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सबमें भगवान्  [Moral Story]
Spiritual Story - आध्यात्मिक कथा (Moral Story)

पंढरपुरकी कार्तिक-यात्राका मेला लगा था। अनेकों साधु-संत पधारे थे। एकादशीका निर्जल उपवास करके द्वादशीके दिन पारणके लिये सभी उतावले दीख रहे थे। कोई आटा सानता, कोई रोटी बनाता तो कोई रसोईबनाकर भगवान्‌को भोग लगाता था

इसी बीच एक काला कुत्ता वहाँ आ पहुँचा। | साधुओंकी एकादशीका उसपर भी काफी असर दीख रहा था। कदाचित् पहले दिन कुछ भी न मिलनेसे वहभूखा कुत्ता किसीके आटेमें मुँह डालता, किसीकी पकी रोटी छूता तो किसीकी परोसी थालीमें ही मुँह डालता। प्रत्येक साधु उसे दुत्कारता मारता, भगाता था। कोई कहता - हमारा अन्न छू गया, अब वह खानेयोग्य नहीं रहा। दूसरा महात्मा कहता – 'अरे! यह काला कुत्ता है, धर्मशास्त्रों में पढ़ा है कि इसकी छूत नहीं लगती।'

चारों ओरसे तिरस्कृत कुत्ता नामदेवके पास आया और उनकी सेकी रोटी लेकर भागा। यह देख नामदेव पासमें रखी घीकी कटोरी ले उसके पीछे-पीछे दौड़े और कहने लगे- ' भई! रूखी रोटी मत खाओ, पेटमें दर्द होगा। यह घी है, मैं इसमें रोटी चुपड़कर देता हूँ; फिर खाओ।' नामदेव घी चुपड़कर अपने हाथों उसे रोटी खिलाने लगे सभी साधु-महात्मा नामदेवकी करनीपर हँसने लगे और कहने लगे- 'नामदेव पागल हो गया है!' पर नामदेवने उनकी परवा नहीं की।

अन्तमें पेट भर जानेके बाद श्वानने मनुष्य-वाणीमें नामदेवसे कहा "नामदेव ! सचमुच तुम्हारी सभी प्राणियोंमें समान दृष्टि है। यहाँ जुटे हुए इन महात्माओंकी अभी विषमदृष्टि मिटी नहीं, पर तुमने 'सर्वत्र समदृष्टि' रखनेका मेरा आदेश अपने अन्तरमें भर लिया।"

यह कहकर श्वानरूप भगवान् अन्तर्धान हो गये। उपस्थित सभी साधु-महात्मा नामदेवका भाग्य सराहने लगे और भगवान्‌को खिलानेका अवसर पाकर भी उसे खो देनेपर पछताने लगे।

गो0 न0 बै0 (भक्तिविजय, अध्याय 20)



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sabamen bhagavaan

pandharapurakee kaartika-yaatraaka mela laga thaa. anekon saadhu-sant padhaare the. ekaadasheeka nirjal upavaas karake dvaadasheeke din paaranake liye sabhee utaavale deekh rahe the. koee aata saanata, koee rotee banaata to koee rasoeebanaakar bhagavaan‌ko bhog lagaata thaa

isee beech ek kaala kutta vahaan a pahunchaa. | saadhuonkee ekaadasheeka usapar bhee kaaphee asar deekh raha thaa. kadaachit pahale din kuchh bhee n milanese vahabhookha kutta kiseeke aatemen munh daalata, kiseekee pakee rotee chhoota to kiseekee parosee thaaleemen hee munh daalataa. pratyek saadhu use dutkaarata maarata, bhagaata thaa. koee kahata - hamaara ann chhoo gaya, ab vah khaaneyogy naheen rahaa. doosara mahaatma kahata – 'are! yah kaala kutta hai, dharmashaastron men padha़a hai ki isakee chhoot naheen lagatee.'

chaaron orase tiraskrit kutta naamadevake paas aaya aur unakee sekee rotee lekar bhaagaa. yah dekh naamadev paasamen rakhee gheekee katoree le usake peechhe-peechhe dauda़e aur kahane lage- ' bhaee! rookhee rotee mat khaao, petamen dard hogaa. yah ghee hai, main isamen rotee chupada़kar deta hoon; phir khaao.' naamadev ghee chupada़kar apane haathon use rotee khilaane lage sabhee saadhu-mahaatma naamadevakee karaneepar hansane lage aur kahane lage- 'naamadev paagal ho gaya hai!' par naamadevane unakee parava naheen kee.

antamen pet bhar jaaneke baad shvaanane manushya-vaaneemen naamadevase kaha "naamadev ! sachamuch tumhaaree sabhee praaniyonmen samaan drishti hai. yahaan jute hue in mahaatmaaonkee abhee vishamadrishti mitee naheen, par tumane 'sarvatr samadrishti' rakhaneka mera aadesh apane antaramen bhar liyaa."

yah kahakar shvaanaroop bhagavaan antardhaan ho gaye. upasthit sabhee saadhu-mahaatma naamadevaka bhaagy saraahane lage aur bhagavaan‌ko khilaaneka avasar paakar bhee use kho denepar pachhataane lage.

go0 na0 bai0 (bhaktivijay, adhyaay 20)

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