar vyaapaaree chala gayaa.

kuchh der baad jab daakoo samast vyaapaariyonko lootakar chale gaye, tab vah vyaapaaree apana dhan leneke liye us tanboomen aayaa. kintu tanbooke bheetar usane jo kuchh dekha, usase usaka shareer kaanpane lagaa. aakritipar sveda-kan jhalakane lage. vahaan daakoo lootake dhanako baant rahe the. vyaapaaree daakooke hee paas dhan rakhanekee apanee bhoolapar mana-hee-man pachhata raha thaa. vah dheerese vahaanse jaane lagaa. saradaarane pukaaraa-'yahaan kaise aaya tha ?' vyaapaareene kaanpate hue kahaa- 'main apanee dharoharavaapas lene aaya tha, par mujhase bhool ho gayee, main abhee yahaanse ja raha hoon.'

'ruko.' saradaarane uttaramen kahaa- 'apanee dharohar lete jaao. vah usee jagah pada़ee hai.'

vyaapaareeko vishvaas naheen ho raha thaa. usane tirachhe netronse dekha, sachamuch usakee thailee jahaan-kee-tahaan rakhee huee thee. usane thailee utha lee aur prasannataapoorvak chala gayaa.

'yah kya kiya aapane ?' daakuonne saradaarase poochhaa- 'is prakaar haathaka maal vaapas karana kahaantak uchit hai ?'

'tumalog theek kahate ho .' saradaarane hansate hue shaanta-svaramen uttar diyaa. 'kintu vah aadamee mujhe eeshvaraka bhakt, phakeer, sachcha aur eemaanadaar samajhakar dhan mere paas rakh gaya thaa. eeshvarako prasann karanevaale is veshake prati jo sadbhaavana hai usakee raksha karana mera param kartavya
hai. eeshvar kare mera yah svabhaav aajeevan bana rahe.' daakuon ka yahee saradaar aage chalakar phajal ayaaj naamak prasiddh mahaatma huaa. - shi0 du0

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