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सेवा Vs परमसेवा - सेवा और परम सेवा के बीच का ये अंतर समझ कर आप असली सेवा का अर्थ समझ पाएँगे

एक सेवा है और दूसरी परम सेवा। दूसरेके हितके लिये भोजन-वस्त्र देना, शरीरको आराम पहुँचाना, सांसारिक सुखके लिये तन-मन-धन अर्पण करना सेवा है। परम सेवा यह है कि अपना तन-मन-धन अर्पण करके दूसरेका कल्याण कर दे । किसीको आजीविका देना लौकिक सेवा है। जो परमात्माकी प्राप्तिमें लगे हुए हैं उन्हें परमात्माके निकट पहुँचनेमें मदद देना पारमार्थिक सेवा है । कोई मरनेवाला है और उसकी इच्छा है कि मुझे कोई गीताजी सुनाये। आप उसके पास पहुँच गये और उसको गीताजी सुनायी तो यह परम सेवा हुई। परम सेवा वह है जिसके बाद उसको सेवाकी आवश्यकता न रहे। आपने लाख आदमियोंकी सेवा की, रुपया-औषधि दिया, भोजन आदि दिया, दूसरी ओर आपने एककी भी परम सेवा की तो यह उनसे बढ़कर है । उसके अनेक जन्मोंका अन्त करा दिया। अनन्त जन्म होनेसे उसकी रक्षा की । मृत्युका सागर सामने है । गीतामें भगवान्‌ने बताया है ” यह विज्ञानसहित ज्ञान सब विद्याओंका राजा, सब गोपनीयोका राजा, अति पवित्र, अति उत्तम, प्रत्यक्ष फलवाला, धर्मयुक्त, साधन करनेमें बड़ा सुगम ओर अविनाशी है” ।

इस प्रकार भगवान्‌ प्रतिज्ञा करके कहते हैँ । अर्जुनको शंका हुई कि जब ऐसी सुगम और प्रत्यक्ष फलवाली धर्ममय बात है तो सब इसका पालन क्यों नहीं करते ? तब भगवानूने कहा ” हे परन्तप ! इस उपर्युक्त धर्ममें श्रद्धारहित पुरुष मुझको न प्राप्त होकर मृत्युरूप संसारचक्रे भ्रमण करते रहते हैँ” ।

जेसे जलका सागर है, वैसे मृत्युका सागर है। जैसे समुद्रम जलके अनन्त कण हैँ, उसी प्रकार जबतक मोक्ष नहीं होगा, तबतक भविष्यमें होनेवाली मृत्युकी संख्या नहीं है । आपके द्वारा एकका कल्याण हो गया तो वह परम सेवा है। इसके मुकाबलेमें करोड़ोंकी आजीवन सेवा भी नहीं है। जब आपको परम सेवाका मौका मिले-मरनेवाला चाहता है कि हमारा भविष्य नहीं बिगड़े तो ऐसी सेवा करनी चाहिये। शिवका भक्त हो तो उसके गलेमें रुद्राक्षकी माला धारण करायें एवं भगवान्‌ शिवका नाम और गुणोंका कीर्तन सुनायें और विष्णुका भक्त हो तो भगवान्‌ नारायणका नाम और गुणोंका कीर्तन सुनायें, तुलसी तथा गंगाजल दें। अन्तकालमें भगवन्नाम-स्मरण करायें। उसके सामने भगवान्‌का चित्र रखें। नेत्रोंक सामने भगवान्‌का स्वरूप रहे और नामका कीर्तन होता रहे तो भीतर भगवान्‌की स्मृति होगी।

परम सेवा करनेकी चेष्टा करें। भगवानूसे प्रार्थना करें। यदि इस कामके लिये नरकमें भी जाना पड़े तो स्वीकार करें। वह नरक भी आपके लिये वैकुण्ठसे बढ़कर होगा। एक कथा आती है–कोई भक्त यमलोकके पाससे होकर जा रहा था, कुछ लोग रोते-चिल्लाते सुनायी पड़े। उसने भगवान्‌के पार्षदोंसे पूछा कि यह क्‍या है ? पार्षद बोले-‘ महाराज यह यमलोक है, यहाँ जीव यम-यातना भोग रहे हैँ ।’ अच्छा, विमान रोको ओर कुछ निकट ले चलो । पहुंचे तो लोगोने कहा कि आपके दर्शनसे ओर आपके स्पर्श की हुई वायुसे हमें प्रसन्नता ओर शान्ति हो रही है । यमके सब शस्त्र भोथरे हो रहे है, यम-यातना कम हो गयी हे, इसलिये आपसे यह प्रार्थना है कि आप जितनी देर अधिक ठहर सके उतने अधिक ठहर जार्यँ। वे वहीं ठहर गये । पार्षदोने कहा– महाराज] चलिये। उसने उत्तर दिया-हम तो यहीं ठहरेंगे। पार्षदोने कहा– आपको तो वैकुण्टलोकमें चलना है। उसने कहा कि भगवान्‌को यह सन्देश दे देना कि इन लोगोंकी भी वहाँ गुंजाइश होती हो तो वहाँ चलें, अन्यथा हम यहीं रहेंगे। तुम पूछ आओ। पार्षद उधर गये और इधर इन्होंने भगवान्‌का कीर्तन कराना शुरू किया तो भगवान्‌ प्रकट हो गये। सबका उद्धार कर दिया। किसीकी परम सेवा करनेका मौका मिले तो परम सौभाग्य मानना चाहिये।

गीता, भागवत, रामायणकी पुस्तकें निःशुल्क या कम कीमतमें दें। गीता, भागवत, रामायणकी कथा कहें–सुनायें या सुनें। किसी प्रकार प्रचार करें। पैसा, समय, शक्ति इस कामें लगायें, जो अपने जन हों उन्हें भी इस काममें लगायें। तन-मन-धन-जन सबको भगवान्‌के काममें लगायें। जो दूसरोंमें भगवान्‌का प्रचार करता है, वह भगवान्‌का परमभक्त है। भगवान्‌ कहते हैं–‘ हे अर्जुन! तुम्हार और मेरे संवादका जो कोई संसारमें प्रचार करेगा, उससे बढ़कर मेरा प्यारा काम करनेवाला संसारमें न है और न होगा।’



seva Vs paramasevaa

ek seva hai aur doosaree param sevaa. doosareke hitake liye bhojana-vastr dena, shareerako aaraam pahunchaana, saansaarik sukhake liye tana-mana-dhan arpan karana seva hai. param seva yah hai ki apana tana-mana-dhan arpan karake doosareka kalyaan kar de . kiseeko aajeevika dena laukik seva hai. jo paramaatmaakee praaptimen lage hue hain unhen paramaatmaake nikat pahunchanemen madad dena paaramaarthik seva hai . koee maranevaala hai aur usakee ichchha hai ki mujhe koee geetaajee sunaaye. aap usake paas pahunch gaye aur usako geetaajee sunaayee to yah param seva huee. param seva vah hai jisake baad usako sevaakee aavashyakata n rahe. aapane laakh aadamiyonkee seva kee, rupayaa-aushadhi diya, bhojan aadi diya, doosaree or aapane ekakee bhee param seva kee to yah unase badha़kar hai . usake anek janmonka ant kara diyaa. anant janm honese usakee raksha kee . mrityuka saagar saamane hai . geetaamen bhagavaan‌ne bataaya hai ” yah vijnaanasahit jnaan sab vidyaaonka raaja, sab gopaneeyoka raaja, ati pavitr, ati uttam, pratyaksh phalavaala, dharmayukt, saadhan karanemen bada़a sugam or avinaashee hai” .

is prakaar bhagavaan‌ pratijna karake kahate hain . arjunako shanka huee ki jab aisee sugam aur pratyaksh phalavaalee dharmamay baat hai to sab isaka paalan kyon naheen karate ? tab bhagavaanoone kaha ” he parantap ! is uparyukt dharmamen shraddhaarahit purush mujhako n praapt hokar mrityuroop sansaarachakre bhraman karate rahate hain” .

jese jalaka saagar hai, vaise mrityuka saagar hai. jaise samudram jalake anant kan hain, usee prakaar jabatak moksh naheen hoga, tabatak bhavishyamen honevaalee mrityukee sankhya naheen hai . aapake dvaara ekaka kalyaan ho gaya to vah param seva hai. isake mukaabalemen karoda़onkee aajeevan seva bhee naheen hai. jab aapako param sevaaka mauka mile-maranevaala chaahata hai ki hamaara bhavishy naheen bigada़e to aisee seva karanee chaahiye. shivaka bhakt ho to usake galemen rudraakshakee maala dhaaran karaayen evan bhagavaan‌ shivaka naam aur gunonka keertan sunaayen aur vishnuka bhakt ho to bhagavaan‌ naaraayanaka naam aur gunonka keertan sunaayen, tulasee tatha gangaajal den. antakaalamen bhagavannaama-smaran karaayen. usake saamane bhagavaan‌ka chitr rakhen. netronk saamane bhagavaan‌ka svaroop rahe aur naamaka keertan hota rahe to bheetar bhagavaan‌kee smriti hogee.

param seva karanekee cheshta karen. bhagavaanoose praarthana karen. yadi is kaamake liye narakamen bhee jaana pada़e to sveekaar karen. vah narak bhee aapake liye vaikunthase badha़kar hogaa. ek katha aatee hai–koee bhakt yamalokake paasase hokar ja raha tha, kuchh log rote-chillaate sunaayee pada़e. usane bhagavaan‌ke paarshadonse poochha ki yah k‍ya hai ? paarshad bole-‘ mahaaraaj yah yamalok hai, yahaan jeev yama-yaatana bhog rahe hain .’ achchha, vimaan roko or kuchh nikat le chalo . pahunche to logone kaha ki aapake darshanase or aapake sparsh kee huee vaayuse hamen prasannata or shaanti ho rahee hai . yamake sab shastr bhothare ho rahe hai, yama-yaatana kam ho gayee he, isaliye aapase yah praarthana hai ki aap jitanee der adhik thahar sake utane adhik thahar jaaryan. ve vaheen thahar gaye . paarshadone kahaa– mahaaraaja] chaliye. usane uttar diyaa-ham to yaheen thaharenge. paarshadone kahaa– aapako to vaikuntalokamen chalana hai. usane kaha ki bhagavaan‌ko yah sandesh de dena ki in logonkee bhee vahaan gunjaaish hotee ho to vahaan chalen, anyatha ham yaheen rahenge. tum poochh aao. paarshad udhar gaye aur idhar inhonne bhagavaan‌ka keertan karaana shuroo kiya to bhagavaan‌ prakat ho gaye. sabaka uddhaar kar diyaa. kiseekee param seva karaneka mauka mile to param saubhaagy maanana chaahiye.

geeta, bhaagavat, raamaayanakee pustaken nihshulk ya kam keematamen den. geeta, bhaagavat, raamaayanakee katha kahen–sunaayen ya sunen. kisee prakaar prachaar karen. paisa, samay, shakti is kaamen lagaayen, jo apane jan hon unhen bhee is kaamamen lagaayen. tana-mana-dhana-jan sabako bhagavaan‌ke kaamamen lagaayen. jo doosaronmen bhagavaan‌ka prachaar karata hai, vah bhagavaan‌ka paramabhakt hai. bhagavaan‌ kahate hain–‘ he arjuna! tumhaar aur mere sanvaadaka jo koee sansaaramen prachaar karega, usase badha़kar mera pyaara kaam karanevaala sansaaramen n hai aur n hogaa.’



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