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जैसा जिसका रोग वैसी उसकी दावा

जैसा जिसका रोग, वैसी उसकी दवा

एक डॉक्टर था। वह रोगियोंके साथ बेहद दयाका बरताव करता था। रोगियोंकी सेवाको वह भगवान्की सेवा समझता था। उसका नाम दूर-दूरतक फैल गया था। रोगी उसके यहाँसे अच्छे होकर ही लौटते
एक दिन डॉक्टर के पास एक गरीब आदमी आया। वह बीमार था। डॉक्टरने उसे देखते ही समझ लिया कि इसका सबसे बड़ा रोग पूरा भोजन नहीं मिलना है।
डॉक्टरने उसे अच्छी तरह खिलाना-पिलाना शुरू कर दिया। कुछ ही दिनोंमें वह भला-चंगा हो गया और डॉक्टरसे आज्ञा लेकर अपने घर चला गया।
उस गरीब आदमीके गाँवमें एक धनिक रहता था। उसका शरीर इतना भारी-भरकम था कि चलनेमें भी कठिनाई होती थी। उसे मालूम हुआ कि डॉक्टर रोगियोंकी दवा बड़े प्रेमसे करता है और खूब खिलाता पिलाता है। फिर क्या था। वह भी डॉक्टरके पास दवा करानेके लिये पहुँच गया।

डॉक्टरने धनिकको अच्छी तरह देखा और समझ लिया कि इसे कोई रोग नहीं है। इसकी सारी बीमारी उपवास करानेसे भाग जायगी। उसने श्रीमान्‌को रख लिया और दवा शुरू कर दी। सबसे पहले डॉक्टरने धनिकका घी-शक्कर और मैदा-जैसी चीजें खाना बन्द करा दिया। फिर उपवास कराना शुरू किया। उन्हें उबली हुई तरकारी खानेके लिये दी जाने लगी।
डॉक्टरका यह व्यवहार धनिकको बिलकुल नहीं सुहाया। उसने बिगड़कर कहा-'तुम गरीब मरीजोंके साथ प्रेमका बरताव करते हो, उनपर दया दिखाते हो, उन्हें लड्डू तथा दूसरी अच्छी-अच्छी चीजें खानेके लिये देते हो और मुझे सिर्फ उबली तरकारी खिलाते हो, क्या मैं गाय-भैंस हूँ?'

डॉक्टरने जवाब दिया- 'मैं तुमपर भी उतना ही प्रेम करता हूँ, जितना गरीबपर मैं सबको एक आँखसे देखता हूँ। तुम्हारे शरीरका वजन बढ़ गया है; इसलिये। तुम्हारे लिये घी-शक्कर खाना मना किया है। इससे तुम्हारा वजन घटेगा और तुम स्वस्थ होगे। मेरा यह काम तुम्हारे साथ मेरे प्रेमको प्रकट करता है। जिस गरीबको खाना न मिलता हो, उसे अच्छी तरह खिलाना ही उसपर प्रेम करना है।'
हमारे सच्चे हितैषी सदैव हमें हितकारी उपदेश देते हैं, परंतु कई बार हमारी खराब आदतोंके कारण उनके हितकारी वचन भी कटु एवं पक्षपातपूर्ण प्रतीत होते हैं।



jaisa jisaka rog vaisee usakee daavaa

jaisa jisaka rog, vaisee usakee davaa

ek daॉktar thaa. vah rogiyonke saath behad dayaaka barataav karata thaa. rogiyonkee sevaako vah bhagavaankee seva samajhata thaa. usaka naam doora-dooratak phail gaya thaa. rogee usake yahaanse achchhe hokar hee lautate
ek din daॉktar ke paas ek gareeb aadamee aayaa. vah beemaar thaa. daॉktarane use dekhate hee samajh liya ki isaka sabase bada़a rog poora bhojan naheen milana hai.
daॉktarane use achchhee tarah khilaanaa-pilaana shuroo kar diyaa. kuchh hee dinonmen vah bhalaa-changa ho gaya aur daॉktarase aajna lekar apane ghar chala gayaa.
us gareeb aadameeke gaanvamen ek dhanik rahata thaa. usaka shareer itana bhaaree-bharakam tha ki chalanemen bhee kathinaaee hotee thee. use maaloom hua ki daॉktar rogiyonkee dava bada़e premase karata hai aur khoob khilaata pilaata hai. phir kya thaa. vah bhee daॉktarake paas dava karaaneke liye pahunch gayaa.

daॉktarane dhanikako achchhee tarah dekha aur samajh liya ki ise koee rog naheen hai. isakee saaree beemaaree upavaas karaanese bhaag jaayagee. usane shreemaan‌ko rakh liya aur dava shuroo kar dee. sabase pahale daॉktarane dhanikaka ghee-shakkar aur maidaa-jaisee cheejen khaana band kara diyaa. phir upavaas karaana shuroo kiyaa. unhen ubalee huee tarakaaree khaaneke liye dee jaane lagee.
daॉktaraka yah vyavahaar dhanikako bilakul naheen suhaayaa. usane bigada़kar kahaa-'tum gareeb mareejonke saath premaka barataav karate ho, unapar daya dikhaate ho, unhen laddoo tatha doosaree achchhee-achchhee cheejen khaaneke liye dete ho aur mujhe sirph ubalee tarakaaree khilaate ho, kya main gaaya-bhains hoon?'

daॉktarane javaab diyaa- 'main tumapar bhee utana hee prem karata hoon, jitana gareebapar main sabako ek aankhase dekhata hoon. tumhaare shareeraka vajan badha़ gaya hai; isaliye. tumhaare liye ghee-shakkar khaana mana kiya hai. isase tumhaara vajan ghatega aur tum svasth hoge. mera yah kaam tumhaare saath mere premako prakat karata hai. jis gareebako khaana n milata ho, use achchhee tarah khilaana hee usapar prem karana hai.'
hamaare sachche hitaishee sadaiv hamen hitakaaree upadesh dete hain, parantu kaee baar hamaaree kharaab aadatonke kaaran unake hitakaaree vachan bhee katu evan pakshapaatapoorn prateet hote hain.



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